For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

आध्यात्मिक क्षेत्र में शून्य होते हुए भी आज कुछ लिखने का सत्प्रयास करने जा रही हूं।विद्वता दिखाने के लिए नहीं,न ही उपदेश देने के लिए बल्कि इसलिए कि विषय पर कुछ चिन्तन करेगे,लिखेगे,पढेंगे और फिर आपके बिचारों से अवगत होंगे तो शायद अनत:करण के नेत्र कुछ सकेंगे।आप सब सुधीजनों को नमन करते हुए सहयोग की सादर आकांक्षी हूं)
हम बचपन से सुनते आए हैं
'ईश्वर अंश जीव अबिनासी।
चेतन अमल सहज सुखरासी।।
जीव 'सुहज सुखराशि' होते हुए भी हमारे भीतर और बाहर भी चारों ओर दुख और अशान्ति की आहें क्यों प्रतिध्वनित होती रहती हैं?सर्व वैभव सम्पन्न जन भी अनेकानेक कामनाओं की पूर्ति हेतु भव्य यज्ञादि के आयोजन करते हुए क्यों दीखते हैं?कड़ी सुरक्षात्मक व्यवस्था के बीच भी भयाक्रान्त रहते हैं चैन की नींद नहीं सो पाते!ये 'सुख' है क्या?कहां मिलेता है?जिसके पीछे दौड़ते हम हृदय शान्ति तक की तिलांजलि दे बैठते हैं।
सामान्यत: हम इन्द्रयों की तुष्टि को सुख मानते हैं। इन्ही को तुष्ट करते करते सोंचते ही रह जाते हैं कि अब शान्ति मिलेगी अब हम सुख को प्राप्त हो जाएंगे लेकिन ये इन्द्रियां खुजली के समान हैं,जितनी देर खुजलाते रहो अच्छा लगेगा परन्तु ज्यों खुजलाना बन्द किया,और बेचैनी। ऐसे हम इनके दास बन जाते हैं,और 'साश्वत सुख' की ऐर हमारा ध्यान ही नही जाता।
यदि रथ के घोड़े आराम का आश्रय लेंलें तो रथी को गन्तव्य तक पहुंच पाएगा?कदापि नही!तो ये शरीर जो हमे साधनस्वरूप मिला है,को तुष्ट और पुष्ट करने मे हमे लक्ष्य मिल पाएगा! यदि विषयों का भोग हमें सुखी कर पाता तो दुनियां के भोगोंको त्याग हमे सोने की इच्छा क्यों होती?जब सोने के बाद(विषयों का त्याग के बाद) हमे इतनी शान्ति मिलती है तो सिद्ध हो गया सुख 'विषयों के भोग' मे कहां 'विषयों के त्याग' मे है।
हमारे शरीर का सम्बन्ध तो संसार से है,संसार को गीता जी में कहा गया है- 'दु:खालयम्'।तो भला हम संसार मे रहकर सुख की अपेक्षा कर सकते हैं! जब हम भोजनालय में भोजन की,पुस्तकालय मे पुस्तक की ही अपेक्षा करते हैं तो दुखालय में सुख की अपेक्षा कैसे कर लेते हैं!ये बात आत्मसात करने की आवश्यकता है। गांधी जी कहते हैं-'यह शरीर साक्षात् नकर के समान है,इसमे सड़ने गलने वाले दुर्गन्धयुक्त पदार्थ भरे हुए हैं...परन्तु ऐसे शरीर को भी ह स्वर्ग समझ बैठते हैं''
यदि सुख पाना ही है तो हमे शरीर से उठकर आत्मा का संग करना होगा।आत्मा परमात्मा का साशावत् सखा है,उसी का अंश है,शरीर रूपी साधन और भौतिक सुख-सुविधाओं के बारे में ही सोंचत रहने से आत्मा और परमात्मा का विच्छेद होता है।
पतंजलि योगसूत्र मे कहा गया है-
''निमित्तम प्रयोजकं प्रकृतीनां वरण भेदस्तु तत: क्षेत्र किवत्''(४.३)
अर्थात जिस प्रकार खेत मे पानी लाने के लिए केवल मेड़ काटकर जलश्रोत से सम्बन्ध जोड़ देने से पानी प्रबाहित होने लगता है उसी प्रकार जीवात्मा मे पूर्णता,पवित्रता और सम्पूर्ण शक्तियां विद्यमान हैं बस शरीर और मन के भौतिक बन्धनों की मेड़ काटकर उसका सम्बन्ध भर परमात्मा से जोड़ने की आवश्यकता होती है।एक बार ध्यान शरीर के सुखों से हटकर आत्मा में केन्द्रित हो जाए तो आत्मा परमानन्द को प्राप्त हो जाए।
कहते हैं आत्मा 'नित्य सर्वगत:'- (गीता२/२४ ) है,अर्थात् आकाशवत् है तो संसार के दुख उसे कैसे हिला सकते बस आवश्यकता है तो अपने अन्दर ही विद्यमान 'परमानन्द' को पहचानने की।
साश्वत सुख की अनुभूति सदा सबके साथ रहे।
सादर शुभकामनाओं के साथ वन्दना।

Views: 864

Replies to This Discussion

वंदना जी आपका लेख अच्छा है। सच है हमारे भीतर यदि ईश्वर का वास है तो हम इतने अशांत क्यों हैं। उसका कारण है हमारा अपनी इन्द्रियों के प्रति पूर्ण समर्पण। कुछ हद तक शरीर की आवश्यकताएं पूरी करना बुरा नहीं है। नश्वर होते हुए भी यह हमारे कर्मों का माध्यम है। अतः इसे पूर्णतया उपेक्षित करना भी सही नहीं है।

