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ऐसी धारणाओं को तोड़ने की जरुरत है आज के समाज में । आपने बहुत खूबसूरती से समाज के एक ऐसे पहलु को उठाया है जो दुखद है । बधाई इस मर्मस्पर्शी लघुकथा के लिए.
आदरणीय विनोद भाई प्रस्तुत लघुकथा के माध्यम से आपने बहुत संवेदनशील पहलू पर प्रभावशाली कथा कह पहचान विषय को पूरी तरह परिभाषित किया है। इस सुगठित व सारगर्भित कथा प्रेषण हेतु बहुत बहुत शुभकामनाएं ।
(मौलिक व अप्रकाशित)
"अच्छा अच्छा, तो ऐसे बोलो ना कि भीखू नाई का लौंडा है ।"ये अंतिम वाक्य असलियत जो जीता हुआ ..गाँव में जिस किसी की कोई पहचान जिस नाम से होती है चाहे उसकी अगली पीढियां कितनी भी ऊँचाई छूलें पर उसकी पहचान वही रहेगी पुराने लोग तो कम से कम बनावट से दूर ही रहते हैं ..भीखू नाई एक वैसी ही पहचान है ..बहुत बढ़िया कहानी ..विषय को सार्थक करती बहुत- बहुत बधाई आ० रवि प्रभाकर जी|
हारदिक आभार आदरणीय राजेश दी ।
आदरणीय रवि प्रभाकर भाई जी ! आप की कथा मेरे लिए हमेशा एक 'पाठ' की तरह ही होती है जिससे मुझे कुछ न कुछ सीखने को ही मिलता है......
पहचान के असली मायने कैसे बदलते है इस चीज को कम से कम शब्दों में दिखाती सुन्दर रचना ..... लाजवाब,
सादर बधाई स्वीकार करे.
आप सरीखे सिद्धहस्त से प्रशंसा प्राप्त करना असीम हर्ष प्रदान करता है आदरणीय वीर भाई ।
वाह रवि भाई वाह, आप तो कमाल करते हैं, समाज में हमारी पहचान कई तरीके से होती है, कही न कही हमारी पहचान जातिगत भेदभाव से फिल्टर होकर निर्धारित होती है. बहुत ही खुबसूरत और व्यापक कथ्य के साथ प्रस्तुत हुई इस लघुकथा पर बहुत बहुत बधाई प्रेषित करता हूँ.
लघुकथा सम्राट से वाह वाही प्राप्त करना मुग्धकारी है । धन्यवाद आदरणीय गणेश भाई जी ।
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