Tags:
Replies are closed for this discussion.
"पहाड़ी इलाके के पनबरसा बादल, पटपटा के झिहर पड़े" मनभावन सर जी . सुंदर लघुकथा सादर
आदरणीय सुधीर द्विवेदीजी,
प्रस्तुति के जिस वाक्य को आपने उद्धृत किया है वह किन संदर्भों में किया, इसका भान नहीं हुआ. आपने कथा को समय दिया यह मेरे लिए भी संतोष की बात है.
वैसे, इस प्रस्तुति के मर्म पर आपने चर्चा की होती तो मैं भी एक रचनाकार के तौर पर अवश्य आश्वस्त हुआ होता.
सादर
बाँके बिहारी अपनी इस ’वर्ल्ड फ़ेमस’ हुई ’पहचान’ पर फूला नहीं समा रहा था.. ---एक धूर्त के लिए ये पहचान छोटी नहीं है ..छोटे छोटे चोर भी अपने को डाकू सुनकर फूले नहीं समाते ..क्या बात है...दफ्तरों के बाबुओं की मासूमों को लूटने की दक्षता क्या ख़ूबसूरती से दिखाई है लघु कथा में उस पर आंचलिक शब्दों से अलंकृत वाह्ह ...बहुत बढ़िया दिल से बधाई आ० सौरभ जी |
आदरणीया राजेश कुमारीजी,
आपने इस लघुकथा को समय दिया यह मेरे लिए भी आश्वस्ति का कारण है. यह अवश्य है कि काश आपने थोड़ा समय और दिया होता, तो यह न कहतीं - .दफ्तरों के बाबुओं की मासूमों को लूटने की दक्षता क्या ख़ूबसूरती से दिखाई है लघु कथा में
नहीं आदरणीया, ऐसी बात नहीं है, यहाँ तथाकथित बड़ा बाबू स्वयं माध्यम बना लुट रहा है ... :-))
लघुकथा को समय देने के लिए हार्दिक धन्यवाद
पहचान बनाने का यह तरीका भी हुआ करता है, ऐसे महानुभावों को पँजाबी (मालवा क्षेत्र में बोली जाने वाली) भाषा में "खोचरी" कहा जाता है। आंचलिक शब्दों के मसालों तथा हास्य रस के छौंक ने इस लघुकथा को एक अलग ही सुवास प्रदान कर दी आ० सौरभ भाई जी। हार्दिक बधाई स्वीकारें।
आदरणीय योगराजभाईसाहब, आपकी पारखी दृष्टि ने इस कथा के मर्म को जिस कौशल से पकड़ लिया है वह आपकी इस विधा में सिद्धहस्तता को प्रमाणित करता है. दलालों की कारगुजारियों के रंग-ढंग को सामने लाती इस लघुकथा में आंचलिक भाषा का स्पर्श केवल कौतुक ही उत्पन्न नहीं करता बल्कि वह माहौल भी देता है, जिसमें ऐसे (कु)कर्म होते हैं.
आदरणीय, ये दलाल इसी व्यवस्था की उत्पत्ति हैं. ये सिस्टम का भाग न होते भी इसका लाभ उठाते हुए इसीमें जीते हैं. और, कस्टमर और सिस्टम दोनों को चूना लगाते हैं.
आपके अनुमोदन केलिए हार्दिक धन्यवाद
ठगी का खेल, वर्ल्ड फेमस का गुब्बारा (तगमा) ...वाह रे बाँके बिहारी !! ऐसे ऐसे बाँके, कैसे कैसे बोका ढूढ़ लेते हैं. अच्छी लघुकथा हुई है, आंचलिकता का छौंक कथा को अलंकृत कर रहा है. बहुत बहुत बधाई आदरणीय सौरभ भईया.
एक बात : अंतिम पक्ति की आवश्यकता नहीं है, उसके बगैर भी कथा पूर्ण लगती है और अपना नैसर्गिक प्रभाव छोड़ने में सफल है.
भाई गणेश जी बाग़ी, आपने इस लघुकथा के वर्ण्य पात्रों को समझा इसके लिए हार्दिक धन्यवाद. इस प्रस्तुति के पात्रों के संवादों की भाषा आपको परिचित लगी होगी. यह अवश्य है कि दलाल अपना उल्लू सीधा करने के फेर में इधर का उधर कह-सुन कर धन ऐंठते हैं. ये परिचय का लाभ लेते हैं. यही इनके परिचय और इनकी पहचान का मूल है. यही पहचान इनके कमाने का सोत है. इस हिसाब से पुनः देखिये क्या अंतिम पंक्ति अब रिडण्डेण्ट लग रही है ?
प्रस्तुति को समय देने केल् इए हार्दिक धनय्वाद
//देखिये क्या अंतिम पंक्ति अब रिडण्डेण्ट लग रही है ?//
जी भईया, अभी भी लग रही है.
ठीक है हम फिर देखते हैं ..
हम ऐसा इसलिए कह रहे हैं कि एक-एक शब्द को रखने के पहले हम भी सौ बार सोचते हैं. यह आपको भी मालूम है.
:-))))सहमत हूँ भईया, जब आप सौ बार सोचते है तो मैं तो भोदू विद्यार्थी हूँ दू ढाई सौ बार ......हा हा हा हा
//तो मैं तो भोदू विद्यार्थी हूँ दू ढाई सौ बार //
यह व्यंग्य है या कटाक्ष ?
ऐसे वाक्यों से संवाद की स्थिति तो बनेगी नहीं, नये सदस्य असहज होंगे वो अलग.
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |