सुन्दर गबरू छैल छबीला,
प्यारी काया बदन गठीला,
भागै खाकर मेरा कोड़ा,
ऐ सखि साजन? न सखि घोड़ा। (१)
नाचै गावै सबको भावै,
कभी किसी के हाथ न आवै,
छुप जाता है जैसे चोर,
ऐ सखि साजन? नहीं सखि मोर। (२)
सारी दुनिया ही जग जावे,
जब वो रोज़ अज़ान लगावे।
मेरा प्यारा, रब का गुर्गा,
ऐ सखि साजन? न सखि मुर्गा। (३)
अगर उसे आवाज़ लगाऊँ,
निकट सदा पल भर में पाऊँ।
रातों मेरी रक्षा करता,
ऐ सखि साजन? न सखि कुत्ता। (४)
गहरी नीली आँखों वाला,
मन का उजला तन का काला।
खाने में करता है नखरा,
ऐ सखि साजन? न सखि बकरा। (५)
छोटा है पर मुझको प्यारा,
उस पर लाड लुटा दूँ सारा,
अदभुत उसके अन्दर जोश,
ऐ सखि साजन? नहीं खरगोश। (६)
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
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इस सुन्दर प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई
कह-मुकरियाँ पसंद करने के लिए मैं आपका शुक्रगुज़ार हूँ श्याम नारायण साहब.
सुन्दर प्रस्तुति ... हार्दिक बधाई
नाचै गावै सबको भावै,
कभी किसी के हाथ न आवै,
छुप जाता है जैसे चोर,
ऐ सखि साजन? नहीं सखि मोर।
सुन्दर प्रस्तुति भईया, हार्दिक बधाई!
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