परम आत्मीय स्वजन
सादर प्रणाम,
अढ़तीसवें तरही मुशायरे का संकलन हाज़िर हैं| दो दिनों तक चले इस आयोजन ने ओ बी ओ को कुल सत्तासी पन्नों से समृद्ध किया, कुल उनतीस गज़लें प्राप्त हुई, जिन पर आई प्रतिक्रियाओं की संख्या १०४० रही| मुशायरे की पोस्ट को अब तक ७२०० से ज्यादा बार लोड किया जा चुका है| यह आंकड़े ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे की लोकप्रियता का प्रत्यक्ष प्रमाण हैं| जब हम इन आंकड़ों को देखते हैं तो हमारी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है| मुशायरे का यह स्तर बिना आप सबके साथ, समर्पण और संलग्नता के संभव नहीं है| मैं विशेष रूप से उन लोगों को धन्यवाद देता हूँ जिन्होंने खुद मुशायरे में शिरकत नहीं की परन्तु अपनी सतत टिप्पणियों के माध्यम से लगातार हौसला अफजाई की|
इस बार केवल लाल रंग का ही प्रयोग कर रहा हूँ| मुशायरे के दौरान हमारे वरिष्ठ सदस्य गलतियों की तरफ पहले ही इशारा कर चुके हैं| फिर भी यदि कोई शायर अपनी ग़ज़ल पर रहनुमाई चाहता हो तो यहाँ पूछ सकता है |
मिसरा-ए-तरह...
"क्या बने बात जहां बात बनाये न बने"
क्या/2/ब/1/ने/2/बा/2 त/1/ज/1/हाँ/2/बा/2 त/1/ब/1/ना/2/ये/2 न/1/ब/1/ने/2
2122 1122 1122 112
फाइलातुन फइलातुन फइलातुन फइलुन
(बह्र: रमल मुसम्मन् मख्बून मक्तुअ )
Saurabh Pandey बेसुरे शोर में तूती से जो गाये न बने तेरी ज़िद चाँद पे क़ायम तो मैं सूरज पे फ़िदा जितना पढ़ता हूँ तुझे, नज़्म हुआ जाता हूँ फिर से उम्मीद घटाओं ने जगायी है उधर एक तितली है, मेरे साथ जिया चाहे है यक-ब-यक पास तुम्हें देख सही चौंक गया **************************** Mohd Nayab जब से रूठा है मेरा यार मनाये न बने इश्क का रोग है ऐसा की बताये न बने हमको जिनसे थी ज़माने में वफ़ा की उम्मीद वो हमें भूल भी जाएँ तो कोई बात नहीं झूठ थी बात जो बिगड़ी तो बिगड़ती ही गयी जब से उलझी है ग़म-ए-इश्क में दुनिया मेरी हमने चाहा कि बता दें उन्हें राज़-ए-उल्फत ऐसा मिसरा है दिया आप ने अल्लह तौबा ज़ख्म-ए-दिल उनको दिखाएं भी तो कैसे 'नायाब' **************************** Tilak Raj Kapoor राज़ की बात अगर तुमसे छुपाये न बने कोशिशें हार चुकें, तब ये समझ बनती है शह्र दो वक्त मेरा पेट तो भर देता है वक्त के साथ चलूँ चाह मुझे थी लेकिन आज गुलशन में थिरकती न दिखी वो तितली अब तो अहसास की हर हद से गुजर जाये दिल चार उल्लू न हुए, जुड़ गयी संसद पूरी ****************************
ASHFAQ ALI (Gulshan khairabadi) आज गुलशन मे कोई फूल खिलाए न बने याद आए न बने उनको भुलाये न बने ज़िंदगी में ही मेरे दोस्त जो साये न बने आज की रात मुझे नींद कहाँ आएगी तेरी महफ़िल में भला आएँ तो आएँ कैसे उसने उमीद-ए-वफ़ा कैसे करें हम आख़िर
हम से शिक़वा न हुआ उनसे शिक़ायत न हुई आज के दौर मे महंगाई है तौबा 'गुलशन' ***************************** sanju singh जो हुई उनसे मुलाकात,बताये न बने प्यार को यार कई बार मनाया लेकिन रात बरसात में जो आग लगी सीने में वो सियासत न करें हम पे कहाँ मुमकिन है अबके बरसात पहाड़ों पे हुई ज्यादा ही वक़्त बेवक्त तेरी याद चली आती है ***************************** धर्मेन्द्र कुमार सिंह वो है मगरूर किसी तर्ह निभाये न बने चोट दिल की है, मुई पीर दबाये न बने चीज अनमोल है, तिसपर है नज़र में सबकी ये वो सूरज ही नहीं है जिसे पूजा हमने खत्म होने को है अब तेल, अँधेरा है घना नाम है पाक मगर कर्म हैं नापाक तो फिर ***************************** amit kumar dubey ansh दूर जाना था