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हर दिल अज़ीज़ एहतराम इस्लाम की यह ग़ज़ल कविता कोष पर भी है।
गुमराही का नर्क न लादो कागज़ पर में तहलीली रदीफ़ का उदाहरण भी है इसमें।
ग़ज़ल पर तो मैं कुछ नहीं कहूँगा लेकिन यह सबके देखने का विषय है कि 'दो कागज़ पर' का रदीफ़ कहन की स्पष्टता में बाधक तो नहीं हो रहा।
:)
आप सही हैं।
'सभ्य सुशिक्षित को बहका दो कागज़ पर' को लेकर किसी को भ्रम हो तो क्ष की प्रकृति पर ध्यान दें यह वज़्न की दृष्टि से वस्तुत: क्श है इस प्रकार यह पंक्ति भी सही है।
पोस्ट से पूरी तरह से सहमत हू
परन्तु जब हम किसी शायर का मिसरा 'तरही' मुशायरे के लिए चुनते हैं तो रदीफ़ काफिया और बहर भी वही रखते हैं जो शायर ने अपनी ग़ज़ल में रखी है
यह बात ध्यान देने योग्य है की तरही मिसरा का चुनाव करते समय अतिरिक्त सावधानी बरती जाए
@ राणा भाई - रदीफ़ काफिया भी सरल दिया करिए, हम जैसों का भला होगा
@ O.B.O - पिछले दिनों व्यस्तता के कारण प्रतियोगिता और मुशायरे में हिस्सा न ले सका , क्षमा प्रार्थी हूँ
कविताएं तो लिखता रहा हूँ, पर गजल की जानकारी चाहता हूँ। आभार होगा यदि रदीफ़, काफिया, मिसरा, मतला इत्यादि पर एक विस्तृत विवरण प्रस्तुत हो।
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