"ईश्वर " ( 1)
क्या निंदा या करे प्रशंसा
जिसको तू ना जाने
कोटि-कोटि ले जन्म अरे हे !
मानव ! तू ईश्वर पहचाने !
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एक एक अणु - कण सब उसका
सब हैं उसके अंश
जगत नियंता जगदीश्वर है
वो अमोघ है, अविनाशी है, वो अनंत !
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ओउम वही है शून्य वही है
प्रकृति चराचर सरल विषम - सब
निर्गुण-सगुण ओज तेज सब
जीवन- जीव -है पवन वही !
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जल भी वो है अग्नि वही है
जल-थल उर्वर शक्ति आस है
तृष्णा - घृणा निवारक स्वामी बुद्धि ज्ञान है
ऋषि वही है, सिद्धि वही है अर्थ वही है !
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ज्ञानी ब्रह्म रचयिता सब का विश्व-कर्म है
वो दिनेश है वो महेश है वो सुरेश है
रत्न वही है रत्नाकर है देव वही
कल्प वृक्ष है सागर है वो कामधेनु है !
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वो विराट है विभु है व्यापक वो अक्षय है
सूक्ष्म जगत है दावानल है बड़वानल है
वो ही हिम है वही हिमालय बादल है वो
अमृत गंगा मन तन सब है- जठराग्नि है
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लील सके ब्रह्माण्ड को पल में
धूल - धूसरित कर डाले
क्या मूरख निंदा तुम करते
जो जीवन दे तुझको पाले !
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सत्य वही है झूठ वही है नाना वर्ण रंग भेद है
उषा वही है निशा वही है अद्भुत धांधा वो अभेद्य है
वेद उपनिषद छंद गीत गुरु - ग्रन्थ बाइबिल कुरान है
सुर ताल वही सूत्र वही सब कारक है संहारक है
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ऋषि वैज्ञानिक देव दनुज साधू - सन्यासी
पाल रहा - नचा रहा - लीलाधर बड़ा प्रचारक है
कृति अपनी के कृत्य देख सब - खुश भी होता
कभी कभी वो अश्रु बहाए हर पहलू का द्योतक होता !
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ईहा – घृणा - मोह - माया संताप - काम का
अद्भुत संगम काल व्याल जंजाल जाल का
प्रेम किये है तुझको पल पल देखो प्यारे
जीवन देता कण कण तेरे सदा समाये !
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आओ नमन करें ईश्वर का - परमेश्वर का
अहम छोड़कर प्रेम त्याग से शून्य बने हम
जीवन उसके नाम करें हम मुक्त फिरें इक ज्योति बने
हर जनम जन्म में मानव बन आ मानवता को प्रेम करें !
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अपनी मूढ़ बुद्धि है जितनी -जितनी दूर चली जाए
सारा जीवन आओ खोजें खोज - खोज जन हित में लायें
निंदा और प्रशंसा छोड़े बिन-फल इच्छा - कर्म करें
पायें या ना पायें कुछ भी उसके प्यारे हो जाएँ !
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सुरेन्द्र कुमार शुक्ल भ्रमर ५
२६.४.१२ ८.३०-९ पूर्वाह्न
कुल्लू यच पी
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सुरेन्द्र जी ,ईश्वर के प्रति आपकी भावनाओं को मेरा नमन ,
आदरणीया रेखा जी आप ने उस परम पिता परमेश्वर की रचना पर हाजिरी लगायी और समर्थन दिया ख़ुशी हुयी ईश्वर एक है हम सब उसमे एक अंश बस ..जय श्री राधे
जब मैं , मैं नहीं रहता, मैं तुम हो जाता हूँ , तो मैं कभी गलत नहीं करता.
आदरणीया डॉ प्राची जी ...सुविचार आप के सुन्दर विवेचना ....जब कुछ अच्छा होता है तो लोग खुद अहम् से भरे ईश्वर बन ...ये मैंने किया वो मैंने किया बोलते हैं लेकिन जब गलत होता है दुःख उपजता है मृत्यु होती है तो सब के दायी ईश्वर ...सब उन के ऊपर थोप दिया जाता है ..कितने स्वार्थी हैं हम ..प्रभु सत्य है धनात्मक ऊर्जा है सब सच ही सिखाता है तो गलत करना पाप करना हमें कौन और क्यों सिखाता है करने को , क्यों ईश्वर ही इन सब पापों को आतताइयों को समाप्त नहीं कर रहा ?? लोगों को बड़ा भ्रम है ऐसा ...... ...जय श्री राधे
ईश्वर एक चैतन्य है, उसमें स्पंदन से हर एक स्थूल व सूक्ष्म तत्व की उत्पत्ति हुई... ईश्वर नें हमें चुनने का अधिकार दिया, कर्म करने का अधिकार दिया.... और हमारे कर्मों में वो कभी हस्तक्षेप नहीं करता...
ईश्वर अवसर भी अवश्य देता है, कि हम चुनना क्या चाहते हैं... पुण्य या पाप का मार्ग.
तभी तो हम अपने भविष्य के निर्माता स्वयं ही हैं.
आ. सुरेन्द्र शुक्ला जी...
ईश्वर हमें सजा नहीं देता, हमारे कर्मों का फल ही हम भोगते हैं, जो हमे सजा लगता है....
आदरणीया डॉ प्राची जी सच में कर्म प्रधान विश्व रचि राखा जो कहा गया है सच ही है अच्छी व्याखाया आप की ...ईश्वर हमें सजा नहीं देता कुछ लोग ऐसा मानते हैं लेकिन अधिकतर तो नहीं ..कुछ कहते हैं की यदि ये पाप करोगे तो ईश्वर तुम्हे इसकी सजा जरुर देगा .....
ईश्वर की सृष्टि को यदि सिर्फ LOGIC MIND से समझने चलेंगे तो शायद १०% भी नहीं जान पायेंगे.... क्योंकि MIND की अपनी सीमाएं हैं.
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