समस्या हमारी अति के कारण उत्पन्न होती है। जब हम सब कुछ भूल कर पूर्णतया इन्द्रियों के नियंत्रण में हो जाते हैं। अतः आवश्यकता संतुलन बनाए रखने की है।

भौतिक बन्‍धनों को काटकर परमात्‍मा से जुड़ना, मेरे हिसाब से तो असंभव है । हमें बंधनों सहित ही जुड़ना होगा क्‍योंकि हम संसारी जीव हैं बंधन काटने के चक्‍कर में घनचक्‍कर बन कर रह जाएंगें । हमारे बंधन भी उसी परमात्‍मा ने रचे हैं ।  मेरे हिसाब से अपनी हर संवेदना के साथ, अपनी नश्‍वरता के साथ भी यदि हम उस विराट का चिंतन करते चलें  आनंद जरूर रहेगा ।  कर्म तो करना पड़ेगा, भगवन ने अर्जुन को भी यही कहा था  हां एक विशिष्‍ट बात भी कही थी कि हर कर्म में मेरी प्रसन्‍नता का ध्‍यान रखो यानि ऐसा कर्म करो जिससे मुझे प्रसन्‍नता मिले और ईश्‍वर की प्रसन्‍नता एक ही चीज में है ''सर्वे भवन्‍तु सुखिन:,सर्वे सन्‍तु निरामया''

आदरणीय आशीष कुमार त्रिवेदी जी आपने बिलकुल सही कहा है-
‘‘जीव को दुःख का अनुभव सदैव होता रहता है जबकि सुख का अनुभव वह करने में असफल ही रहता है। सुख की जानकारी हमें दूसरों के मुख से ही पता चलती है। दुःख तो इस नश्वर संसार में अहंकार, मद, मोह, काम, लोभ आदि के कारण ही बना रहता है। और यह मायावी संसार/प्रक्रृति हमें इन्ही व्यसनों में लगाये रहती है। वास्तव में हम यह समझ नही पाते हैं कि हमें किस मार्ग का अनुसरण करना चाहिए।‘‘
(कथा का अंश...के0पी0सत्यम)

आदरणीय श्री आशीष महोदय,श्री राजेश महोदय,श्री केवल प्रसाद महोदय आपका सादर अभिनन्दन।
अपने विन्दु पर रोचकता दिखते हुए अपने विचारों से अवगत कराया इसके लिए हृदयातल से आभार!
आदरेय राजेश जी आपने बिल्कुल सही कहा कि भौतिकता के बन्धन तोड़ना असम्भव है।महोदय ऊपर लेख मे 'भौतिक बन्धनों की मेड़ काटने' का मतलब यह नही कि हम अपने भौतिक दायित्यों और सम्बन्धो को नकार दें बल्कि आत्मा और परमात्मा के मध्य जो दुनिया के झंझावातों की मेड़ अटक जाती है उसे काटते हुए आत्मा को उधर मोड़ना।
और यह तन संसारिक है इसे तो संसार की सेवा में समर्पित करना ही चाहिए पर आत्मा तो दिव्य है,इसे दिव्यता से जोड़ने के लिए मन को तर्क कुतर्क की झड़ी लगाते हुए क्यों इसी संसार मे लिप्त कर लेता है!
दूसरी बात ये कि यदि यह आत्मसात हो जाए कि यह संसार ही 'दुखरूप' है तो दुख भी सहजता से स्वीकार्य हो जाएंगे।
केवल प्रसाद जी आपने किसकी कथा के अंश प्रस्तुत किये हैं?महोदय कृपया 'प्रकृति' को और स्पष्ट करें जो कि आपने संसार के साथ लिखा है।
होलिकोत्सव आनन्द और प्रेम के रंगो से सराबोर हो,एसी शुभेच्छा के साथ वन्दना। सादर

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

धर्मेन्द्र कुमार सिंह posted a blog post

जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी में (ग़ज़ल)

1222 1222 122-------------------------------जो कहता है मज़ा है मुफ़्लिसी मेंवो फ़्यूचर खोजता है लॉटरी…See More
13 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . सच-झूठ

दोहे सप्तक . . . . . सच-झूठअभिव्यक्ति सच की लगे, जैसे नंगा तार ।सफल वही जो झूठ का, करता है व्यापार…See More
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a blog post

बालगीत : मिथिलेश वामनकर

बुआ का रिबनबुआ बांधे रिबन गुलाबीलगता वही अकल की चाबीरिबन बुआ ने बांधी कालीकरती बालों की रखवालीरिबन…See More
13 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक ..रिश्ते
"आदरणीय सुशील सरना जी, बहुत बढ़िया दोहावली। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर रिश्तों के प्रसून…"
13 hours ago
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"  आदरणीय सौरभ जी सादर प्रणाम, प्रस्तुति की सराहना के लिए आपका हृदय से आभार. यहाँ नियमित उत्सव…"
yesterday
Ashok Kumar Raktale replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा पाण्डे जी सादर, व्यंजनाएँ अक्सर काम कर जाती हैं. आपकी सराहना से प्रस्तुति सार्थक…"
yesterday
Hariom Shrivastava replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सूक्ष्म व विशद समीक्षा से प्रयास सार्थक हुआ आदरणीय सौरभ सर जी। मेरी प्रस्तुति को आपने जो मान…"
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आपकी सम्मति, सहमति का हार्दिक आभार, आदरणीय मिथिलेश भाई... "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार सर।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आ. भाई सौरभ जी, सादर अभिवादन।दोहों पर उपस्थिति, स्नेह और मार्गदर्शन के लिए बहुत बहुत आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ सर, आपकी टिप्पणियां हम अन्य अभ्यासियों के लिए भी लाभकारी सिद्ध होती रही है। इस…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 156 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक आभार सर।"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service