आदरणीय साहित्य प्रेमियों
सादर वन्दे,
"ओबीओ लाईव महा उत्सव" के २० वे अंक में आपका हार्दिक स्वागत है. पिछले १९ कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने १९ विभिन्न विषयों पर बड़े जोशो खरोश के साथ और बढ़ चढ़ कर कलम आजमाई की. जैसा कि आप सब को ज्ञात ही है कि दरअसल यह आयोजन रचनाकारों के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है, इस आयोजन पर एक कोई विषय या शब्द देकर रचनाकारों को उस पर अपनी रचनायें प्रस्तुत करने के लिए कहा जाता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है:-
"OBO लाइव महा उत्सव" अंक २०
.
विषय - "जल "
आयोजन की अवधि- ८ जून २०१२ शुक्रवार से १० जून २०१२ रविवार तक
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दे डालें अपनी कल्पना को हकीकत का रूप, बात बेशक छोटी हो लेकिन घाव गंभीर करने वाली हो तो बात का लुत्फ़ दोबाला हो जाए. महा उत्सव के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित रचना साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते है |
उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम निम्न है: -
अति आवश्यक सूचना :- "OBO लाइव महा उत्सव" अंक- २० में सदस्यगण आयोजन अवधि में अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही प्रस्तुत कर सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा गैर स्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा, यह अधिकार प्रबंधन सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |
(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो शुक्रवार ८ जून लगते ही खोल दिया जायेगा )
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"महा उत्सव" के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
मंच संचालक
धर्मेन्द्र शर्मा (धरम)
(सदस्य कार्यकारिणी)
ओपन बुक्स ऑनलाइन
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कुशवाहा जी सादर नमस्कार ! क्या पंक्तियाँ लिखी है...बहुत सुंदर॥ये पंक्तियाँ तो दिल को छू गयी :टप टप की मधुर रागिनी छेडती
सर जी पकड़ अच्छी आपकी है, उतना अच्छा लिख नहीं पाया . अभी सीख रहा हूँ आपसे . धन्यवाद
bahut sundar rachna Pradeep kumar ji
बहुत बहुत धन्यवाद, आदरणीया राजेश कुमारी जी, सादर
वो बरसात याद आ गई जब कई दिनों की झड़ी लगा करती थी, कपड़े नहीं सूखते थे, बाढ़ देखने जाया करते थे.धान के खेतों में लबालब पानी भरा रहता था. कई शहर और गाँवों का बाढ़ के कारण सम्पर्क टूट जाता था.सचमुच जाने कहाँ गये वो दिन, देखते ही देखते ये क्या हुआ......रचना अंतर्मन को भिगो गई.
वाह आदरणीय कुशवाहा साहब वाह ! एक और प्रयास..... क्या बात है .....बहुत-बहुत बधाई ....
बहुत खूब प्रदीप सिंह कुशवाहा जी - बधाई.
है अभी भी समय जल्द चेत जाओ.... सचमुच....
सुन्दर आव्हान आदरणीय प्रदीप सिंह जी.... सादर बधाई स्वीकारें सुन्दर रचना के लिए....
क्या बात है ....
क्या कहने हुज़ूर आपके....
बहुत ख़ूब
है अभी समय जल्द चेत जाओ
वन, भूमि, जल संरक्षण की योजना लाओ
__ज़बर्दस्त उत्कर्ष
______अभिनन्दन आपकी प्रस्तुति का
बहुत बहुत आभार आपका अलबेला जी, सदर
आँख से आँसू निकल गया तो कर देगा
जल का जल, काजल का काजल बाबाजी.....
बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति की है अलबेला जी ,छू गई अंतस को
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