For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

तीन दुर्मिल सवैया छंद :-

===================

(1)
चित चॊर  चकॊर मरॊर दई, झकझॊर दई  पँसुरी पँसुरी,
कस माखनचॊर गही बहियां, चटकाइ दई अँगुरी अँगुरी,
फिर फॊरि दई छलिया गगरी,चिचुवाइ दई सगरी लँगुरी,
चुपचाप खड़ी हिय लाज गड़ी, सब दॆह भई चँगुरी चँगुरी,

======================================

(2)
जरि अंग गयॆ सगरॆ सखि री,नहिं एक जरी हठकै गठरी,
सब बॊल सुहावन हैं बिरथा, कबहूँ न लहैं  सुधरैं शठ री,
कवि"राज"कहैं कलिकाल चढ़ा,मन-चाह बढ़ी बहुतै नठरी,
यमराज लिवाय चलॆ जइहैं, रहि जांय धरॆ  मुरदा  ठठरी,

======================================

(3)
जब तॆ बिटिया बड़वार भई, उड़ि नींद गई  इन नैनन तॆ,
घर-वार मिलॆ परिवार मिलॆ,दिलदार मिलॆ वर ना मन तॆ,
कहुं चैन नहीं हमरॆ मन कॊ,बतियाइ लगी उठि रातन तॆ,
करतार हमार  गुहार सुना, हम दीन  हई  बहुतै  धन तॆ,

========================================

Views: 696

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 18, 2012 at 3:55am

Ashok Kumar Raktale आदरणीय,,,प्रणाम करता हूं आपको,,,आपकी प्रतिक्रिया से ऊर्जा मिली है,,,

Comment by Ashok Kumar Raktale on December 16, 2012 at 12:31am

आदरणीय राज बुन्देली जी

                        सादर, तीनो ही दुर्मिल सवैया मन को मुग्ध कर रहे हैं. बधाई स्वीकारें.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 7, 2012 at 2:33pm

Saurabh Pandey आदरणीय,,,प्रणाम करता हूं आपको,,,आपकी प्रतिक्रिया से ऊर्जा मिली है,,,,,सच मानिये यह मेरा प्रथम प्रयास था जो आप सबके चरणॊ में समर्पित कर दिया है,,,,,,,,,,,अभी सीखने की शुरुआत है,,,,,,,,,,,,सादर नमन आपको,,,,,,,,,,,,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on December 7, 2012 at 2:10pm

छंद - 1)  संयोग शृंगार का सुन्दर वर्णन हुआ है, राज साहब. बहुत-बहुत बधाई स्वीकार करें.

छंद 2) एक सांसारिक का आत्ममंथन उचित लगा. हार्दिक बधाई.

छंद 3) विवाह योग्य बेटी के साधनहीन किन्तु संवेदनशील पिता की मनोदशा का चित्रण करता छंद सुन्दर बन पड़ा है. कहुं चैन नहीं हमरॆ मन कॊ,बतियाइ लगी उठि रातन तॆ, इस पद में पिता-भाव की निरुपाय दशा निखर कर आयी है.

आपके इस प्रयास को मेरी बधाई.

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 3, 2012 at 8:08pm

rajesh kumari ,,,,,  जी आपको प्रणाम एवं दिल से आभार इस स्नेह-वर्षा हेतु ,,,,,,,,,


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 3, 2012 at 7:46pm

राज बुन्देली जी इन छंदों की जितनी तारीफ करें कम होगी क्या लय ,क्या प्रवाह क्या शब्द सब जबरदस्त वाह वाह 

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 3, 2012 at 1:39pm

योगराज प्रभाकर जी आपको प्रणाम एवं दिल से आभार इस स्नेह-वर्षा हेतु ,,,,,,,,,


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on December 3, 2012 at 1:23pm

कवि राज बुन्देली जी वाह !! एक से बढ़ कर एक छंद कहे हैं, पढ़ कर मन आनंदित हो उठा। मेरी हार्दिक बधाई  स्वीकारें मान्यवर।

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 3, 2012 at 12:18pm

वीनस केसरी  जी आपको प्रणाम एवं दिल से आभार इस स्नेह-वर्षा हेतु ,,,,,,,,,

Comment by कवि - राज बुन्दॆली on December 3, 2012 at 12:17pm

arun kumar nigam  जी आपको प्रणाम एवं दिल से आभार इस स्नेह-वर्षा हेतु ,,,,,,,,,

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक धन्यवाद।"
1 hour ago
surender insan commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - सुनाने जैसी कोई दास्ताँ नहीं हूँ मैं
"आदरणीय नीलेश भाई जी सादर नमस्कार जी। अहा! क्या कहने भाई जी बेहद शानदार और जानदार ग़ज़ल हुई है। अभी…"
3 hours ago
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"बहुत खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो"
8 hours ago
Aazi Tamaam commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"अच्छी रचना हुई आदरणीय बधाई हो"
8 hours ago
Aazi Tamaam commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"अच्छी ग़ज़ल हुई आदरणीय बधाई हो 3 बोझ भारी तले को सुधार की आवश्यकता है"
8 hours ago
Aazi Tamaam commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल -मुझे दूसरी का पता नहीं ( गिरिराज भंडारी )
"खूबसूरत ग़ज़ल हुई आदरणीय इस बह्र पर हार्दिक बधाई"
8 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सुरेंद्र इंसान जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
8 hours ago
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"बहुत शुक्रिया आदरणीय भंडारी जी इस ज़र्रा नवाज़ी का"
8 hours ago
surender insan commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई जी  छन्न पकैया (सारछंद) में आपने शानदार और सार्थक रचना की है। बहुत बहुत बधाई…"
10 hours ago
surender insan commented on Aazi Tamaam's blog post तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या
"आदरणीय आज़ी भाई आदाब। बहुत बढ़िया ग़ज़ल के लिए बधाई स्वीकार करे जी।"
10 hours ago
surender insan commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सौरभ जी सादर नमस्कार जी। ग़ज़ल पर आने के लिए और अपना कीमती वक़्त देने के लिए आपका बहुत बहुत…"
10 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
गिरिराज भंडारी commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post छन्न पकैया (सार छंद)
"आदरणीय सुरेश भाई ,सुन्दर  , सार्थक  देश भक्ति  से पूर्ण सार छंद के लिए हार्दिक…"
14 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service