For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 
प्रति चरण सोलह-सोलह मात्राओं का ऐसा छंद है जिसके कुल चार चरण होते हैं. यानि प्रत्येक चरण में सोलह मात्रायें होती हैं.
चौपाई के दो चरणों को अर्द्धाली कहते हैं. यह अति प्रसिद्ध छंद है.

इसका चरणांत जगण (लघु गुरु लघु यानि ।ऽ। यानि 121) या तगण (गुरु गुरु लघु यानि ऽऽ। यानि 221) से नहीं होता. यानि चरणों के अंत में किसी रूप में गुरु पश्चात तुरत एक लघु न आवे.

इस लिये चरणांत गुरु गुरु (ऽऽ यानि 22) या लघु लघु गुरु (।।ऽ यानि 112) या गुरु लघु लघु (ऽ।। यानि 211) या लघु लघु लघु लघु (।।।। यानि 1111) से होता है.

1. इस छंद में कलों के संयोजन पर विशेष ध्यान रखा जाता है. यानि द्विकल या चौकल के बाद कोई सम मात्रिक कल अर्थात द्विकल या चौकल ही रखते हैं.

2. विषम मात्रिक कल होने पर तुरत एक और विषम मात्रिक कल रख कर सम मात्रिक कर लेते हैं. यह अनिवार्य है. यानि दोनों त्रिकलों को साथ रखने से षटकल बन जाता है जो कि सम मात्रिक कल ही होता है.

3. किसी त्रिकल के बाद कोई सम मात्रिक कल यानि द्विकल या चौकल किसी सूरत में न रखें.

4. यह अवश्य है, कि किसी त्रिकल के बाद का चौकल यदि जगण (लघु गुरु लघु यानि ।ऽ। यानि 121) के रूप में आ रहा हो तो कई बार क्षम्य भी हो सकता है. क्यों कि जगण के पहली दो मात्राएँ उच्चारण के अनुसार त्रिकल का ही निर्माण करती हैं.
जैसे, राम महान कहें सब कोई .. .
 
यहाँ, राम (21) यानि त्रिकल के बाद महान (121) का चौकल आता है लेकिन इसके जगण होने के कारण महान के महा से राम का षटकल बन जाता है तथा महान का बचा हुआ अगले शब्द कहें (12) के त्रिकल के साथ चौकल (न-कहें) बनाता हुआ आने वालों शब्दों सब और कोई के साथ प्रवाह में आजाता है.
यानि उच्चारण विन्यास हुआ -
राम महा - न कहें - सब - कोई .. अर्थात
षटकल - चौकल - द्विकल - चौकल .. इस तरह पूरा चरण संयत रूप से सम मात्रिक शब्दों का समूह हो जाता है.

कलों के विन्यास के अनुसार निम्नलिखित व्यवहार याद रखना आवश्यक है :
1. सम-सम सम-सम सम रखते हैं .. कुल 16 मात्राएँ
2. विषम-विषम पर सम रखते हैं .... . कुल 16 मात्राएँ
3. विषम-विषम पर शब्द रखेंगे .... .... कुल 16 मात्राएँ

चौपाई छंद के समकक्ष पादाकुलक छंद आता है जिसके प्रत्येक चरण में चार चौकल समूह बनते हैं. पादाकुलक छंद के लिए यह अनिवार्य शर्त है. अर्थात हर पादाकुलक चौपाई छंद ही है जबकि हर चौपाई पादाकुलक नहीं हो सकती.
इस विषय पर गहराई से आगे के आयोजनों में प्रकाश डालेंगे जब अन्य सोलह मात्रिक छंदों चर्चा होगी.

उदाहरणार्थ कुछ चौपाइयाँ :
छाता छाता मेरा छाता । बादल जैसा छाया छाता ॥
आरे बादल काले बादल । गर्मी दूर भगा रे बादल ॥ ........ ... . ..... (अज्ञात)

या,
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर । जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवन सुत नामा ॥ .... . (तुलसी)

या,
दैहिक दैविक भौतिक तापा । राम राज नहिं काहुँहि व्यापा ॥
सब नर करहिं परस्पर प्रीती। रहहिं स्वधर्म निरत स्रुति नीती॥ ...... (तुलसी)

