1- आदित्य चतुर्वेदी
2- सुश्री विजय लक्ष्मी
3- मनोज शुक्ल ‘मनुज’
4- डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव
5- केवल कुमार ‘सत्यम’
6- आलोक रावत ’आहत’
7- एस. सी. ब्रह्मचारी
8- आत्म हंस ‘वैभव’
कवि गोष्ठी का शुभारम्भ सर्व सम्मति से डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव की अध्यक्षता एवं श्री आदित्य चतुर्वेदी के कुशल एवं आनुभविक संचालन में माँ सरस्वती के चरणों में दीप जलाने और पुष्पादि समर्पित करने के उपरांत दोपहर एक बजे श्री मनोज शुक्ल ‘मनुज’ की वाणी वंदना के साथ हुआ I मनुज जी ने अपनी कई रचनाये सुनायी और ‘जवानी’ शीर्षक कविता में जवानी के हजार रंगों को उजागर किया I उनका निम्नांकित मुक्तक कवियो द्वारा सराहा गया-
वक्त का चेहरा घिनौना हो गया
आदमी अब कितना बौना हो गया
सभ्यता का जो दुपट्टा था कभी
आज वैश्या का बिछौना हो गया I
केवल प्रसाद ‘सत्यम’ जी इस आयोजन के सक्रिय कार्यकर्त्ता रहे I इन्हों छंद और गजल से श्रोताओं का मन बहलाया I पीपल वृक्ष पर आधारित अपनी कविता में उन्होंने पीपल के औषधीय गुणों के साथ पीपल के सामाजिक एवं आध्यात्मिक पक्षों की भी चर्चा की I
सौभाग्य से आकाशवाणी लखनऊ के ऐंकर श्री आत्म हंस ‘वैभव’ जी इस गोष्ठी के प्रमुख सहभागियों में से एक थे I वे वीर-रस के प्रख्यात कवि है और उनके तीन आह्वान-गीत भारत के पूर्व प्रधान मंत्री आदरणीय अटल बिहारी बाजपेयी जी द्वारा भिन्न-भिन्न अवसरों पर पुरुस्कृत हुए है I श्री वैभव जी ने अपने वीर रसात्मक गीतों से स्वाधीनता दिवस की यादो को पुनः जीवित कर दिया I उनके गीत की कुछ पंक्तियाँ निम्न प्रकार हैं –
बागो मे फूल खिले हों जब तब हाला के गीत रचा करता हूं I
प्याला पिलाते हुए प्रिय को मधुशाला के गीत रचा करता हूं I
वैभव जो युग का कवि है युग बाला के गीत रचा करता हूं I
आग लगी हुयी बाग़ में हो तब ज्वालाके गीत रचा करता हूं I
इस गोष्ठी में प्रसिद्ध गजलकार और कवि श्री आलोक रावत ‘आहत’ की उपस्थिति ने आयोजन में चार चाँद लगा दिये I उन्होंने ‘मेरे देश की मिट्टी – I’ नामक अपने लम्बे गीत से कवियों को मंत्रमुग्ध कर दिया I फिर उन्होंने ‘मेरी जिदगी में उजाले बहुत हैं ---I’ शीर्षक से एक सम्मोहन पैदा किया जो इसके आख़िरी शेर तक बरक़रार रहा – ‘ ये रहने भी दो अपने अश्के मुरौव्वत , मेरी मौत पर रोनेवाले बहुत हैं I’ इनके गजल की कुछ पंक्तियाँ निदर्शन स्वरूप प्रस्तुत हैं –
जब भी खेतों में धान मरता है I
साथ उसके किसान मरता है I
कहाँ मरते हैं मुसल्माँ हिन्दू
मेरा हिंदुस्तान मरता है I
कवयित्री विजय लक्ष्मी ने ’ऐसी-तैसी’ कविता में पहले तो पाकिस्तान की अच्छी खबर ली फिर अपनी गजलो से सबको चमत्कृत किया I अनुभवी एवं विद्वान ब्रह्मचारी जी ने अपनी जवानी के दिनों की याद कर श्रृंगार –रस की धारा बहाई I उनकी एक रूमानी कविता इस प्रकार थी –
गीत रचूंगा बैठो थोडा I
तेरा यह उन्मादित यौवन
मचले रह–रह यह पागल मन
जुल्फें जरा हटा लो सजनी
देखू मै तेरा मुख चन्दन
अरे-अरे उफ़ क्यों मुख मोड़ा
गीत रचूंगा बैठो थोडा I
श्री आदित्य चतुर्वेदी जी अपनी क्षणिकाओं के लिए कवि समाज में पर्याप्त समादृत हैं I अपनी इस प्रतिभा का मुजाहिरा उन्होंने संचालन में किया और कुछ मधुर गीत भी सुनाये I उनकी एक क्षणिका ने आसन्न जन्माष्टमी को जीवंत किया-
वासुदेव कृष्ण सहित जेल से फरार I
न कोई रक्षक निलम्बित न कोई गिरफ्तार I
इसीलिये मानते हैं पुलिसवाले
जन्माष्टमी का त्यौहार I
अंत में डा0 गोपाल नारायन श्रीवास्तव ने सभी कवियों की प्रशंसा की I कवि धर्म को सराहा और कुछ अपने दोहे तथा छंद सुनाये I जैसे –
चाँद बिछौना हो गया सजा सेज पर तल्प I
खाट बिछेगी अब कहाँ, मंगल का संकल्प I
सायं पांच बजे तक निर्बाध चली इस गोष्ठी को परम्परानुसार अध्यक्षीय भाषण के बाद समाप्त घोषित किया गया I
इत्यलम I
ई एस -1/436, सीतापुर रोड योजना
सेक्टर-ए, अलीगंज, लखनऊ I
मो0 9795518586
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आदरनीय शरदिंदु जी
आपका शत-शत आभार I आपके मार्ग निर्देश का मात्र अनुसरण करने का प्रयास हुआ है i सादर i
बहुत उम्दा कलाम व सारगर्भित रचनायें हुई हैं
सुजान जी
आपका शताधिक आभार i
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