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"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 27 (Now closed with 503 Replies)

आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर वन्दे |

ओबीओ लाईव महा-उत्सव के 27 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है | पिछले 26 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने 26 विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलम आज़माई की है | जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तेज़ करने का अवसर प्रदान करता है |

इस आयोजन के अंतर्गत कोई एक विषय या एक शब्द के ऊपर रचनाकारों को अपनी रचनाएँ प्रस्तुत करना होता है | इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है:-

"OBO लाइव महा उत्सव" अंक - 27
 

विषय -  संकल्प 

आयोजन की अवधि-  6 जनवरी-13 दिन रविवार से 8 जनवरी-13 दिन मंगलवार तक

नया वर्ष विगत वर्ष की कोख से ही पैदा होता है । उसी के गुण-धर्म लेता है । यह अवश्य है कि हम अपने अनुभवों के लिहाज से कुछ और समृद्ध होते हैं। अपनी उपलब्धियों को जी सकने के क्रम में हम और परिपक्व हुए होते हैं। अपनी गलतियों को समझने और परिष्कार करने के क्रम में हम थोड़ा और संयत हुए होते हैं । जहाँ व्यक्तिगत उपलब्धियों से व्यक्तिगत लाभ होता है, वहीं सामुदायिक और सामाजिक उपलब्धियों का आकाश अत्यंत विस्तृत होता हुआ जगती को लाभान्वित करता है । ठीक उसी तरह, गलतियाँ वैयक्तिक होती हैं तो उनसे एक व्यक्ति या उस परिवार के कुछ सदस्य प्रभावित होते हैं, लेकिन सामुदायिक और सामाजिक लिहाज से हुई गलतियों का ख़ामियाज़ा मात्र वर्ग, समुदाय या समाज ही नहीं, कई-कई बार सम्पूर्ण राष्ट्र भोगता है ।

क्यों न हम अपने औचित्यों, अपनी उपलब्धियों तथा अपनी भूलों के संदर्भ में संल्कल्प लें ! जो हो गया उसकी क्षतिपूर्ति संभव नहीं. परन्तु, जो कुछ सार्थक बचा हुआ है उसे अक्षुण्ण रखने का संकल्प ! यह संकल्प व्यक्तिगत स्तर पर, सामाजिक स्तर पर अथवा राष्ट्रीय स्तर पर लिया जा सकता है ।

तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दे डालें अपने"संकल्प" को एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति | बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए | महा-उत्सव के लिए दिए विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते है | साथ ही अन्य साथियों की रचनाओं पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं ।

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --

तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक

शास्त्रीय-छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका इत्यादि)

अति आवश्यक सूचना : OBO लाइव महा उत्सव अंक- 27 में सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम तीन स्तरीय प्रविष्टियाँ ही दे सकेंगे | नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटा दिया जाएगा | यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी |

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 6 जनवरी-13 दिन रविवार लगते ही खोल दिया जायेगा ) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तो  www.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.


महा उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
मंच संचालक
सौरभ पाण्डेय (Saurabh Pandey)
(सदस्य प्रबंधन टीम)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीय मंच संचालक जी सादर, प्रथम प्रस्तुति के रुप में कुंडलिया छंद प्रस्तुत कर रहा हूँ स्वीकार करें.

 

दिल्ली के दरबार में,चले न जन का जोर,

बैठाए खुद  आपने, ,मन के काले चोर/

मन के काले चोर, कर रहे भाषणबाजी,

लगता है यह शोर,नहीं अब जनता राजी,

जन जन में आक्रोश,उड़ाते जब ये खिल्ली,

धर लो मन संकल्प,न जाएँ अबके दिल्ली//

 

दिल्ली हांड़ी काठ की, ताप बढे जर जाय,

शीत लहर है देश में, दिल्ली तो झुलसाय/

दिल्ली तो झुलसाय, सुरक्षित रही न नारी,

दिल वाला हि बताय,फ़ैल रहि क्या बीमारी,

ले लो इस वर्ष प्रण,झौंक दो पूरी सिल्ली,

होवे नहि  दुष्कर्म, बार दो  चाहे  दिल्ली//

जन जन में आक्रोश,उड़ाते जब ये खिल्ली,

धर लो मन संकल्प,न जाएँ अबके दिल्ली.........बिलकुल सबसे उत्तम संकल्प तो यही है 

परन्तु सिर्फ राजीतिक और प्रशासनिक व्यवस्था को कोसने से अब काम नहीं चलेगा समाज की सोच को भी परिमार्जन की आवश्यकता है ...... परिवर्तन समाज में होगा तो अन्य व्यवस्था स्वतः ही सुधरेगी या सुधरने के लिए मजबूर हो जायेगी 

बहुत सुन्दर कुण्डलिया 

आदरेया सीमा जी सादर, आपका कहना ही सही है कि हमें खुद और समाज में सुधार लाना होगा.आपसे छंद पर सराहाना पाकर छंद प्रयास को बल मिला. सादर आभार.

सामयिक घटनाओं के क्रम में कवि ह्रदय का आक्रोश स्पष्ट दोनों कुण्डलियों में दिखता है, सुन्दर रचना और सार्थक अभिव्यक्ति पर बधाई स्वीकार करें ।

आदरणीय बाग़ी जी सादर,आपसे कुंडलिया छंद के भावों कि स्पष्टता पर बधाई पाकर मेरे प्रयास को सम्बल मिला. आपका कोटिशः आभार.

स्वागत है आदरणीय ।

रक्ताले सर वर्तमान परिस्थिति में हो रही छोटी-२ गतिविधियों का कुंडलिया के रूप में बहुत सही वर्णन किया है, इस तरह की प्रण अगर मानव ह्रदय में व्याप्त हो जाये तो कल्याण हो जायेगा. हार्दिक बधाई सर.

भाई अरुण जी यह संकल्प तो पूरा करना ही है.आपने कुंडलिया छंद के सामयिक घटनाओं वाले पहलू की बारीकियों को पढ़ा,मेरी मेहनत का फल मिला. आपका सादर हार्दिक आभार.

बहुत सुन्दर कुण्डलिया छंदमें संकल्प के साथ दिल्ली में हो रहे व्यभिचारो के प्रति आगाह करती रचना के लिए हार्दिक बधाई श्री रक्तालेजी
 

धर लो मन संकल्प ये, जिनकी छवि हो साफ़

भेज उनको ही चुनके, चूक न हो फिर  माफ़  ।

आदरणीय लड़ीवाला साहब सादर, दिल्ली ही दिल है साहब पूरे देश को रक्त संचार वहीं से मिलता है.तब वहाँ कोई चूक कैसे स्वीकार करें.आपने दोहा छंद में जो इशारा किया है वह भी बिलकुल सटीक है. सादर आभार.

आदरणीय अशोक सर जी सादर प्रणाम
आपने तो हकीकत बयान कर दी है इन दोनों छंदों के माध्यम से
इक दम खरी खरी बात कही है
साधुवाद आपको

आदरणीय सदीप जी सादर, व्यवस्था में सुधार जरूरी है कुछ हम सुधरें कुछ तुम सुधारो तभी देश के हालात सुधरेंगे. आपको यह भाव पसंद आये जानकार प्रसन्नता हुई. सादर आभार.

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