For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

"ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक- 28  में आप सभी का हार्दिक स्वागत है.

 

प्रस्तुत चित्र अंतरजाल से साभार लिया गया है.

 

 

यह चित्र वाकई बहुत कुछ कहता है.

 

तो आइये, उठा लें अपनी-अपनी लेखनी और कर डालें इस चित्र का काव्यात्मक चित्रण ! हाँ.. आपको पुनः स्मरण करा दें कि  छंदोत्सव का आयोजन मात्र भारतीय छंदों में लिखी गयी काव्य-रचनाओं पर ही आधारित होगा.  इस छंदोत्सव में पोस्ट की गयी छंदबद्ध प्रविष्टियों के साथ कृपया सम्बंधित छंद का नाम व उस छंद की विधा का संक्षिप्त विवरण अवश्य लिखें.  ऐसा न होने की दशा में आपकी प्रविष्टि ओबीओ प्रबंधन द्वारा अस्वीकार कर दी जायेगी.
 

नोट :-
(1) 18 जुलाई 2013 तक रिप्लाई बॉक्स बंद रहेगा,  19 जुलाई 2013 दिन शुक्रवार से 21 जुलाई 2013 दिन रविवार तक के लिए Reply Box रचना और टिप्पणियों के लिए खुला रहेगा.

सभी प्रतिभागियों से निवेदन है कि रचना छोटी एवं सारगर्भित हो, यानी घाव करे गंभीर वाली बात हो. रचना भारतीय छंदों की किसी विधा में प्रस्तुत की जा सकती है. यहाँ भी ओबीओ के आधार नियम लागू रहेंगे और केवल अप्रकाशित एवं मौलिक सनातनी छंद की रचनाएँ ही स्वीकार की जायेंगीं.

विशेष :-यदि आप अभी तक www.openbooksonline.com परिवार से नहीं जुड़ सके है तो यहाँ क्लिक कर प्रथम बार sign up कर लें.

अति आवश्यक सूचना :

आयोजन की अवधि में प्रति सदस्य अधिकतम तीन रचनाएँ अर्थात प्रति दिन एक रचना के हिसाब से स्वीकार की जायेंगीं.  ध्यान रहे प्रति दिन एक रचना  न कि एक ही दिन में तीन रचनाएँ.  नियम विरुद्ध या निम्न स्तरीय प्रस्तुतियाँ बिना कोई कारण बताये या बिना कोई पूर्व सूचना के प्रबंधन सदस्यों द्वारा अविलम्ब हटा दी जायेंगी, जिसके सम्बन्ध में किसी किस्म की सुनवाई नहीं होगी, न ही रचनाकारों से कोई प्रश्नोत्तर होगा.

 

 

मंच संचालक

 

सौरभ पाण्डेय
(सदस्य प्रबंधन समूह)

ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम

 

Views: 16402

Replies are closed for this discussion.

Replies to This Discussion

//धरती को हिंडोला बनाने में क्या हर्ज है?//........यह आप स्वयम जाने मैंने अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया है.सादर.

//यह आप स्वयम जाने मैंने अपना पक्ष स्पष्ट कर दिया है.//

//वैसे भी मैं अपनी रचनाओं में इस तरह की बातों पर अधिक विश्वास नहीं करता// 

शायद यही आपका पक्ष है।

आदरणीय रक्ताले जी आप ओबीओ के महत्वपूर्ण सदस्य हैं। आपसे सकारात्मक उत्तर की ही अपेक्षा रहती है। यदि जिज्ञासाओं और शंकाओं का इसी तरह से समाधान होना है तो आयोजन में समय खर्च करने का क्या लाभ?

आदरणीय रक्ताले साहब और आदरणीय बृजेश जी, आप दोनो से अनुरोध है कि इस थ्रेड मे फिलहाल प्रतिउत्तर न करें, आप दोनो को समझने और समझाने मे दिक्कत हो रही है, कृपया मंच संचालक की टिप्पणी का इंतजार करें, अंतिम दो टिप्पणी हटाई जा रही है,

सादर |


सादर |

आदरणीय अशोकभाई तथा भाई बृजेश जी के बीच हुए उपरोक्त वार्तालाप से जो प्रतीत हो रहा है वो यह है कि कुछ शब्द विशेष कुछ रुढ़ि अर्थ रखते हैं इसकी जानकारी का न होना.

भाई बृजेशजी ने उचित ही प्रश्न किया है कि धरती को हिण्डोला न बनाने से क्या तात्पर्य है. वस्तुतः धरती माता है. यह जीव-जगत के लिए हिण्डोला ही है. 

लेकिन शायद आदरणीय अशोकभाईजी ने हिण्डोला शब्द से हिलते-डुलते हुए आधार का अर्थ लिया है.

यहाँ मेरा निवेदन यही है, कि हिण्डोला एक सार्थक संज्ञा है.  उसका अर्थ पालना, गोद या गोदी जो कि माँ की हो तो जन्नत के समान है, होता है.

