For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पूर्वगाथा ....(विजय निकोर)

पूर्वगाथा

हादसा नया हो न हो

पुरानी चोट से जगह-जगह

दर्द नया

लहर दर्द की, अब दुखी

तब दुखी

कब रुकी

बहती चली गई

मेघ यादों के आँखों में घने

बरसे, बरसे अनमने

तालाब से नदी, सागर

रातों सियाह महासागर बने

कोई नि:सीम अखण्ड विश्वास

तारिकाएँ नभ में कितनी टूटीं

टूटी नहीं किसी के आने की आस

स्नेह की किरणों की उष्मा में बादल

बने फिर घने, फिर बरसे

भीतर सागर समतल

स्मृतिओं से गुँधते-बिंधते

सैकड़ों दिये किसी के नाम के

दर्द के पट्टे पर

हाथ मेरा फिर से जला

हादसा बचपन का, कल का नया लगा।

---------

 --- विजय निकोर

(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 609

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by vijay nikore on November 10, 2014 at 5:18pm

//है।रचना आपकी वेदना से शुरू होकर पाठक के मस्तिष्क से होती हुई हृदय तक सहलाने सहज ही पहुंच रही है।

आपके द्वारा प्रयुक्त बिम्ब सदैव बहुत भाते हैं मुझे।//

आपकी इस कदर सराहना मेरे लेखन के लिए संजीवनी है। हार्दिक आभार, आदरणीया विन्दु जी।

Comment by vijay nikore on November 10, 2014 at 5:16pm

//दिल के दर्द को आपने शब्दों में पिरो दिया ....आहा सर क्या कहूँ ....कितना मर्म है आपकी रचना में ....दिल को छु गयी...मन का कोई कोना फिर से हरकत में आ गया ....//

रचना को इतना मान देने के लिए, उसके शब्दों को, भावों को छूने के लिए आपका हार्दिक धन्यवाद, आदरणीया प्रियंका जी।

Comment by vijay nikore on November 10, 2014 at 5:14pm

//आपकी ये रचना पढ़कर शब्द-शब्द मानो दर्द से कराह  रहे हैं दिल को छू गई रचना//

रचना के मर्म को इस प्रकार छूने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीया राजेश जी।

Comment by vijay nikore on November 10, 2014 at 5:13pm

भावों की मासूमियत को देखने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय गोपाल नारायन जी।

Comment by vijay nikore on November 10, 2014 at 5:11pm

//मन भावन ह्रदय स्पर्शी इस रचना//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय आशुतोष जी।

Comment by vijay nikore on November 10, 2014 at 5:09pm

// बहुत सुन्दर रचना हुई है। हृदय को छूने वाली इस रचना के लिये बहुत बहुत बधाई//

रचना को मान देने के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय शिज्जु जी।

Comment by vijay nikore on November 10, 2014 at 5:07pm

//स्मृतियों से जुड़े रहना जीवन और जीवंतता का परिचायक है ...बहुत बहुत बधाई//

रचना की सराहना के लिए आपका हार्दिक आभार, आदरणीय विजय जी।

Comment by Vindu Babu on October 31, 2014 at 8:12pm

रचना का प्रवाह प्रभावी है आदरणीय।

पूर्व के दर्द का नितनूतन अहसास से ही सघन और हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति होती है।रचना आपकी वेदना से शुरू होकर पाठक के मस्तिष्क से होती हुई हृदय तक सहलाने सहज ही पहुंच रही है।

आपके द्वारा प्रयुक्त बिम्ब सदैव बहुत भाते हैं मुझे। सादर बधाई आपको इस मार्मिक कविता के लिए।

Comment by Priyanka singh on October 12, 2014 at 8:32pm

आदरणीय सर 

   दिल के दर्द को आपने शब्दों में पिरो दिया ....आहा सर क्या कहूँ ....कितना मर्म है आपकी रचना में ....दिल को छु गयी...मन का कोई कोना फिर से हरकत में आ गया .... बहुत बहुत बधाई आपको .... आपकी लेखनी को नमन ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on October 12, 2014 at 11:07am

ऐ ग़ज़ल तेरे बरखे से लहू टपक रहा है कहीं से चोट खाकर आई है शायद ....अपनी किसी रचना की पंक्तियाँ बरबस याद आ गई आपकी ये रचना पढ़कर शब्द-शब्द मानो दर्द से कराह  रहे हैं दिल को छू गई रचना |बधाई आपको आ० विजय निकोर जी |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"धन्यवाद"
2 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"ऑनलाइन संगोष्ठी एक बढ़िया विचार आदरणीया। "
2 hours ago
KALPANA BHATT ('रौनक़') replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"इस सफ़ल आयोजन हेतु बहुत बहुत बधाई। ओबीओ ज़िंदाबाद!"
9 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to मिथिलेश वामनकर's discussion ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024
"बहुत सुंदर अभी मन में इच्छा जन्मी कि ओबीओ की ऑनलाइन संगोष्ठी भी कर सकते हैं मासिक ईश्वर…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर posted a discussion

ओबीओ मासिक साहित्यिक संगोष्ठी सम्पन्न: 25 मई-2024

ओबीओ भोपाल इकाई की मासिक साहित्यिक संगोष्ठी, दुष्यन्त कुमार स्मारक पाण्डुलिपि संग्रहालय, शिवाजी…See More
Sunday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय जयनित जी बहुत शुक्रिया आपका ,जी ज़रूर सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय संजय जी बहुत शुक्रिया आपका सादर"
Saturday
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"आदरणीय दिनेश जी नमस्कार अच्छी ग़ज़ल कही आपने बधाई स्वीकार कीजिये गुणीजनों की टिप्पणियों से जानकारी…"
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"बहुत बहुत शुक्रिया आ सुकून मिला अब जाकर सादर 🙏"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"ठीक है "
Saturday
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"शुक्रिया आ सादर हम जिसे अपना लहू लख़्त-ए-जिगर कहते थे सबसे पहले तो उसी हाथ में खंज़र निकला …"
Saturday
Euphonic Amit replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-167
"लख़्त ए जिगर अपने बच्चे के लिए इस्तेमाल किया जाता है  यहाँ सनम शब्द हटा दें "
Saturday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service