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जाते-जाते वो मुझे लाकर की चाबी दे गया।
माल तो सब ले गया लाकर वो खाली दे गया।

मैं कभी तहजीब से बाहर निकल पाया नही ,
एक अदना आदमी फिर मुझको गाली दे गया।

उसने मेरी सादगी का यूँ उठाया फायदा ,

छीनकर दिन का उजाला रात काली दे गया।

जब भुनाने मैं गया उस रोज सेंट्रल बैंक में ,
तब पता मुझको चला कि चेक वो जाली दे गया।

रोटियाँ जो बांटने आया था भूखों को वही ,
खा गया खुद रोटियाँ आधी औ आधी दे गया।

अच्छे -अच्छे पारखी भी खा गये धोखा यहाँ ,
किस कदर पीतल पे वो सोने का पानी दे गया।

सोचता हूँ कैसी मजबूरी थी उसकी जो मुझे ,
चन्द सिक्कों के एवज में रात रानी दे गया।

शुक्रिया ऐ दोस्त तूने ये मेहरबानी जो की ,
रोग बूढ़े आदमी को बेमियादी दे गया।

बन नही पाये कभी दुनिया में दुनियादार वो ,

मौलवी तालीम जिन-जिनको किताबी दे गया।

नाम ले कर जंगे आजादी का वो कष्मीर में ,
हाथ में मासूम बच्चों के दुनाली दे गया।          

मौलिक अप्रकाशित एवं अप्रसारित

   

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Comment

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सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on October 3, 2013 at 12:44am

आपकी कोई पहली रचना/ ग़ज़ल पढ़ रहा हूँ.  आपके कहने का अंदाज़ अलहदा लगा. कुछ शेर तो एकदम से चौंकाते हैं.

गंभीरता से कोशिश करें आदरणीय.

शुभेच्छाएँ

Comment by वीनस केसरी on October 1, 2013 at 10:52pm

अच्छे -अच्छे पारखी भी खा गये धोखा यहाँ ,
किस कदर पीतल पे वो सोने का पानी दे गया।

शानदार ग़ज़ल हुई है ... अशआर में लहजे को जिस तरह से बरता गया है उसके लिए ढेरो दाद

Comment by बृजेश नीरज on October 1, 2013 at 6:57am

बहुत अच्छी प्रस्तुति! आपको हार्दिक बधाई!

Comment by रमेश कुमार चौहान on September 30, 2013 at 9:59pm

नाम ले कर जंगे आजादी का वो कष्मीर में ,
हाथ में मासूम बच्चों के दुनाली दे गया।  

बहुत खूब रामअवधजी बधाई बधाई 

Comment by Ram Awadh VIshwakarma on September 30, 2013 at 8:35pm

उत्साहवर्धन के लिये धन्यबाद

Comment by ram shiromani pathak on September 30, 2013 at 8:30pm

मैं कभी तहजीब से बाहर निकल पाया नही ,
एक अदना आदमी फिर मुझको गाली दे गया।//// वाह वाह क्या कहने राम भाई बहुत बहुत बधाई आपको //सादर 

Comment by विजय मिश्र on September 30, 2013 at 5:58pm
"बन नही पाये कभी दुनिया में दुनियादार वो ,
मौलवी तालीम जिन-जिनको किताबी दे गया।

नाम ले कर जंगे आजादी का वो कष्मीर में ,
हाथ में मासूम बच्चों के दुनाली दे गया। "

जबरदस्त हैं और हकीकत को आईना दिखाती है , गज़ल खूबसूरत है और फर्दबयानी आपकी मेहरबानी . शुक्रिया राम अवध जी .
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 30, 2013 at 8:50am

सुंदर गजल , बधाई आदरणीय राम जी


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 29, 2013 at 9:14pm

आदरणीय राम भाई , सुन्दर गज़ल के लिये आपको बधाई !!

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on September 29, 2013 at 2:28pm

दिल के तारो को छेड़ दिया आपने ! सच है ये दुनिया का हाल ही ऐसा है ! बधाई स्वीकार करें 

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