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तू मेरी मोहब्बत है,तू मेरी इबादत है।

तू मेरी मोहब्बत है,तू मेरी इबादत है।
कैसे मैं तुझसे कहूँ,मुझे तेरी ज़रुरत है।

हरदम मैं लूँ नाम तेरा,चाहे शाम हो या सवेरा,
ये तुझको भी है मालूम, मुझे तेरी आदत है।

पाने को न कुछ पाया,जो तुझको नहीं पाया,
फिर चाहे जहाँ भर की,मेरे पास ये दौलत है।

ये साँस भी छिन जाये,जो पास न तू आये,
आकर आगोश में ले ले,बस इतनी हसरत है।

तुझसे ज़िंदगानी मेरी,तुझसे ही कहानी मेरी,
तेरे बिन जीना कैसा,कह दे,मरने की इज़ाज़त है।
 
'सावित्री राठौर'
[मौलिक एवं अप्रकाशित]

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Comment by Dr.Prachi Singh on June 30, 2014 at 7:18pm

प्रेम में भाव प्राण समर्पिता के हृदय के उदगार बहुत कोमलता से व्यक्त हुए हैं 

मर्मस्पर्शी अभिव्यक्ति...

हार्दिक बधाई आ० सावित्री जी 

Comment by Savitri Rathore on June 24, 2014 at 4:41pm

आदरणीय गिरिराज जी और जवाहर जी,आपके द्वारा की गयी सराहना एवं उत्साहवर्धन हेतु मैं आभारी हूँ और अपेक्षित सुधार हेतु प्रयासरत हूँ।

Comment by Savitri Rathore on June 24, 2014 at 4:37pm

आदरणीया राजेश जी,सादर नमस्कार ! मार्गदर्शन हेतु हृदय सेआपकी आभारी हूँ,किन्तु व्यस्तता के कारण अभी ग़ज़ल समूह की कक्षा पर ध्यान नहीं दे पाऊँगी,पर समय मिलते ही आपके निर्देशानुसार ध्यान देकर अपनी ग़ज़ल रचना में  अपेक्षित सुधार अवश्य करूंगी। आपके अमूल्य सुझाव हेतु आभारी हूँ।

Comment by JAWAHAR LAL SINGH on June 22, 2014 at 9:35pm

तुझसे ज़िंदगानी मेरी,तुझसे ही कहानी मेरी,
तेरे बिन जीना कैसा,कह दे,मरने की इज़ाज़त है। 

बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण रचना!


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on June 22, 2014 at 8:40pm
आदरणीया सावित्री जी , सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये बधाई ॥ मै भी आदरणीया राजेश जी के विचारों से सहमत हूँ ॥

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on June 22, 2014 at 5:16pm

सावित्री जी बहुत भाव पूर्ण लिखा है आपने ,इन्ही भावों को सही मात्राओं और बहर में ढाल कर आप बहुत अच्छी ग़ज़ल लिख सकती हैं ग़ज़ल समूह में आप सब जानकारी हासिल कर सकती हैं बहरहाल बहुत -बहुत बधाई इस सुन्दर अभिव्यक्ति पर 

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