मगर साथ छुड़ाये न बने लाख कोशिश थी मेरी उनको मना लूँ लेकिन दिल अभी देख मुझे जाँ से गुज़र जाने दे इश्क की राह में इक मोड़ रहा ऐसा भी कोई मौका न मिला प्यार को आराइश का ***************************** MOHD. RIZWAN किस क़दर ज़ख्म हैं दिल में ये दिखाये न बने सामने आ गये सज-धज के सनम मेरे तो हो गया इश्क़ अयाँ अपना ज़माने में तो क्या ? ज़ख़्म सीने में जो मुद्दत से लिए बैठा हूँ हमसे रखते हैं जो दिल में वो अदावत हर दम उनकी गलियों से गुज़रता है जनाज़ा मेरा... दिल ने चाहा तो बहुत उनकी मिटा दें यादें माँ के क़दमों मे है जन्नत ये खबर है सबको.... आज तक लड़ता रहा जिनके लिए मैं "रिज़वान" ***************************** arun kumar nigam बाँसुरी श्याम की होठों से लगाये न बने वृंदावन झूम रहा झूम रही हैं गलियाँ रासलीला के लिये कुंज चलो कान्हा जी दूध माखन के सिवा और चुराया क्या है माँ यशोदा न सुने आज सफाई कोई **************************** वीनस केसरी वस्ल का जिक्र किसी तरह चलाये न बने वो मेरी ज़ात में इस तरह हुआ पोशीदा दिले मुश्ताक उसी ओर खिंचा जाता है न शिकायत न अदावत न हिकारत न गिला
अब तो माशूक ही हम पर ये करम करते हैं आजकल खुद से तकल्लुफ जो निभाता हूँ मैं ***************************** फरमूद इलाहाबादी दाल तुमने जो पकाई है वो खाए न बने अपने घर वालों के खातिर तो हो मुर्गा मछली शौके दीदार में ये हाल हुआ है यारों बात करता हूँ मैं उर्दू में वो अंग्रेजी में वक्ते रुखसत पे तो कहता हूँ खुदा हाफ़िज़ ही किसके क्या नाम हैं ये खुद भी उसे याद नहीं तंदरुस्ती भी कुछ ऐसी है कि माशाअल्लाह शायरे तंज़ ओ ज़फारत हूँ कोई भांड नहीं ***************************** गीतिका 'वेदिका' सरनगू हम खड़े, सर को तो उठाये न बने तख्लिये में लिखा वह नाम न रुसवा हो कहीं बात इतनी सी है बिन तेरे न जी पाएंगे बात बन बन के हमेशा ही बिगड़ जाती हो हो गये ख्वाब मेरे टूट के रेजां रेजां एक वो हैं जो हमें हंसने नहीं देते हैं ***************************** vandana नूर ऐसा कि ये जज्बात छिपाये न बने इस कदर भींत उठी गर्व की चुपके चुपके फेरकर बैठ गए पीठ ख़ुशी रूठ गयी तोड़ डाले हैं अगर बाँध नदी ने दुःख में आज इस दौर में जज्बात कहाँ ढूंढ रहे खो गये शख्स कई उम्र बिताकर ऐसे तिफ़्ल समझो न खुदाया कि उड़ाने हैं गज़ब राख के ढेर छुपी हो कोई चिंगारी भी देहरी आज नया दीप जलाकर रख दो **************************** Shijju Shakoor हसरतों को किसी सूरत में दबाये न बने लिख फसाना-ए-ग़मे-इश्क मेरे दिल ऐसे कि ये गवारा न हुआ देख ही ले मेरी तरफ सोचता हूँ कि न आऊँ तेरी महफिल में फिर और तू पूछ ले मुझसे जो सबब आने का मेरी बातों से बने बात कुछ ऐसा हो काश अब हवा दे तू मेरे आतिशे-जज़्बात को यूँ ******************************
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Kewal Prasad कान्ह की जन्म घड़ी आज भुलाये न बने। नन्द के गांव हुआ जश्न, बधाई गायें। अष्टमी रात बड़ी आश भरी होती है। जन्म मथुरा में हुआ, नन्द के घर आ पहुंचे। कृष्ण के साथ रहें गोप-ग्वालिन-गइया। काम है आज यहां सबसे कठिन धर्म धरें। राह में रोक लिया हाथ छुड़ाये कैसे? गोपियां चींख रहीं कृष्ण चुराये माखन। जब यशोदा से कहा चोर-छिछोरा कान्हा। सांझ को गोप बड़े यत्न से घुसते घर में। प्रेम में झूम उठे रास रचाते मोहन। धर्म की बात करें धर्म बतायें कैसे? ************************************ rajesh kumari राज की बात छुपी हाय बताये न बने चाहती आज अभी साफ़ सुना दूं जाकर उस तरफ दर्द का सैलाब नजर आता है चैन पाऊं ये बता आज खुदा मैं कैसे काश वो काम से ही आज इधर आ जाए रूह में कब से दबी प्यार कि वो चिंगारी ऐ खुदा आज सफीने को सहारा देना *********************************** Ajay Kumar रूठ जाऊं मैं अगर, उनसे मनाये न बने चाहता हूँ कि कोई खास कहानी लिख दूँ मंत्रियों को तो सियासत में गिरा देखा है रात दिन सोचते हैं और यही कहते हैं है ये सरकार महाभ्रष्ट मगर बहुमत है साढ़े साती भी शनी की तो चली जाती है भाव इतना भी बढेगा ये कहाँ जाना था *************************** Dinesh Kumar khurshid क्या कहूँ कैसी है बरसात बताये न बने हम से सुनते न बने उनसे सुनाये न बने ज़ुल्म करते है जो हर रोज़ मेरी ग़ुरबत पर वो ज़िन्हे देख के आईने सवंर जाते है दरमियां भाई के भाई भी तो दीवार बना कैसे कैसे है सितम अपनो के मुझ पर या रब वाह रे वक्त भी क्या फेर बदल करता है मुद्दते हो गयी तपते हुए "खुर्शीद" मुझे ******************************* Sarita Bhatia आदमी मौन हुआ राज छुपाये न बने हमसे नफ़रत न हुई उनसे मुहब्बत न हुई यार है यार बना साथ मुलाकात रहे रोज हो जीत अगर बैठ खिलाडी न रुके ज्ञान को बाँट अगर चाह तुझे बढने की क्या पता वोह कभी थाम सके बाहों में शाम जो आँख मिली हाल बताया उनको . ************************** कल्पना रामानी फूल मुरझाए हुए, बाद सजाए न बने। है गिला ये कि हमें, दर्द भी अपनों से मिला। दिल पे रखते, न अगर बात, न बनती दूरी। छोड़ ही देते जहाँ भी, ये जो कहते दिलबर। अर्श को फर्श दिखाना, है ज़माने का चलन। जग हो बैरी भी तो क्या, मीत बनाएँ रब को। ‘कल्पना’शूल ही रहते हों ज़ुबाँ पर जिनकी। ***************************** मोहन बेगोवाल साथ उनके अभी रिश्ता भी निभाये न बने टूट जाता हे अगर घर तो ये इलजाम क्यूँ याद उनकी न रही जो रहे अपने थे कभी पूछता हे केसे केसे सवाल अभी से हमें वो ख्यालों में हमारे यूँ रहे आ के मगर ***************************** HAFIZ MASOOD MAHMUDABADI जो गुज़रती है मेरे दिल मैं छुपाये न बने दास्ताँ गम की ज़माने को सुनाये न बने ढूढ़ना पड़ता है ग़ैरों का सहारा आखिर तर बतर अश्को ने कर डाला हमारा दामन लाख पहरा नहीं राहों में किसी की लेकिन उसकी महफ़िल मैं है दुश्मन का भी आना जाना इतनी आसां भी नहीं है ये है ग़ालिब की ज़मी जुस्तजू लाख करें उनकी व लेकिन "मसुउद" ****************************** Albela Khatri प्याज़ मांगो न अतिथि प्याज़ खिलाये न बने कोढ़ में खाज मिलादी मन के मोहन ने दर्द क्या खाक मिटे चारागर ही न मिला जैम माँगा न मिला,बालक को मम्मी से हाय क्या हाल बतायें लब खामोश खड़े रंज मत कर 'अलबेला' गर कमज़ोर कहे ******************************** Atendra Kumar Singh "Ravi" क्या कहें अब कहानी आज सुनाये न बने दौर वो दूसरा था प्यार किये जो धरा पर थाम कर हाथ तेरा संग किये थे गुजारा हम मनाते रहे तो उनको भुलाने की है जिद चाहकर भी न भुला पाता है दिल ये हमारा रो रही है ये जमीं यूँ रो रहा है आसमाँ दिल जलाकर के किया है रोशनीं उनके लिये
