हम सभी ईश्वर के बारे में बात करते हैं। बहुत से ईश्वर में विश्वास भी करते हैं। किन्तु क्या कभी भी हम इस बात पर विचार करते हैं की ईश्वर से हमारा क्या सम्बन्ध है। हममें से बहुतों के लिए ईश्वर उस परम शक्ति का नाम है जिसने इस संसार की रचना की है। जो ऊपर कहीं आसमान में रहती है और हमारा पालन करती है। हमें जब भी किसी वास्तु की आवश्यकता होती है हम उसे पाने के लिए ईश्वर की प्रार्थना करते हैं। किसी मुसीबत में होने पर मदद के लिए उसे पुकारते हैं। हमारे लिए ईश्वर हमसे पृथक एक सत्ता का नाम है।
वास्तव में ईश्वर हमारा सबसे अन्तरंग मित्र है। जिस पर हम पूर्ण विश्वास कर सकते है। वह हमारा परम हितैषी है जो हमें सही मार्ग दिखाता है। वो हमसे पृथक नहीं है वरन वह हमारे ह्रदय में रहता है और वहीँ से हमें उचित एवं अनुचित का ज्ञान कराता है। वह हमारी अंतरात्मा की आवाज़ के द्वारा हमसे वार्तालाप करता है। किन्तु यह सब वह चुपचाप करता है। वह कभी भी हमारे कार्यों में दखल नहीं देता है।
ईश्वर हमारे भीतर है किन्तु हम उसे बाहर खोजते हैं। ईश्वर से हमारा सम्बन्ध केवल हमारी आवश्यकताओं तक ही सीमित है। जब हमें किसी वास्तु की आवश्यकता होती है या जब हम किसी कठिनाई में होते हैं तभी हम ईश्वर को याद करते हैं। इस स्तिथि में हम अपनी फ़रियाद लेकर मंदिर, मस्जिद, गुरूद्वारे या गिरिजाघर में ईश्वर की तलाश करते हैं। हम प्रतिमाओं, धार्मिक चिन्हों अथवा धर्म ग्रंथों में उसकी छवि तलाशते हैं। किन्तु उसे अपने भीतर नहीं खोजते हैं। यह हमारा स्वार्थ है की हम ईश्वर को केवल हमारी आवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली सत्ता के रूप में ही देखते हैं। अतः उसे केवल बाहरी वस्तुओं में ही खोजते हैं। जबकि ईश्वर हमारे भीतर है।
"भगवान मूर्तियों में नहीं है.आपकी अनुभूति आपका इश्वर है.आत्मा आपका मंदिर है." [चाणक्य]
ईश्वर हमारे अन्दर एक मूक द्रष्टा बनकर रहता है. वह कभी भी हमारे कार्यों में दखल नहीं देता है। वह केवल हमें उचित का एहसास कराता है। जब हम अपने स्वार्थों से ऊपर उठ कर केवल ईश्वर के लिए ईश्वर को खोजते हैं तब हम उसे अपने भीतर पाते हैं। तब हमारी ईश्वर की तलाश हमारे भीतर आकर ख़त्म हो जाती है और हम परम आनंद को प्राप्त करते हैं।
ईश्वर कभी भी हमसे दूर नहीं है। वह सदैव हमारे साथ है। हम ही स्वयं को उससे दूर रखते हैं। जब हम अपने स्वार्थ को त्याग कर उसकी ओर कदम बढाते हैं तब उसे अपने नज़दीक पाते हैं।
Tags:
adarneey ASHISH KUMAAR TRIVEDI g apake vichaar katthya bahot hi uttam hai........
"भगवान मूर्तियों में नहीं है.आपकी अनुभूति आपका इश्वर है.आत्मा आपका मंदिर है." [चाणक्य] param satya hai
धन्यवाद
श्री आशिष कुमार जी,
आपके उच्च विचार और मंथन से उभरे यह शब्द एक नई दिशा की ओर ले जाते हैं हमें !
बहुत सराहनीय लेखन है आपका और खुशी हुई हमें यहाँ आकर...
धन्यवाद
- पंकज त्रिवेदी
धन्यवाद
धन्यवाद
सही बताया आपने श्री आशीष कुमार त्रिवेदी जी -
इश्वर को को स्वार्थ से ऊपर उठकर, स्वयं में ही खोजना होगा
स्वार्थ से ऊपर उठकर खोजेंगे, तो उसे हम अपने भीतर ही पाएंगे |
मूर्तिया तो साधन मात्र है, प्रारंभ में अपने मन में भाव जगाने को,
गर भाव जगा तो अपने भीतर ही पाकर परमान्द प्राप्त कर पायेंगे | - तभ तो गाते है -
मेरे मन मदिर में भगवान्,बना मंदिर आलिशान
ऐसे आध्यामिक चिंतन के लेख द्वारा चेतना लाने के महती कार्य के लिए हार्दिक धन्यवाद
THANK YOU
बहुत सुंदर आलेख मुझे बहुत पसंद आया क्योंकि मैं भी यही विचार रखती हूँ मैं मूर्ति पूजा आदि पाखंड या अंधविश्वास को नहीं मानती अच्छे कर्म करना बुरे वक्त में दूसरों कि मदद करना किसी का दिल ना दुखाना सबसे बड़ी पूजा है ईश्वर ख़ुद हमारे अन्दर है ,यदि मैं किसी मन्दिर में जाती हूँ तो सच मानिये मैं वहां की मूर्तियों के पीछॆ के कलाकार की मेहनत और मूर्ति की खूबसूरती को देखती हूँ और सराहती हूँ बहुत बहुत आभार इस आलेख को पढ़वाने हेतु|
THANK YOU
धन्यवाद
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |