For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")


प्रिये तुम प्रिये तुम कहाँ गुम कहाँ गुम
तुझे ढूढूं दिन रैना हो के मैं भी गुम

तेरे बिन दिल को चैन नहीं है
मन कहे मुझसे तू यहीं कहीं है
शब् भर आँखें जाग रहीं है
निन्दिया मुझसे मेरी भाग रही है

वो जो पायलिया पहनी थी तुमने
करे हरदम कानों में रुन झुन

प्रिये तुम प्रिये तुम कहाँ गुम कहाँ गुम
तुझे ढूढूं दिन रैना हो के मैं भी गुम

हर-सू गुलशन में फूल खिले हैं
चाहत की राहों में खार मिले हैं
पंछी करते हैं अब शोर सुबह से
लेकिन मेरे तन्हा होंठ सिले हैं

सर्दी के मौसम में दिल ये जले है
अँखियों से गिरती है शबनम

प्रिये तुम प्रिये तुम कहाँ गुम कहाँ गुम
तुझे ढूढूं दिन रैना हो के मैं भी गुम

मुझको नहीं आता है तुझे मनाना
तू तो रूठी है यूँ करके बहाना
दिल के अन्दर कोई देख न पाता
क्यूँ पत्थर दिल मुझको कहे ज़माना

घूमे थे संग संग जिन गलियों में
फिरता हूँ अब तो मैं गुमसुम

प्रिये तुम प्रिये तुम कहाँ गुम कहाँ गुम
तुझे ढूढूं दिन रैना हो के मैं भी गुम

अब न सता तू लौट के आजा
बदली बनके बंजर दिल में छा जा
साँसे कहती मेरी जान है तू ही
जिस्म में बनके मेरी रूह समा जा

अक्स हूँ तेरा मैं तो हमदम
मिल जाओ तो हो जाएँ हम तुम

प्रिये तुम प्रिये तुम कहाँ गुम कहाँ गुम
तुझे ढूढूं दिन रैना हो के मैं भी गुम

संदीप पटेल "दीप"

Views: 418

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Shyam Narain Verma on December 13, 2012 at 3:17pm

BAHOT KHOOB

 

Comment by SANDEEP KUMAR PATEL on December 12, 2012 at 5:33pm

आप  सभी का इस जर्रानवाजी के लिए हृदय से शुक्रिया और सादर आभार
ये स्नहे अनुज पर यों ही बनाये रखिये

आदरणीय झा साहब ये दिल की दास्ताँ है
और लगता है सब कवी विरह श्रृंगार को ऐसे ही देखते होंगे तो
इसीलिए ये इत्तेफाक हुआ होगा

Comment by Dr.Ajay Khare on December 12, 2012 at 2:04pm

bichoh ka marmik chintan and lekhan sandeep ji aap badai ke hakdaar he


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on December 12, 2012 at 12:37pm

 संदीप पटेल जी..

प्रिय के विछोह को बर्दाश न कर पाते... 

 साथ को तड़पते ह्रदय के शालीन उद्गारों को सुन्दर अभिव्यक्ति मिली है...हार्दिक बधाई 

Comment by अरुन 'अनन्त' on December 12, 2012 at 11:11am

सुन्दर गीत रचा है संदीप भाई बधाई स्वीकारें

Comment by वीनस केसरी on December 12, 2012 at 2:02am

शानदार ...

Comment by राजेश 'मृदु' on December 11, 2012 at 7:05pm

 ''संग-संग घूमे जिन गलियों में/वे भी हैं गुमसुम-गुमसुम/प्रिये कहां तुम, प्रिये कहां तुम.....मैंने यह गीत कल ही लिखा है और अजब इत्‍तेफाक है ठीक वही संवेदना आपके मन में आई और आपने कलमबद्ध कर दिया ।  बहुत बधाई

Comment by arvindsamir on December 11, 2012 at 6:08pm

deep ji virah geet achcha hai.badhai swikar karein.samiir

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
15 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
17 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service