**************************** अरुन शर्मा 'अनन्त' गम छुपाये न बने जख्म दिखाये न बने, रेशमी जुल्फ घनी, नैन भरे काली घटा, शबनमी होंठ गुलाबों से अधिक कोमल हैं, रातरानी सी है मुस्कान खिली होंठों पर, मौत जिद पे है अड़ी साथ लेके जाने को, *************************** Dr Ashutosh Mishra जख्म जो दिल में हमारे हैं दिखाये न बने याद तो उसकी दफ़न कर ली थी दिल में हमने देख कर रेत पे हर बार घरोंदा कोई उनके लव पे है जिकर जब से मेरे दुश्मन का इक दफा टूट गया दिल से जो रिश्ता दिल का बन के धड़कन मेरे इस दिल में धडकता है खुदा आशु लौटे हैं तेरे कूचे से रुसवा होकर **************************** Anurag Singh "rishi" क्यों भला याद तेरी मुझसे भुलाये न बने बुझ गया दिल जो अभी तक था दिए के जैसा मेरे वजूद पे काबिज वो इस कदर देखो वो ऐसी उलझने देता रहा सदा मुझको वो छोटी गलतियों से बात बिगड़ती ही गयी *************************** बृजेश नीरज पेट खाली हैं मगर भूख जताये न बने ढूंढते हैं कि किरन इक तो नजर आए कोई दर्द जितना भी हो पर आँख छलकती ही नहीं छाँव में जिसकी कटी गर्म दुपहरी थी मेरी बात कुछ भी न थी पर बात बिगड़ती ही गयी **************************** Ajeet Sharma 'Aakash' अब किसी हाल में दुनिया से निभाये न बने . हमने पहले भी कई बार मनाया है उन्हें अब तो लगता है कि छाये हैं दिलो-जान पे वो उनको मालूम नहीं रस्मे-वफ़ा चीज़ है क्या पूछ्ते हैं वो तो हम से कहो कैसी गुजरी अब तसल्ली दिले-नादां को मिले या न मिले लाख कोशिश की सुलझ जायें मसाइल अपने ******************************
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गज़लें मुशायरे में जिस क्रम में आई हैं उन्हें उसी क्रम में स्थान दिया गया है| किसी शायर की ग़ज़ल छूट गई हो अथवा कहीं मिसरों को चिन्हित करने में गलती हुई हो तो अविलम्ब सूचित करें|
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आदरणीय राणा प्रताप जी , सभी गज़लों को एक साथ फिर से चिन्हित करके देने के लिये आपको बहुत बहुत धन्यवाद !!
आपका भी स्वागत है|
सर्वप्रथम सादर नमन आप सभी के चरणों में राणा सर को इस सफल मुशायरे के लिए विशेष बधाई देना चाहूँगा
सर मै अनुराग सिंह "ऋषी" आप सभी के संरक्षण में गजल लिखना सीख रहा हूँ पर इस मुशायरे में मेरे जिन मिसरों में त्रुटियाँ है समझ नही सका यदि उसकी कुछ विस्तृत विवेचना कर दे तो मुझ अज्ञानी को त्रुटियाँ दूर करने में सहायता मिलेगी
कष्ट देने के लिए क्षमा चाहता हूँ सर
सादर
अनुराग सिंह "ऋषी"
अनुराग जी आपके चार मिसरे लाल हैं, इन मिसरों की खुद तकतीई कीजिये, अव्वल तो आपको पता ही चल जायेगा कि कहाँ गलती है, नहीं तो अपनी की हुई तकतीई यहाँ पर रखिये, फिर उस पर चर्चा हो जाएगी|
कामयाब आयोजन के लिए सभी को हार्दिक बधाई . एक से बढ़कर एक ग़ज़लें और लाजवाब शेर क्या कहने ..संचालक महोदय आदरणीय श्री राणा जी सहित सभी को मुबारकबाद !!
आदरणीय अरुण जी इस बार मुशायरे में आपकी ग़ज़ल के रसास्वादन से हम सभी वंचित रह गए| आपने समय देकर सबकी गज़लें पढ़ीं इस हेतु हार्दिक धन्यवाद|
आदरणीय राणा प्रताप जी को इस त्वरित संकलन के लिए हार्दिक बधाई
आपको भी बधाई|
आदरनीय गुरुदेव ..कोई लाल निशान नहीं लगा जो लगातार लग रहा था ..मुझे बहुत खुसी हुई ..आपका यह योगदान मुझ जैसे नौसिखिये के लिए बड़े काम का है ..आपका मार्गदर्शन यूं ही मिलता रहा तो शायद कभी कुछ ठीक ठाक लिख सकूंगा ..आपके इस प्रयास को दिल से सलाम करते हुए
आदरणीय आशुतोष जी
यह आपके परिश्रम का ही फल है, आप अब बह्र में आ गए हैं , अगले कदम में ग़ज़लों में होने वाले दोषों पर भी ध्यान दीजिये| हार्दिक शुभकामनाएं|
आदरणीय राना प्रताप सिंह जी पहले तो आपकी हार्दिक आभारी हूँ इस संकलन के लिए
दूसरा एक निवेदन कि अगर हर संकलन के साथ ऊपर उसका तरही मिसरा और बह्र अंकित हो तो बाद में भी देखने में बहुत आसान हो जाता है |
शाम जो आँख मिली हाल बताया उन्हें / उनको
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