For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

नन्हीं नन्हीं

ख़वाहिशें जन्मी है

जैसे पतझड़ के बाद

नन्हीं कलियाँ

नन्ही कोपले

 

बड़े आग़ाज़ का

छोटा सा ख़ाका

बड़ी उम्मीदों की

छोटी सी किरन

 

उगने दो इन्हें

पनपने दो

कल की धूप के लिए

इनके साये बनने दो

 

करो तैयारी

खूबसूरत शुरुआत कि

सजाओ बस्ती

अपने जहान कि

के फिर

मौसम ने करवट ली है

फिर क़िस्मत ने दवात दी है

फिर खुशियों ने रहमत की है

 

जगने दो ख्वाहिशें

पकने दो ख्वाहिशें

के नया कुछ होने को है

परिवर्तन होने को है

 

इंतज़ार ख़त्म होने को है ……..

(मौलिक और अप्रकाशित)

प्रियंका.....

Views: 610

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Priyanka singh on July 6, 2014 at 12:48am

बहुत बहुत आभार ब्रजेश सर .... 

Comment by बृजेश नीरज on July 5, 2014 at 8:24pm

आपकी रचनाओं में आशा की किरण दिखती है, जो सकारत्मक सोच का परिणाम है और पाठक को भी सुकून प्राप्त होता है. इस सुन्दर रचना के लिए आपको हार्दिक बधाई!

Comment by Priyanka singh on April 22, 2014 at 9:24pm

बहुत बहुत आभार सौरभ सर ...आपकी प्रतिक्रिया मिली ...अच्छा लगा ....जी सर आपकी सलाह का ध्यान रखूंगी... 


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on April 16, 2014 at 11:36pm

नये हौसलों तथा आशाओं को शब्दबद्ध करना कविकर्म का सदा से एक रोचक पहलू रहा है. इन आशाओं और उम्मीदों को नये ढंग से प्रस्तुत करने की हमेशा से कोशिश होती रही है. आपकी प्रस्तुति भी उसी पहलू की एक नयी कड़ी मालूम हुई.

बधाई व शुभकामनाएँ ..

की और कि को क्रमशः कि तथा के  लिखना तो अखरा है. आप इस तरह की त्रुटियों से बचें तो उचित ही होगा.

शुभ-शुभ

Comment by Priyanka singh on April 15, 2014 at 4:31pm

आदरणीया प्राची मैम ....आपके शब्द मेरे लिए अनमोल है, मेरी रचना पर आपकी नज़र पड़ी और सराहना मिली ...मुझे ख़ुशी हुई ...बहुत बहुत आभार आपका .....यूँही सराहती रहिएगा.... 

Comment by Priyanka singh on April 15, 2014 at 4:06pm

आदरणीया कल्पना मैम...... बहुत बहुत आभार आपका मेरी रचना को अपनी नज़र देने के लिए ...

Comment by Priyanka singh on April 15, 2014 at 4:05pm

शिज्जु सर ...मेरी रचना आपको पसंद आयी और इसे आपकी प्रशंसा मिली .....बहुत ख़ुशी हुई ...बहुत बहुत धन्यवाद आपका ...

Comment by Priyanka singh on April 15, 2014 at 4:04pm

आदरणीय विजय सर
आपकी प्रशंसा ह्रदय को आनंदित कर देती है, बहुत बहुत आभार आपका ...यूँही आशीर्वाद बनाये रखें....

Comment by Priyanka singh on April 15, 2014 at 4:02pm

आदरणीय गिरीराज सर .....आपकी प्रशंसा से अभिभूत हूँ ....बहुत बहुत आभार आपका.... 

Comment by Priyanka singh on April 15, 2014 at 4:01pm

आदरणीया अन्नपूर्णा जी .....आपकी पसन्दगी का शुक्रिया ...

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"आदरणीय जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय । हो सकता आपको लगता है मगर मैं अपने भाव…"
14 hours ago
Chetan Prakash commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . . . विविध
"अच्छे कहे जा सकते हैं, दोहे.किन्तु, पहला दोहा, अर्थ- भाव के साथ ही अन्याय कर रहा है।"
16 hours ago
Aazi Tamaam posted a blog post

तरही ग़ज़ल: इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्या

२१२२ २१२२ २१२२ २१२इस 'अदालत में ये क़ातिल सच ही फ़रमावेंगे क्यावैसे भी इस गुफ़्तगू से ज़ख़्म भर…See More
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"परम् आदरणीय सौरभ पांडे जी सदर प्रणाम! आपका मार्गदर्शन मेरे लिए संजीवनी समान है। हार्दिक आभार।"
yesterday
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा सप्तक. . . . . विविध

दोहा सप्तक. . . . विविधमुश्किल है पहचानना, जीवन के सोपान ।मंजिल हर सोपान की, केवल है  अवसान…See More
yesterday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"ऐसी कविताओं के लिए लघु कविता की संज्ञा पहली बार सुन रहा हूँ। अलबत्ता विभिन्न नामों से ऐसी कविताएँ…"
yesterday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

छन्न पकैया (सार छंद)

छन्न पकैया (सार छंद)-----------------------------छन्न पकैया - छन्न पकैया, तीन रंग का झंडा।लहराता अब…See More
yesterday
Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"आदरणीय सुधार कर दिया गया है "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post गहरी दरारें (लघु कविता)
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। बहुत भावपूर्ण कविता हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Monday
सुरेश कुमार 'कल्याण' posted a blog post

गहरी दरारें (लघु कविता)

गहरी दरारें (लघु कविता)********************जैसे किसी तालाब कासारा जल सूखकरतलहटी में फट गई हों गहरी…See More
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

शेष रखने कुटी हम तुले रात भर -लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

212/212/212/212 **** केश जब तब घटा के खुले रात भर ठोस पत्थर  हुए   बुलबुले  रात भर।। * देख…See More
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service