For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हक़ के लिये लड़ते सभी झगड़ा कभी थमता नहीं |

११२१२      ११२१२       ११२१२       ११२१२     कामिल - मुतफ़ाइलुन 
हक़ के लिये लड़ते सभी झगड़ा  कभी थमता नहीं | 
शक है वहीँ डर है कहीं प्रिय   पास है समता  नहीं | 
जब साथ है हर बात है कटु बात भी  मिसरी लगे ,
अँखिया वहीँ दिल है कहीं लगता कहीं  ममता नहीं |
छतरी  वहीँ गुड़िया नहीं कब से   रहीं गुम है कहीं ,
मसला वहीँ तनहा अभी   रहना कहीं  जमता नहीं |
पहिया बिना चलती  नहीं  रुकती कहीं मजधार में , 
पटरी वहीँ गड्डी वहीँ   इक   पाँव से थमता  नहीं |
वन में कहीं  चटकी  कली  महके कहीं बहती हवा ,
पथ में कहीं  मजनू पड़ा उठता कभी   क्षमता नहीं |
जग में सभी मिलते रहें  खुश हों सदा मन से सभी  ,
जब वर्मा  गम हो जिसे दिल तो  कहीं रमता नहीं |
श्याम नारायण वर्मा 
(मौलिक व अप्रकाशित)

Views: 745

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Nirmal Nadeem on March 16, 2015 at 4:45pm

Aadarniiy Mithilesh ji, bahut sahi kahaa aapne, kal yahi sochte sochte dimaag garm ho gya k ye sher kiska hai. maafi chahta hu. momin Khan Sahab ka hi. shukriya.

Comment by Shyam Narain Verma on March 16, 2015 at 9:59am

आदरणीय डा. विजय शंकर जी रचना भाव पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार | आदरणीय मिथिलेश जी सुधार करने और कीमती राय देने के लिए बहुत बहुत आभार | आदरणीय गिरिराज जी राय देने के लिए आपका बहुत बहुत आभार |
आदरणीय निर्मल नदीम जी उदाहारण देकर समझाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार |
सादर ..


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 16, 2015 at 4:40am
आदरणीय निर्मल नदीम जी बह्र-ए-रजज़ को आपने अच्छा समझाया। हार्दिक धन्यवाद। एक निवेदन करना चाहूँगा
आपने जो शेर मीर साहब का बताया है वो दरअसल मोमिन खाँ मोमिन साहब का है जो ग़ालिब और जौक साहब के समय के है। मीर साहब इनसे 70 साल पहले ही पत्ता पत्ता बूटा बूटा जैसी ग़ज़लें कह गए जिन्हें जफ़र ग़ालिब ज़ौक और मोमिन साहब से पढ़ा और प्रेरित हुए।
Comment by Nirmal Nadeem on March 15, 2015 at 6:34pm
बहुत खूब वाह वाह वाह
बहुत उम्दा ग़ज़ल है भाई क्या कहने।

यह ग़ज़ल आपने बहरे रजज़ में कही है जिसका रुक्न होता है- मुस्तफ़ इलुन: एक मिसरे में चार बार एक शेर में आठ बार।

बहरे कामिल सालिम का अलग रुकन है देखें-
रुक्न: मुतफाइलुन :- एक मिसरे में चार बार एक शेर में आठ बार।

एक उदाहरण देखिए: मेरा मतला और शेर।

न कहा गया न सुना गया
वो ख़याल कोई अजीब था,
जो मेरी ग़ज़ल में था मुब्तिला
वो ख़याल कोई अजीब था।

मैं ये दिल जलाने के बाद भी
उसे कर न पाया हूँ मुतमइन
मैं फ़ना हुआ तो पला बढ़ा,
वो ख़याल कोई अजीब था।

फ़िल्म प्रेम रोग में एक ग़ज़ल इसी बहर पर है-

वो पियार था या कुछ और था न तुझे पता न मुझे पता।
वो निगाह का ही कुसूर था न तुझे पता न मुझे पता।

