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आदरणीय साहित्य प्रेमियो,

सादर अभिवादन ।
 महा-उत्सव के नियमों में कुछ परिवर्तन किये गए हैं इसलिए नियमों को ध्यानपूर्वक अवश्य पढ़ें |

पिछले 37 कामयाब आयोजनों में रचनाकारों ने विभिन्न विषयों पर बड़े जोशोखरोश के साथ बढ़-चढ़ कर कलमआज़माई की है. जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर नव-हस्ताक्षरों, के लिए अपनी कलम की धार को और भी तीक्ष्ण करने का अवसर प्रदान करता है. इसी सिलसिले की अगली कड़ी में प्रस्तुत है :

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक - 38
विषय - पापा कहते हैं बड़ा नाम करेगा !
आयोजन की अवधि- शनिवार 14 दिसंबर 2013 से रविवार 15 दिसंबर 2013 तक 

(यानि, आयोजन की कुल अवधि दो दिन)
तो आइए मित्रो, उठायें अपनी कलम और दिए हुए विषय को दे डालें एक काव्यात्मक अभिव्यक्ति. बात बेशक छोटी हो लेकिन ’घाव करे गंभीर’ करने वाली हो तो पद्य-समारोह का आनन्द बहुगुणा हो जाए. आयोजन के लिए दिये विषय को केन्द्रित करते हुए आप सभी अपनी अप्रकाशित पद्य-रचना पद्य-साहित्य की किसी भी विधा में स्वयं द्वारा लाइव पोस्ट कर सकते हैं. साथ ही अन्य साथियों की रचना पर लाइव टिप्पणी भी कर सकते हैं.

उदाहरण स्वरुप साहित्य की कुछ विधाओं का नाम सूचीबद्ध किये जा रहे हैं --
तुकांत कविता
अतुकांत आधुनिक कविता
हास्य कविता
गीत-नवगीत
ग़ज़ल
हाइकू
व्यंग्य काव्य
मुक्तक
शास्त्रीय-छंद  (दोहा, चौपाई, कुंडलिया, कवित्त, सवैया, हरिगीतिका आदि-आदि)

अति आवश्यक सूचना :-
सदस्यगण आयोजन अवधि के दौरान अधिकतम दो स्तरीय प्रविष्टियाँ अर्थात प्रति दिन एक ही दे सकेंगे, ध्यान रहे प्रति दिन एक, न कि एक ही दिन में दो. नियमों के विरुद्ध, विषय से भटकी हुई तथा अस्तरीय प्रस्तुति को बिना कोई कारण बताये तथा बिना कोई पूर्व सूचना दिए हटाया जा सकता है. यह अधिकार प्रबंधन-समिति के सदस्यों के पास सुरक्षित रहेगा, जिस पर कोई बहस नहीं की जाएगी.

सदस्यगण बार-बार संशोधन हेतु अनुरोध न करें, बल्कि उनकी रचनाओं पर प्राप्त सुझावों को भली-भाँति अध्ययन कर एक बार संशोधन हेतु अनुरोध करें. सदस्यगण ध्यान रखें कि रचनाओं में किन्हीं दोषों या गलतियों पर सुझावों के अनुसार संशोधन कराने को किसी सुविधा की तरह लें, न कि किसी अधिकार की तरह.

आयोजनों के वातावरण को टिप्पणियों के माध्यम से समरस बनाये रखना उचित है. लेकिन बातचीत में असंयमित तथ्य न आ पायें इसके प्रति टिप्पणीकारों से सकारात्मकता तथा संवेदनशीलता आपेक्षित है. 

इस तथ्य पर ध्यान रहे कि स्माइली आदि का असंयमित अथवा अव्यावहारिक प्रयोग तथा बिना अर्थ के पोस्ट आयोजन के स्तर को हल्का करते हैं. 