आगे, कुछ कहने के पूर्व मैं यह कहता चलूँ  कि चौपाई में कई लोगों के लिए चरण और पद अक्सर गड्डमड्ड हो जाते हैं. कारण कि, तुकान्त पंक्तियों के अपने-अपने भागों में कोई यति नहीं होती.
यथा,
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।  जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
<-----------चरण--------------->।<------------चरण-------------------->

<------------------------------पद/अर्द्धाली--------------------------------->
उपरोक्त एक-एक पंक्ति को लोग अलग-अलग यानि दो चरणों की तरह बताते हैं. यानि, उपरोक्त एक पद में दो चरण हुए. लेकिन, परेशानी तो तब होती है जब कुछ विद्वान इन पंक्तियों को दो पदों का होना बताते हैं.  

इसे दोहा छंद के माध्यम से इसे समझना उचित होगा.
दोहा छंद के एक पद में दो चरण होते हैं. यानि एक पद के बीच एक यति आती है जो किसी एक पद को दो भागों में बाँटती है. ये दो भाग अलग-अलग चरण कहलाते हैं.
किन्तु, जैसा कि स्पष्ट किया गया है, चौपाई के मामले में यह बात नहीं होती. इसकी दो पंक्तियों में तुकान्तता तो होती है लेकिन उन पंक्तियों में यति नहीं आती. यहाँ तुकान्त ही यति है. सारी उलझन यहीं और इसी कारण से है.

मैं ऐसे इसलिए कह रहा हूँ कि अगल-अलग छंद-विद्वानों ने चरण और पद जैसे शब्दों को अपने-अपने ढंग से इस्तमाल किया है.

तो हमें किसी एक स्कूल को मजबूती से पकड़े रहना होगा. तथ्य के एक बार स्पष्ट हो जाने के बाद फिर कोई परेशानी नहीं होती. जैसे, गुरुवार कहिये या वीरवार मतलब वृहस्पतिवार से है.

अब आइये, चौपाइयों की असली गिनती पर.
इस लेख में कहा ही गया है कि दो चरणों की अर्द्धाली होती है. यानि, यह आधी चौपाई होती है.

जैसे,
जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।
जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
उपरोक्त दो चरणों की हुई एक अर्द्धाली. यही एक पद भी हुआ.
इस तरह से आप देखियेगा कि हनुमान चालीसा में कुल 80 पंक्तियाँ यानि 40 अर्द्धालियाँ हैं. इ

इन्हीं 40 पदों के कारण चालीसा नाम पड़ा है.

**********************

ध्यातव्य : आलेख उपलब्ध जानकारियों के आधार पर है.

Views: 47062

Replies to This Discussion

हा हा हा हा... .  :-)))))))))

जय हो..

यह छंद मेरा सबसे प्रिय छंद है जिसमें कुछ भी लिखने का आनंद मेरे लिए इन्‍द्रधनुषी छटा लिए होता है । यूं तो थोड़ी बहुत शिल्‍प की भी जानकारी थी परंतु आपके इस आलेख में जिस पूर्णता जिस समग्रता के साथ यह प्रस्‍तुत हुआ है वह एक वरदान से कम नहीं है । इस सुंदर प्रस्‍तुति को तो अभी प्रिंट कर रहा हूं परंतु घूम फिर कर हम तो वहीं अटक गए कि कल के कलकल से दिल बेकल हो गया । सादर

//कल के कलकल से दिल बेकल हो गया । //

हा हा हा... 

श्रीमान, ’कलकल’, ’दाद’ आदि से अतिशीघ्र छुटकारा पायें. उपाय और समझ शब्द-संयोजन वाले आलेख में साझा हुई हैं.

:-)))

सादर

आपकी दवा काफी कारगर रही, अब कोई कलकल नहीं है, सादर

आदरणीय सौरभ सर,  चौपाई छंद को खूब समझाया लेकिन ये गणित आज समझ आया - चालीसा में कुल 80 पंक्तियाँ यानि 40 अर्द्धालियाँ / पद हैं

चारों चौकल मेरे भाई, मिलकर बनते है चौपाई 

जीवन भर तुलसी की गाई, अब तो हम भी लिख ले भाई 

// चालीसा में कुल 80 पंक्तियाँ यानि 40 अर्द्धालियाँ / पद हैं //
नहीं, चालीसा में चालीस अर्द्धालियाँ, अर्थात चालीस न कि अस्सी पंक्तियाँ (पद) हैं. किन्तु चौपाई बीस ही हुईं.

