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अकीदत का करो रौशन चिरागाँ काम से पहले

खुदा को याद कर लेना कभी आलाम से पहले                     आलाम =तकलीफों

 

तुम्हारे दम से कायम ज़िन्दगी का है निशां यारब
झुके सजदे में सर मेरा किसी ईनाम से पहले

 

छुपा आगोश में माँ हमपे ममता की करे बारिश

हमें करुणा की ठण्डक दे कभी आराम से पहले


दुआओं की तेरी तासीर इतनी फ़ैज़ इतना माँ                        तासीर =प्रभाव, फ़ैज़= अनुकम्पा

महक जायें मेरी ये रहगुज़र हर गाम से पहले

 

दिलों को बाँट के रख दे जहालत की कोई दीवार                     जहालत= अज्ञानता

हटायें हम चलो मिलकर इसे कुह्राम से पहले

 

-मौलिक एवं अप्रकाशित

 

 

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Comment by शिज्जु "शकूर" on October 4, 2013 at 7:18pm

हौसला अफ़्जाई के लिये मैं आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया अदा करता हूँ, स्नेह बनाये रखें

Comment by विजय मिश्र on October 3, 2013 at 2:28pm
सीख भी ,सादगी भी और प्यारी सी . बधाई सिज्जुजी
Comment by केवल प्रसाद 'सत्यम' on October 3, 2013 at 8:38am

भार्इ जी!   बेहतरीन गजल। आपको हृदयतल से ढेरों हार्दिक बधाइयां।  सादर,

Comment by vandana on October 3, 2013 at 7:27am

सम्पूर्ण ग़ज़ल बहुत अच्छी लगी 

Comment by Sushil.Joshi on October 2, 2013 at 9:31pm

दिलों को बाँट के रख दे जहालत की कोई दीवार

हटायें हम चलो मिलकर इसे कुह्राम से पहले...... वाह....बहुत सुंदर आदरणीय शिज्जू जी... बधाई हो...

Comment by रमेश कुमार चौहान on October 2, 2013 at 8:11pm

आदरणीय सिज्जू जी इस उम्दा प्रस्तुति पर बधाई

Comment by संदीप द्विवेदी 'वाहिद काशीवासी' on October 2, 2013 at 5:45pm

एक अच्छी ग़ज़ल पर बधाई स्वीकार करें! फिर भी यह प्रतीत हो रहा है कि ग़ज़ल थोड़ा वक़्तो मश्क़ और मांग रही थी! :-) मत्ले की ओर ध्यान आकृष्ट कराना चाहूँगा हुज़ूर कि चराग़ाँ बहुवचन है अतः अक़ीदत 'का' के स्थान पर 'के' उचित होता! इसके उपरांत भी आपकी ग़ज़ल की जान आपका मत्ला है जो बेहतरीन है! सादर,

Comment by बृजेश नीरज on October 2, 2013 at 5:29pm

वाह! बहुत सुन्दर ग़ज़ल! आपको हार्दिक बधाई!


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on October 2, 2013 at 4:42pm

ग़ज़ल अच्छी हुई है सिज्जू भाई, बधाई स्वीकार करें । 

Comment by डॉ. अनुराग सैनी on October 2, 2013 at 2:22pm

बहुत ही ज्यादा प्रभावशाली ! बेहतरीन ! लाख लाख बधाई आपको !

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