रचनाओं पर टिप्पणियाँ यथासंभव देवनागरी फाण्ट में ही करें. अनावश्यक रूप से स्माइली अथवा रोमन फाण्ट का उपयोग न करें. रोमन फाण्ट में टिप्पणियाँ करना एक ऐसा रास्ता है जो अन्य कोई उपाय न रहने पर ही अपनाया जाय.   

(फिलहाल Reply Box बंद रहेगा जो 14 दिसंबर दिन शनिवार लगते ही खोल दिया जायेगा) 

यदि आप किसी कारणवश अभी तक ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार से नहीं जुड़ सके है तोwww.openbooksonline.com पर जाकर प्रथम बार sign up कर लें.

महा-उत्सव के सम्बन्ध मे किसी तरह की जानकारी हेतु नीचे दिये लिंक पर पूछताछ की जा सकती है ...
"OBO लाइव महा उत्सव" के सम्बन्ध मे पूछताछ
 

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" के पिछ्ले अंकों को पढ़ने हेतु यहाँ क्लिक करें
मंच संचालिका 
डॉo प्राची सिंह 
(सदस्य प्रबंधन टीम)
ओपन बुक्स ऑनलाइन डॉट कॉम.

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Replies to This Discussion

आदरणीय गिरिराज जी दिए हुए विषय पर बिलकुल ही अनोखा चित्र खींचा है, सुन्दर रचना हेतु बधाइयाँ....................

आदरणीय अरुण भाई , ॥ रचना पर सकारात्मक प्रतिक्रिया कर उत्साह वर्धन करने के लिये आपका तहे दिल से शुक्रिया ॥

बहुत ही सार्थक संदेश देती हुई रचना के लिए बहुत बहुत बधाई आपको आदरणीय गिरिराज जी

विध्वंस भी अगर किया जाये

निर्माण के उद्देश्य से

तो वो हिस्सा बन जाता है

निर्माण का !!!!!.... वाह बहुत खूब आदरणीय .. बहुत ही सुंदर सन्देश .. और  बेहद सुंदर प्रस्तुति बधाई 

बहुत बहुत बधाई आदरणीय गिरिराज भंडारी जी,

//मै कहता हूँ ,

बच्चों से , अपने ,

नाम हो न हो

तुम्हारे किये

काम से

निर्माण जरूर हो !//

मन में गहरे तक उतर गयी आपकी कविता ---वाह वाह

अच्छी रचना !!!

आदरणीय अजीत भाई , आपका हार्दिक आभार !!!!

बहुत ही उम्दा और अनूठी रचना. शुभकामनाएँ  भंडारी जी.

सादर

आदरणीया कुंती जी , आपकी सराहना से निश्चित मेरा उत्साह वर्धन हुआ है , आपका हृदय से आभारी हूँ !!!!!!

कविता

पापा का ये कहना है

पथ पर चलते रहना है

 

ऐसा कोई काम करो

जग में ऊँचा नाम करो

 

पढ़-लिख कर विद्वान बनो

इक अच्छे इन्सान बनो

 

बाधाओं से डरना क्या

हरदम आहें भरना क्या

 

हर बाधा को पार करो

ख़ुद को यूँ तैयार करो

 

मत सोचो कठिनाई है

राहों में जो आई है

 

दिन हो  चाहे रात रहे

बस हिम्मत का साथ रहे

 

मंज़िल से क्यों दूरी हो

चाहे जो  मजबूरी  हो

 

अन्धकार से मत डरना

इस दुनिया का तम हरना

 

दीप बनो जलते जाओ

राह सभी को दिखलाओ

 

हरदम चलते जाना है

लक्ष्य तुम्हें यदि पाना है

 

कर्म करो फल पाओगे

दुनिया पर छा जाओगे

---------------------------

 [मौलिक-अप्रकाशित ]

अच्छी बाल कविता।

आभार आदरणीय !!!

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"छंदों की प्रशंसा और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार आदरणीय अशोक जी"
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