For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

प्रेम में मगन मैं, होने लगा हूँ

जग से नाता तोड़ चला हूँ,मैं
जग से नाता तोड़ चला हूँ
प्रेम में मगन मैं, होने लगा हूँ

उनसे मिलन की, आस लिए
अंधरों बड़ी प्यास, लिए
दर बदर मैं, भटक रहा हूँ, हाँ
दर बदर मैं, भटक रहा हूँ
प्रेम में मगन मैं, होने लगा हूँ

आएगी कब वह, रात सुहानी
होंगी जब वो,मेरी दीवानी
रात और दिन यही, सोच रहा हूँ, मैं
रात और दिन यही, सोच रहा हूँ
प्रेम में मगन मैं, होने लगा हूँ

हर पल उनकी याद सताए
नीदों में मुंझको,वो जगाये
स्वप्न उन्ही का, मैं देख रहा हूँ, हाँ
स्वप्न उन्ही का, मैं देख रहा हूँ
प्रेम में मगन मैं, होने लगा हूँ

मौलिक व अप्रकाशित

Views: 569

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on October 17, 2013 at 12:49pm

सुन्दर प्रयास है.. 

लेकिन कथ्य और शिल्प दोनों ही स्तर पर बिलकुल सतही सा है. और सदस्यों की भी रचनाएं  पढ़िए....सतत पाठन ही अभिव्यक्ति में सुधार का आधार बनता है.

शुभेच्छाएं 

Comment by Sushil.Joshi on October 15, 2013 at 4:18am

आदरणीय देवेन्द्र भाई...... पहले तो गीत के लिए बधाई स्वीकारें....... लेकिन लिखने के प्रति थोड़ा सा और गंभीर हों..... मुझे लगता है शायद आप "अं" के प्रति कुछ अधिक ही संवेदनशील हैं.... जैसे

प्रथम बंद में 'अंधरों' ------ सही शब्द 'अधरों',

द्वितीय बंद में 'होंगी' -------- यहाँ पर 'होगी' करने से गेयता ठीक हो जाएगी....

तृतीय बंद में 'मुंझको' -------- सही शब्द 'मुझको'

Comment by बृजेश नीरज on October 14, 2013 at 2:35pm

अच्छा प्रयास है! भाई जी गीत के शिल्प पर ध्यान दें. इस मंच पर छंद विधान समूह में लेख हैं. उन्हें देखें.

सादर!

Comment by अरुन 'अनन्त' on October 13, 2013 at 5:00pm

आदरणीय दीपेन्द्र जी प्रयास अच्छा है, गीत आपसे श्रम और कसावट की मांग कर रहा है शिल्प और कथ्य पर ध्यान देने की आवश्यकता है. प्रयासरत रहें अधिक से अधिक अन्य मित्रों की भी रचनाएँ पढ़ें बहुत कुछ सीखने को मिलेगा. इस प्रयास पर बधाई स्वीकारें

अंधरों बड़ी प्यास, लिए ??? इस पंक्ति अर्थ स्पष्ट नहीं हो पा रहा है (अंधरों या अधरों)

Comment by Dr Ashutosh Mishra on October 13, 2013 at 4:44pm

आदरणीय देवेन्द्र जी ..प्रेम सबको मगन कर ही देता है ..दशहरे पर हार्दिक शुभकामनाओं के साथ 

Comment by Devendra Pandey on October 13, 2013 at 3:03pm
adarniya jitendra geet jee aapka hardik abhaar
Comment by Devendra Pandey on October 13, 2013 at 3:00pm
adarniya bhandari sir aapka bahut bahut abhaar,maine gayeta ko dhyan dete huye hi matraon mein badh nhin kiya taaki geet ke lay mein avrodh utpann na ho maine swayam yah geet gaya hai
Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2013 at 10:49am

बहुत सुंदर भावनात्मक गीत प्रस्तुति पर बधाई स्वीकारे आदरणीय देवेन्द्र भाई


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on October 13, 2013 at 7:56am

आदरणीय देवेन्द्र  भाई , गीत के भावों के लिये आपको बधाई !!! हर पंक्ति मे मात्रा अलग अलग है इसलिये गेयता बाधित लग रही है !!!

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
7 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
17 hours ago
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
23 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन भाईजी,  प्रस्तुति के लिए हार्दि बधाई । लेकिन मात्रा और शिल्पगत त्रुटियाँ प्रवाह…"
Sunday
अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 170 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ भाईजी, समय देने के बाद भी एक त्रुटि हो ही गई।  सच तो ये है कि मेरी नजर इस पर पड़ी…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service