For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

!!! नवगीत !!!


अब तो आजा मीत मेरे, पलकें हो गई नम।
गीत में यूं दर्द छिपें हैं, सासें हो गई गर्म।।

जीवन इक पल का लगता है,
दिन लगता इक वर्ष।
रातें तारों जैसी लगती है,
अनगिनती हर पल।।..... अब तो आजा.....

तुम बिन सूनी सब गलियां,
सूना लगता है उपवन।
जलघट बिन पनघट जाती हूं,
छलक-छलक जाता यौवन।।..... अब तो आजा ...

अखिंयां राह बिछी फूलों संग,
बगिया हैं बौराए सब।
प्राण उड़-उड़ जाते पत्तों से,
रूक जाती दिल की धड़कन।।...... अब तो आजा ...

अंधड़ लू सी सांसे चलती हैं,
चांदनी मे जलता तन-मन।
सावन संग घनश्याम न आए,
बरस पड़े नयनों के शब ।।..... अब तो आजा .....


के0पी0सत्यम/मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 449

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 15, 2013 at 8:51pm

आ0 गुरूवर सौरभ सर जी,   जी सर!  आपके आशीष और स्नेह के प्रति तहेदिल से हार्दिक आभारी हूं।  सादर,


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 15, 2013 at 5:01pm

प्रयासरत रहें..

शुभेच्छाएँ.. .

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 13, 2013 at 9:02pm

आ0 कुशवाहा जी,  सर जी,  नवगीत की सराहना एवं अपार स्नेह के लिए आपका तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by PRADEEP KUMAR SINGH KUSHWAHA on May 13, 2013 at 4:39pm

अंधड़ लू सी सांसे चलती हैं,
चांदनी मे जलता तन-मन।
सावन संग घनश्याम न आए,
बरस पड़े नयनों के शब ।।..... अब तो आजा

बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति 

प्यारा सा गीत 

बधाई प्रिय केवल प्रसाद जी 

सस्नेह 

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 12, 2013 at 12:08pm

आ0 जवाहर लाल जी,   आपके स्नेह एवं उत्साहवर्धन के लिए तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 12, 2013 at 12:07pm

आ0  कुन्ती मैम जी,   आपके स्नेह एवं उत्साहवर्धन के लिए तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on May 12, 2013 at 12:06pm

आ0  श्याम नारायण जी,   आपके उत्साहवर्धन एवं स्नेह के लिए तहेदिल से हार्दिक आभार।  सादर,

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on May 12, 2013 at 5:47am

अंधड़ लू सी सांसे चलती हैं,
चांदनी मे जलता तन-मन।
सावन संग घनश्याम न आए,
बरस पड़े नयनों के शब ।।..... अब तो आजा .....

बहुत ही सुंदर विरह गीत ! 

Comment by coontee mukerji on May 11, 2013 at 6:24pm

बहुत सुंदर भावभीनी विरहगीत .केवल जी आप तो हर विधा के धनी है . /सादर / कुंती .

Comment by Shyam Narain Verma on May 11, 2013 at 6:09pm
बहुत बहुत बधाई इस सुन्दर रचना के लिए ……………..

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
19 hours ago
Sushil Sarna posted blog posts
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Monday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Monday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Monday
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Sunday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय"
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service