आप सभी के समक्ष महाभागवत प्रजाति का छंद 'कामरूप' प्रस्तुत किया जा रहा है | यह 'बैताल' छंद नाम से भी जाना जाता है | 'मदन' छंदया रूपमाला पर अभ्यास करने वाले छन्दकारों के लिए इसे रचना अत्यंत सहज होगा |
छंद 'कामरूप'
(चार चरण, प्रत्येक में ९,७,१० मात्राओं पर यति, चरणान्त गुरु-लघु से)
छब्बीस मात्रा, प्रति चरण है, क्या गज़ब की धार.
है चार चरणीं, अंत गुरु लघु, शिल्प ही आधार.
नौ सात पर हो, यति सुशोभित, बाँटता यह प्यार.
दस शेष मात्रा, प्रति चरण ही, छंदमय अभिसार.
----अम्बरीष श्रीवास्तव
उदाहारण :
दे दन दना दन, मार चाबुक, लाल मिर्ची डारि.
ली लूट इज्जत, अब मरेगा, मातु-मातु पुकारि.
जा मार दीजै, उर अधम वह, कह रही है नारि.
ले हाथ फंदा, दंड फाँसी, माँगती सुकुमारि..
छंद त्रिभंगी की तरह थोड़े से प्रयास से इसके प्रत्येक चरण में नियमानुसार आई प्रत्येक यति पर इसे समतुकांत करके इसके सौंदर्य में श्रीवृद्धि भी की जा सकती है यथा .....
दे दन दना दन, मार दन दन, लाल मिर्ची डारि.
ली लूट इज्जत, झेल हुज्जत, मातु-मातु पुकारि.
आ मार इसको, उर अधम जो, कह रही है नारि.
ले हाथ रस्सी, दंड फाँसी, माँगती सुकुमारि..
--अम्बरीष श्रीवास्तव
इसी प्रकार से आदरणीय आलोक सीतापुरी जी द्वारा रचित छंद देखें ....
मांगें युवतियाँ, ठोंक छतियाँ, न्याय दे सरकार.
जो पुरुष कामी, नारि गामी, बदचलन बदकार,
ये लाज लूटे, भाग फूटे, देव इसको मार.
फाँसी चढ़ा दो, सर उड़ा दो, हो तभी प्रतिकार..
--आलोक सीतापुरी
यद्यपि इसकी कोई अनिवार्यता नहीं है
हमें विश्वास है कि आप सभी मित्रगण इस छंद पर यथासंभव जोर-आजमाइश अवश्य करेंगें |
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1. अर्थात एक पंक्ति के तीन भाग होंगें एवं पहले भाग में 09 मात्रा दूसरे में 07 मात्रा एवं तीसरे में 10 मात्रा होंगें जो कुल मिलाकर 26 मात्राएं होंगी
2. इस तरह चार पंक्तियां 26-26 मात्रा की लिखनी है
3.प्रत्येक पंक्ति समतुकान्त होगी गुरु- लघु से जैसे डारि/पुकारि/नारि/सुकुमारि
4.इसे प्रत्येक यति को समतुकांत भी कर सकते हैं यथा युवतियाँ/छतियाँ/रतियां, कामी/गामी/नामी, लूटे/फूटे/कूटे
आदरणीय अम्बरीष जी क्या मैं ठीक समझ रहा हूं ? प्रसंग से हटकर एक प्रश्न और है वह ये कि तुकांत क्या हमेशा सममात्रिक ही होने चाहिए यथा राम/काम इसे यदि राम/अभिराम कर दें तो पद्य रचना में ऐसी तुक क्या निकृष्ट कोटि की मानी जाती है कृपया शंका समाधान करें ।
स्वागत है आदरणीय राजेश जी | आप ने बिल्कुल सही समझा है | यदि तुकांत सममात्रिक हो सकें तो और भी अच्छा है परन्तु जहाँ तक, मेरी जानकारी है ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है ! यदि तुकांत सममात्रिक न भी हो ऐसी तुक को निकृष्ट कोटि का नहीं माना जाना चाहिए बशर्ते सम्बंधित छंद का प्रवाह/गेयता बाधित न हो | सादर
शंका समाधान के लिए बहुत आभारी हूं, सादर
आदरणीय राजेशजी,
//तुकांत क्या हमेशा सममात्रिक ही होने चाहिए यथा राम/काम इसे यदि राम/अभिराम कर दें तो पद्य रचना में ऐसी तुक क्या निकृष्ट कोटि की मानी जाती है//
आपने प्रश्न किया सममात्रिकता पर और अंतर्निहित उदाहरण समशाब्दिक है. आपका आशय क्या है, आदरणीय ? क्यों कि समशाब्दिक तुकांता और सममात्रिक तुकांतता में भिन्नता है.
समशाब्दिक तुकांतता अच्छी नहीं मानी जाती है.
तुकांतता में सममात्रिक तुकांतता एक अनिवार्य शर्त होती है अन्यथा तुकांतता शिल्प के हिसाब से दोषपूर्ण हो जायेगी.
आगे, आदरणीय, आप जो समझें.
आदरणीय मैंने तो राम/काम को तीन मात्रा समझकर सममात्रिक लिखा । समशाब्दिक तुकांतता/सममात्रिक तुकांतता का ज्ञान मुझे नहीं है, निवेदन है कि दोनों के एक-दो उदाहरण दें तो इसका कुछ ज्ञान हमें भी हो जाए, सादर
//राम/काम को तीन मात्रा समझकर सममात्रिक लिखा//
आदरणीय राजेशजी, आपने सही ही कहा है. यह सममात्रिक शब्द हुए.
समशाब्दिक तुकांतता का अर्थ वही हुआ जो राम-अभिराम से निस्सृत है. यानि, राम की तुक में (अभि)राम का आना, जिसे पद्य के मूल आचरण के अनुसार बहुत अच्छा नहीं माना जाता. यह रचनाकार की शब्द कमी होगी यदि तुकांतता के लिए पंक्तियों में वही-वही शब्द प्रयुक्त हों.
यही कारण है कि निम्नलिखित वाक्यांश को पढ़ कर मैं थोड़ा असहज हो गया -
यदि तुकांत सममात्रिक हो सकें तो और भी अच्छा है परन्तु जहाँ तक, मेरी जानकारी है ऐसी कोई अनिवार्यता नहीं है ! यदि तुकांत सममात्रिक न भी हो ऐसी तुक को निकृष्ट कोटि का नहीं माना जाना चाहिए बशर्ते सम्बंधित छंद का प्रवाह/गेयता बाधित न हो
ऐसा जिस विशिष्ट छंद के लिए अनुमन्य है वह साझा होना चाहिये था. अन्यथा, तुक तो सममात्रिक ही होते हैं. तभी तुकांतता अन्त्यानुप्रास की श्रेणी में आती है.. . :-)))
तुकांतता पर महत्वपूर्ण जानकारी साँझा करने के लिए आभार आदरणीय
धन्यवाद आदरणीय
आदरणीय अम्बरीश जी
उपरोक्त छंद में चारों चरणों का सम्तुकांत होना अनिवार्य नहीं है।
सम्तुकान्तता दो -दो चरणों में रखना भी मान्य होगा।
आलेख में उद्धृत सभी उदाहरण चारों पंक्तियों में सम्तुकान्तता के ही हैं ........
सादर.
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