"OBO लाइव तरही मुशायरे"/"OBO लाइव महा उत्सव"/"चित्र से काव्य तक" प्रतियोगिता के सम्बन्ध मे यदि किसी तरह की जानकारी चाहिए तो आप यहाँ पूछताछ कर सकते है !
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वीनस जी, त्रुटि से अवगत कराने हेतु आभार, सुधार कर दिया गया है ।
SADAR
Abid ali mansoori जी,
http://www.openbooksonline.com/forum/topics/36
ग़ज़ल यहाँ पोस्ट करनी है जो कि अभी रिप्लाई आप्शन बंद है
फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 28 जून दिन शुक्रवार लगते ही खोल दिया जायेगा, और तीन दिन तक खुला रहेगा आयोजन समाप्त होते ही पुनः बंद कर दिया जायेगा
पिछले आयोजन का अवलोकन कर सकते हैं
http://www.openbooksonline.com/forum/topics/mus35
"अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं"
मंच संचालक महोदय,
ऐसी कठिन कठिन जमीन कहाँ से खोजते हैं भाई .... : - (
सही कहें तो समझ आ गया.. छुपे थे कहाँ
बड़े ग़ज़ब के हैं शातिर, मचल के देखते हैं ... .. . . :-)))))
इस बार के मुशायरे (अंक 36) का तरह मिसरा अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं बह्र मुजतस मुसम्मन् मख्बून मक्सूर के अनुसार है जिसका वज़्न १२१२ ११२२ १२१२ ११२ कहा गया है.
मेरा निवेदन है कि इस बह्र के वज़्न की छूट को स्पष्ट किया जाना चाहिये ताकि भ्रम की स्थिति न बने, जैसी अंक 34 के आयोजन के दौरान बन गयी थी. कई शुअरा ऐसी छूट लेने लगे थे जो उक्त बह्र के लिहाज़ से अमान्य थी.
सूचना है कि इस बह्र का वज़्न दो तरह से लिया जा सक्ता है --
१२१२ ११२२ १२१२ ११२
१२१२ ११२२ १२१२ २२
यदि मेरे कहे में कुछ संशोधन की गुंजाइश हो तो अवश्य अवगत करायें.
सादर
एक संशोधन -
छूट के अनुसार इस बह्र का अरकान एक ही ग़ज़ल में चार तरह से लिया जा सकता है --
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२
१२१२ / ११२२ / १२१२ / २२ + १
१२१२ / ११२२ / १२१२ / ११२
१२१२ / ११२२ / १२१२ / ११२ + १
यह बात भी ध्यान देने की है कि अरकान में अतिरिक्त लघु { +१ } लेने पर वह हर्फ़ मूल रूप से लघु मात्रिक हो,,,,
दीर्घ मात्रिक को गिरा कर लघु मानते हुए अतिरिक्त लघु रूप में जोड़ने पर लय भंग की स्थिति बन जाती है ...
(मगर दिक्कत यह है कि इसके भी १-२ अपवाद मौजूद हैं)
बहुत अच्छा हुआ कि तथ्य स्पष्ट हुए.
मिसरा के आखिर में एक अतिरिक्त लघु (लाम) का वज़्न लिया जाना तो सर्व मान्य है और इस छूट का लाभ शुअरा आवश्यकतानुसार लेते ही हैं.
//दीर्घ मात्रिक को गिरा कर लघु मानते हुए अतिरिक्त लघु रूप में जोड़ने पर लय भंग की स्थिति बन जाती है//
बहुत सही. यह उचित भी नहीं कि अरकान में आखिर में एक गुरु या ग़ाफ़ का वज़्न अतिरिक्त लिया जाये, जिसे गिरा कर पढा जाये.
vinas ji aapke margdarshan me kai baten samne aati hai .........naye logo ko bhram ki sthiti rahati hai . maine aapki gajal ko padhkar hi likhna sikha .ya yah kahoon sikhne ka prayas kar rahi hoon ...
आपकी ज़र्रा नवाज़िश है, मशकूर हूँ
यहाँ हम सभी एक दूसरे से सीख रहे हैं और एक दूसरे के मार्गदर्शक हैं ... कारवाँ चलता रहे
आमीन
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