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मंच संचालक
राणा प्रताप सिंह
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दिगंबर साहब मज़ा आ गया
क्या ही शेर कह दिए
ऐसा लग रहा है जैसे साकी ने पैमाने पर पैमाने ढाल दिए हों
Bahut achhe bhaav se sajaaya hai is gazal ko ...
kaheen kaheen bhahar thoda bhataki huyi lagti hai .... gunijan jyaada bata paayenge is baare mein ...
Mujhe to bahut hi lajawaab aur naye lage aapke khyaalaat ...
bahut hi badiya prastuti nemichand sahab....
सबके जीवन की दिनचर्या, मानो बहता दरिया,
सडको पे हुजूम, पानी का रेला लगता है।।
waakayi lajawab...bahut khub...likhte rahen aisehi
पुनिया साहिब अच्छी ग़ज़ल कही है आपने ,
माना बरखुर्दार के, सियाह - सफेद हो गये, ‘चंदन‘
फिर भी माता-पिता को, अब भी बच्चा लगता है।।
मकता पूरी ग़ज़ल में सबसे सार्थक और यथार्थ लगा , सुंदर प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करे श्रीमान |
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