चारों तरफ अगर रौशनी का जाल फैला हो मगर इंसान के मन में अँधेरा हो तो शायद एक कदम भी ठीक से नहीं रख सकता. अपनी उलझनों में डूबता उतराता मनुष्य संयम भी खो देता है और परेशानियों के सागर के तल में खुद को खोने लगता है.
ये धर्म गुरु भी ना बस प्रवचन करना जानते हैं और कुछ नहीं , कोई चढ़ावे ना चढ़ाए तब देखो कैसा ज्ञान देते हैं ये हमको,. पेट भरा हो तो सब अच्छी अच्छी बातें करते हैं मगर ये प्रवचन किसी का पेट तो नहीं भर सकते. पिताजी का ब्यापार ठीक से चल नहीं रहा है और उसका पढ़ाई में बिलकुल मन नहीं लग रहा है. लगेगा भी कैसे - बस खाना खाओ , पढो और सो जाओ, औरो की तरह जीवन में अलग सा कुछ भी नहीं . सभी कॉलेज की तरफ से घूमने गए , उसके लिए २ हजार भी नहीं थे घर में की वो भी अपने दोस्तों के साथ घूमने जा सकता था. बस एक ही बात अभी समय ठीक नहीं है, बिज़नस ठीक से नहीं चल रहा है, बाद में चले जाना.,,
कॉलेज में स्पोर्ट्स की वजह से छुट्टी थी, माँ ने पिताजी का टिफ़िन तैयार किया और सुदीप को कहा जाकर दूकान पर देकर आ जाओ. सुदीप ने नाक भौं सिकोड़ी मगर जाना ही पड़ेगा . दूकान पर पहुचते ही पिताजी को टिफ़िन देकर बाहर जाने लगा की पिताजी ने रोक लिया -अरे सुदीप आज तुम यहाँ आ गए हो तो एक काम कर दो, ये पेमेंट देने जाना था -सुरेश आज छुट्टी पर है तुम ये पैसे "पॉवर पैक" में देकर आ जाओ , सुदीप ने पैसे का लिफाफा और पता लिया निकल पडा - पॉवर पैक फैक्ट्री जादा दूर नहीं थी,,,जैसे ही सुदीप गेट-कीपर को अपना नाम लिखाकर अन्दर जाने ही वाला था सामने से उसका क्लास मेट अर्जुन कार में आ रहा था,,,सुदीप उसे देख कर चौंक गया, कॉलेज में तो बहुत ही साधारण तरीके से आता है , अभी इतनी लम्बी कार में,,,अर्जुन सुदीप को देखते ही रुक गया,,,सुदीप ने पुछा तुम यहाँ ? अर्जुन ने हँसते हुए कहा हाँ ये मेरी फैक्ट्री है - दादा जी और पापा बैठते हैं मैं तो कभी कभी खाली समय में आ जाता हूँ, कॉलेज ख़तम होने के बाद बैठूगा. आखिर अभी से ध्यान नहीं दूंगा तो काम कैसे सीख पाऊँगा..और उसे साथ लेकर अन्दर चला गया, अपने दादा जी और पापा से सुदीप का परिचय कराया. दोनों ने ही सुदीप को प्यार से बैठाया, और उसके पिता की बहुत तारीफ़ की, बहुत ही इमानदार और मेहनती इंसान हैं तुम्हरे पिता , सुदीप अब पढ़ाई के बाद तुम्हें उनके स्वास्थय को ध्यान में रखकर काम में हाथ बंटाना चाहिए, मगर सुदीप के सपने तो बहुत ऊंचे थे, वो तो बाहर पढाई के सपने देख रहा था, खैर पेमेंट देकर अर्जुन के साथ बाहर आ गया , अर्जुन ने कार से उसे उसके घर छोड़ दिया, सुदीप सोच रहा था क्या मजे हैं इनके, इतनी बड़ी फैक्ट्री , लम्बी सी गाडी, आलिशान बँगला, और हम एक पुराने से घर में रहते हैं , छोटी सी कोठरीनुमा दुकान ,,,कहाँ ये लोग कहाँ हम लोग,,एक दो दिन में पिताजी से बात करूंगा .