एक शेर मीर का भी देखिये:

वो जो हममें तुममें करार था तुम्हें याद हो कि न याद हो।
वही फानी वादा निबाह का तुम्हें याद हो कि न याद हो।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on March 15, 2015 at 9:53am

आदरणीय श्याम भाई , बढिया गज़ल हुई है , आपको हार्दिक बधाइयाँ । आदरणीय मिथिलेश भाई जी की बात से मै भी सहमत हूँ , आपने सभी मिसरों मे साश्वत 2 - हक़ , शक , जब , आदि को 11 ले लिया है , अतः 2212 कर  लेना सरह हो गा ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on March 15, 2015 at 8:48am

आदरणीय श्याम नरेन वर्मा जी बह्र-ए-रज़ज़ में सुन्दर ग़ज़ल हुई है. वज्न को 2212 x 4 कर लीजिये.

ग़ज़ल के अशआर में बह्र निभाने का दबाव अधिक महसूस हो रहा है इसलिए कई लफ्ज़ भर्ती के लग रहे है जैसे 

जब साथ है हर बात है कटु बात भी  मिसरी लगे ,... जब साथ है अहसास है कटु बात भी मिसरी लगे 

अँखिया वहीँ दिल है कहीं लगता कहीं  ममता नहीं |....अखियाँ वहीँ दिल भी वही लेकिन कहीं ममता नहीं 

जग में सभी मिलते रहें  खुश हों सदा मन से सभी  ,
 वर्मा यहाँ  गम हो इसे दिल तो  कहीं रमता नहीं |
Comment by Dr. Vijai Shanker on March 14, 2015 at 8:08pm
जग में सभी मिलते रहें खुश हों सदा मन से सभी ,
जब वर्मा गम हो जिसे दिल तो कहीं रमता नहीं |
बहुत सुन्दर भाव, आदरणीय श्याम नारायण वर्मा जी , बधाई , सादर।
Comment by Shyam Narain Verma on March 14, 2015 at 1:26pm

सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार ।

Comment by Shyam Mathpal on March 14, 2015 at 12:30pm

Aadarniya shyam Narain Verma Ji,

Sundar rachna ke liye badhai.

Comment by Shyam Narain Verma on March 14, 2015 at 11:37am

 सराहना हेतु हृदय से आभार.

 सादर 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity


सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार। बहुत बहुत धन्यवाद। सादर।"
5 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी आपने प्रदत्त विषय पर बहुत बढ़िया गजल कही है। गजल के प्रत्येक शेर पर हार्दिक…"
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"गजल**किसी दीप का मन अगर हम गुनेंगेअँधेरों    को   हरने  उजाला …"
13 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"आ. भाई भिथिलेश जी, सादर अभिवादन। प्रदत्त विषय पर उत्तम रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
14 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"दीपोत्सव क्या निश्चित है हार सदा निर्बोध तमस की? दीप जलाकर जीत ज्ञान की हो जाएगी? क्या इतने भर से…"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"धन्यवाद आदरणीय "
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"ओबीओ लाइव महा उत्सव अंक 179 में स्वागत है।"
yesterday
Admin replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-179
"स्वागतम"
yesterday
Admin added a discussion to the group चित्र से काव्य तक
Thumbnail

'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 172

आदरणीय काव्य-रसिको !सादर अभिवादन !!  ’चित्र से काव्य तक’ छन्दोत्सव का यह एक सौ…See More
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' left a comment for मिथिलेश वामनकर
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। जन्मदिन की शुभकामनाओं के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन।गजल पर उपस्थिति और उत्साहवर्धन के लिए हार्दिक आभार।"
yesterday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post साथ करवाचौथ का त्यौहार करके-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, करवा चौथ के अवसर पर क्या ही खूब ग़ज़ल कही है। इस बेहतरीन प्रस्तुति पर…"
Thursday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service