अब कन्फ़्यूजिया गया सर। एक बार फिर से
एक चौपाई में चार पद / चार पंक्तिया
दो पंक्तियों की एक अर्धाली
चालीस अर्धालियों की एक चालीसा /
अस्सी पंक्तियों की एक चालीसा /
बीस चौपाइयों की एक चालीसा
-------
(पाठ लेख में कुछ गलत टाइप हुआ है सर।)

इसी आलेख से -

कुछ कहने के पूर्व मैं यह कहता चलूँ  कि चौपाई में कई लोगों के लिए चरण और पद अक्सर गड्डमड्ड हो जाते हैं. कारण कि, तुकान्त पंक्तियों के अपने-अपने भागों में कोई यति नहीं होती.

जय हनुमान ज्ञान गुण सागर ।  जय कपीश तिहुँ लोक उजागर ॥
<-----------चरण--------------->।<------------चरण--------------------> <------------------------------पद/अर्द्धाली--------------------------------->

उपर्युक्त उद्धृत दो पद या दो पंक्ति न हो कर एक ही पद के दो चरण हैं.

आपकी समझ में संभवतः ये दो पद या दो पंक्तियाँ हैं. आपके भ्रम का कारण आपकी यही सोच है.

आप इस लेख को एक दफ़े फिर से पढ़ जाइये.

यह आलेख हम जैसे नव साहित्य प्रेमियों के लिए अत्यंत उपयोगी सिद्ध हो रहा है।इस ज्ञानवर्धन के लिए हार्दिक आभार पूज्य सौरभ सर।

सोलह सोलह भार जमाते ।चौपाई का छंद बनाते।।

त्रिकल त्रिकल का जोड़ मिलाते। दो कल चौकाल साथ बिठाते।।

दो चरणों की इक अर्द्धाली। चार चरण चौपाई झाली।।

पद चालीस भरे जो खीसा। हो जाए पूरी चालीसा।।

RSS

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"क़रीना पर आपके शेर से संतुष्ट हूँ. महीना वाला शेर अब बेहतर हुआ है .बहुत बहुत बधाई "
15 minutes ago
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"हार्दिक स्वागत आपका गोष्ठी और रचना पटल पर उपस्थिति हेतु।  अपनी प्रतिक्रिया और राय से मुझे…"
18 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-122 (विषय मुक्त)
"आप की प्रयोगधर्मिता प्रशंसनीय है आदरणीय उस्मानी जी। लघुकथा के क्षेत्र में निरन्तर आप नवीन प्रयोग कर…"
50 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"अच्छी ग़ज़ल हुई है नीलेश जी। बधाई स्वीकार करें।"
57 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"मौसम का क्या मिज़ाज रहेगा पता नहीं  इस डर में जाये साल-महीना किसान ka अपनी राय दीजिएगा और…"
58 minutes ago
अजय गुप्ता 'अजेय commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"उपयोगी सलाह के लिए आभार आदरणीय नीलेश जी। महत्वपूर्ण बातें संज्ञान में लाने के लिए धन्यवाद। एक शेर…"
1 hour ago
Nilesh Shevgaonkar commented on गिरिराज भंडारी's blog post ग़ज़ल - यहाँ अनबन नहीं है ( गिरिराज भंडारी )
"आ. गिरिराज जी ग़ज़ल के लिए बहुत बहुत बधाई ..मैं निजि रूप में दर्पण जैसे संस्कृतनिष्ठ शब्द को…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"धन्यवाद आ. गिरिराज जी "
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (कुर्ता मगर है आज भी झीना किसान का)
"आ. अजय जी,अच्छे भावों से सजी हुई ग़ज़ल हुई है लेकिन दो -तीन बातें संज्ञान में लाने का प्रयत्न कर रहा…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. सौरभ सर,मतले से बात शुरुअ करता हूँ.. मुट्ठी भर का अर्थ बहुत थोड़े या लिटरल- 5 (क्यूँ…"
2 hours ago
Nilesh Shevgaonkar commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"धन्यवाद आ. गिरिराज जी "
3 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आदरणीय नीलेश जी, एक अच्छी प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें.  कई शेर हैं जो पाठकों…"
6 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service