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ऐ खुशी तूने अगर मुझको पुकारा ही न होता - शिज्जु शकूर

बह्रे रमल मुसम्मन सालिम(2122 2122 2122 2122)

संग तेरे मैंने कोई पल गुज़ारा ही न होता

ऐ खुशी तूने अगर मुझको पुकारा ही न होता

 

तूने ऐ जज़्बा-ए-दिल मुझको सँवारा ही न होता

आइने में लफ़्ज़ के तुझको उतारा ही न होता

 

रह गया था मैं कहीं खो कर जहां की वुसअतों मे                        वुसअत= व्यापकता

गर मुहब्बत की न होती तो सहारा ही न होता

 

रात की जल्वागरी होती अधूरी रौनकें भी

चाँद की जो बज़्म में कोई सितारा ही न होता

 

इस ज़माने में बने मा'बूद इंसां लूटते हैं                                  मा'बूद =जिसकी इबादत की जाये

सच न कहता मैं तो दुश्मन शह्र सारा ही न होता

 

-मौलिक व अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 7, 2013 at 2:56pm

आदरणीया डॉ प्राची जी आपका आभार जो आपने मेरी रचना को मान दिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 7, 2013 at 2:54pm

भाई आशीष जी हौसला अफ़्ज़ाई के लिये आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 6, 2013 at 3:32pm

हार्दिक बधाई इस सुन्दर प्रस्तुति पर आ० शिज्जू जी 

Comment by आशीष नैथानी 'सलिल' on October 5, 2013 at 10:20pm

संग तेरे मैंने कोई पल गुज़ारा ही न होता

ऐ खुशी तूने अगर मुझको पुकारा ही न होता ||

वाह, क्या बात है...

बढ़िया ग़ज़ल भाई Shijju Shakoor  जी !!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:41pm

आदरणीय बृजेश जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:40pm

भाई सचिन जी आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:40pm

भाई जितेन्द्र जी आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:39pm

आदरणीया कुन्ती जी रचना के अनुमोदन के लिये आपका आभार


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:38pm

आदरणीय सौरभ सर आपका बहुत बहुत शुक्रिया


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 5, 2013 at 9:37pm

आदरणीय वीनसजी रचना के अनुमोदन के लिये आपका शुक्रगुज़ार हूँ स्नेह बनाये रखें

कृपया ध्यान दे...

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