और आज रविवार समय मिल ही गया , जैसे ही पिताजी चाय पीकर , न्यूज़ पेपर लेकर आराम चेयर पर बैठे और सुदीप को चश्मा लाने के लिए कहा...सुदीप अपने लिए चेयर लेकर पिताजी के सामने बैठ गया,,,और चश्मा खुद ही पिताजी को पहना कर कहने लगा पापा आप से एक बात कहनी है ,,,,हाँ हां कहो - तुम कुछ कभी कहते ही नहीं,,,पढाई तो ठीक चल रही है ना, बेटा अभी बाजार से माल नहीं खरीद पा रहा हूँ ,तुम्हारी बहन की शादी के बाद हाथ थोडा तंग हो गया है इसीलिए तुम्हें पैसे नहीं दे पाया था...अच्छा हाँ बोलो क्या कह रहे थे....
सुदीप ने लम्बी सांस भरी और कहा पापा आपने मुझे जहां पेमेंट के लिए भेजा था वो मेरे दोस्त की फैक्ट्री है , वो लोग इतने धनाढ्य है और हमारे पास कुछ नहीं हम कब तक ऐसी हालत में रहेंगे,,,अगर नहीं चलता है तो ये बिज़नस बदल दीजिये....पिताजी ने हँसते हुए कहा ,,,अब तुमने बात छेड़ ही दी है तो सुनो...इंसान को अपने लक्छ्य से डिगना नहीं चाहिए...एक उदाहरण के तौर पर ,,,जब घर में लाइट चली जाती है इंसान अँधेरे में ही रखी मोमबत्ती और माचिस ढूढ़ लेता है क्योंकि उसे दिशा पता है अपने घर के हर कोने में क्या रखा है - मगर दूसरी जगह वह अँधेरा क्या प्रकाश में भी नहीं ढूढ़ पाता है क्योंकि उसे ठीक से पता नहीं होता क्या करना है ...और जिनके यहाँ तुम गए थे उसके पिताजी श्री अनुपम (अर्जुन के दादाजी) पहले हमारी कंपनी से माल खरीदते थे जब मैं एक कंपनी में मेनेजर था, जब वो हमारे पास आते थे तब चाय भी नहीं पीते थे, एक दिन मैंने उनसे पूछा अनुपम जी आप चाय क्यों नहीं पीते हैं तब अनुपम जी ने कहा -भाई मेरा छोटा सा काम, जब मेरे यहाँ लोग आते हैं मैं उन्हें चाय नहीं पिला पाता हूँ क्योंकि जितनी कमाई होती है उससे घर खर्च ही मुश्किल से चलता है , तो मैं कैसे खुद का सत्कार लूं. छोटे छोटे खर्चों में कटौती कर के ही लक्षय की प्राप्ति करनी है,,, वो दिन और आज का दिन क्या नहीं है उनके पास , उनके बेटे ने उनके साथ पूरा सहयोग करके इतनी बड़ी फैक्ट्री बनायी,कहकर पिताजी कुछ सोचने लगे , मगर सुदीप ,,,,सुदीप के मन में भविष्य का सूरज उद्दीप्त्मान होने लगा था,,,नयी प्रेरणा , नयी ऊर्जा ,,,,और उसके पिता जी का लक्षय जो अब उसका अपना लक्षय था,,,,बस कुछ समय और फिर वो भी उन्हीं ऊंचाइयों को छुएगा,,,येही है सच्ची मन की रोशनी,,,,
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बहुत सुन्दर प्रेरणादायक कहानी सुमन जी बधाई स्वीकारें.
आदरणीया सुमन जी,
आपकी यह प्ररणास्पद कहानी अच्छी लगी । सभी के लिए अच्छा संदेश है इसमें।
साधुवाद !
विजय निकोर
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