अतः, इस शब्द को उसी संदर्भ में हम लें. 

भाई बृजेश जी, कुछ प्रश्न ी होते हैं लेकिन यदि ससंदर्भ न पूछा जाय तो उसकी गरिमा और उसके तात्पर्य पर ही प्रश्न हो उठता है.  इसे हम अवश्य पूरी संवेदना से समझें और इसे अपनायें.

शुभ-शुभ

धरती है सौगात, बनाओ मत हिंडोला ||----वाह अशोक जी एक सार्थक सन्देश देती हुई कुंडलिया बधाई आपको 

आदरणीया राजेश कुमारी जी सादर, रचना संदेश पसंद करने के लिए आपका हार्दिक आभार.

वाह वाह वाह बेहतरीन भाव से परिपूर्ण ह्रदय स्पर्शी कुण्डलिया छंद आदरणीय अशोक सर जी हार्दिक बधाई स्वीकारें.

भाई अरुण शर्मा अनंत जी सादर, छंद आपको भावपूर्ण लगा मेरे लेखन को बल मिला सादर आभार.

डोला है तन नाग का, फन पर आया भार,

बोझ पाप का कम करे, धरती कितनी बार,

धरती कितनी बार, छली जाती है हमसे,

उठते लाखों हाथ, मगर सारे बे दम से.

नीला अम्बर आज, तानकर सीना बोला,

धरती है सौगात, बनाओ मत हिंडोला ||_________-एक अलग दृष्टिकोण, एक अलग अंदाज़ 

___बधाई हो भाई जी

आदरणीय आलबेला खत्री साहब सादर, आपको मेरा प्रयास भला लगा मेरा लेखन सार्थक हुआ. सादर आभार.

मस्त प्रस्तुति है आदरणीय-
सादर


हौले हौले लोकते, लाजवंत भू-लोक |
परलोकी अवलोक के, करते लौकिक शोक |
करते लौकिक शोक, झोंक भू गए भाड़ में |
शोषण भोग विलास, ज्ञान के छद्म आड़ में |
बाहुबली दुष्कर्म, दिखा चालाकी-डौले |
कर शोषण अविराम, मिटे पर हौले हौले- ,

वाह लाजवाब प्रतिक्रिया छंद आदरणीय रविकर जी, "करते लौकिक शोक, झोंक भू गए भाड़ में |" लाख टके की बात है. सादर आभार.

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे हुए हैं। हार्दिक बधाई।"
19 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार । सुझाव के लिए हार्दिक आभार लेकिन…"
20 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .सागर
"अच्छे दोहें हुए, आ. सुशील सरना साहब ! लेकिन तीसरे दोहे के द्वितीय चरण को, "सागर सूना…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कामरूप छंद // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"सीखे गजल हम, गीत गाए, ओबिओ के साथ। जो भी कमाया, नाम माथे, ओबिओ का हाथ। जो भी सृजन में, भाव आए, ओबिओ…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion वीर छंद या आल्हा छंद in the group भारतीय छंद विधान
"आयोजन कब खुलने वाला, सोच सोच जो रहें अधीर। ढूंढ रहे हम ओबीओ के, कब आयेंगे सारे वीर। अपने तो छंदों…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion उल्लाला छन्द // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"तेरह तेरह भार से, बनता जो मकरंद है उसको ही कहते सखा, ये उल्लाला छंद है।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion शक्ति छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"शक्ति छंद विधान से गुजरते हुए- चलो हम बना दें नई रागिनी। सजा दें सुरों से हठी कामिनी।। सुनाएं नई…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Er. Ambarish Srivastava's discussion तोमर छंद in the group भारतीय छंद विधान
"गुरुतोमर छंद के विधान को पढ़ते हुए- रच प्रेम की नव तालिका। बन कृष्ण की गोपालिका।। चल ब्रज सखा के…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion हरिगीतिका छन्द के मूलभूत सिद्धांत // --सौरभ in the group भारतीय छंद विधान
"हरिगीतिका छंद विधान के अनुसार श्रीगीतिका x 4 और हरिगीतिका x 4 के अनुसार एक प्रयास कब से खड़े, हम…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion गीतिका छंद in the group भारतीय छंद विधान
"राम बोलो श्याम बोलो छंद होगा गीतिका। शैव बोलो शक्ति बोलो छंद ऐसी रीति का।। लोग बोलें आप बोलें छंद…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion कुण्डलिया छंद : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"दोहे के दो पद लिए, रोला के पद चार। कुंडलिया का छंद तब, पाता है आकार। पाता है आकार, छंद शब्दों में…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Saurabh Pandey's discussion चौपाई : मूलभूत नियम in the group भारतीय छंद विधान
"सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।। त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।। दो…"
yesterday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service