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तीन साल पहले शहर में कैरियर बनाने आयी लड़की डोरमेट्री में बिछने वाली चादर की तरह हो गयी थी. आगे .....?
प्रिय शुभ्रांशु भाई, कुछ दृश्य आपने तैयार किया किन्तु कथा इसमें क्या है यह बात सदैव ध्यान देना चाहिए. इस प्रयास हेतु बहुत बहुत बधाई.
आदरणीय गणेश भैया.
अपनी कथा में मैने पहचान शब्द के दो रुपों को प्रस्तुत किया है. कथा के बाह्य आवरण को तैयार कर दिया था. एक लड़की जो पहचान बनाने निकली है उसकी हालत के बारे में एक बिम्ब प्रस्तुत किया है. डारमेट्री में बिछने वाली चादर शायद ही कभी साफ़ होती है और उस पर जब चाहे कोई सो कर चला जाता है. ये पहचान उस लड़की का तीन साल के बाद हो गया है. ये हालात और हालत अपने आप में स्पष्ट थे.
लघुकथा के आवश्यक तत्वों को रचनाओं में समाहित किया जाय, ऎसा करने के लिए कथा प्रयास बना रहेगा.
शुभ्रांशु जी आपने बहुत गूढ़ ढंग से कथा लिखा , मुझे अस्पष्ट थी .पर आपने इसकी विवेचना कर बहुत बढ़िया से स्पष्ट कर दिया है ,वाह
आदरणीया रिता जी,
कथा के विवेचना के बाद कथा को पसंद करने के लिये आभार. कथा गूढ़् और अस्पष्ट थी. इस कथन ने कथाकार को प्रोत्साहित ही किया है. भविष्य में स्पष्ट होने की पूरी कोशिश करुगा.
सादर.
कथ्य में सान्द्रता की अपेक्षा कभी कथानक से समझौता कर नहीं होनी चाहिये.
यह अवश्य है कि इस मंच पर ऐसी लघुकथाएँ आयी हैं, जिनमें सान्द्रता के फेर में कथानक से समझौता हुआ है. किन्तु, उन प्रस्तुतियों पर भी मैं ऐसा कहा करता था, इस लघुकथा पर भी वैसा ही कहूँगा, कि, लघुकथाओं के कथ्य का भी वातावरण हुआ करता है. कथानक की स्पष्टता और लघुकथा के उद्येश्य की संप्रेषणीयता उक्त वातावरण या तदनुरूप इंगित वातावरण के कारण ही संभव हुआ करता है.
इसी कारण, किसी शब्द या वाक्य की आवश्यकता लेखक या पाठक के लिए मनमानी चीज न हो कर, लघुकथा की आवश्यकता के अनुसार होनी चाहिये, भले कुछ शब्द या वाक्य अधिक हो जायें.
विश्वास है, मेरे कहे का अर्थ स्पष्ट हो रहा होगा.
इस गुरुतर प्रयास और गहन इंगितों से सधी हुई लघुकथा केलिए हार्दिक धन्यवाद, भाई शुभ्रांशुजी.
आदरणीय सौरभ् भैया,
कथा के लिये विस्तृत व्याख्या की है. आप लोगों के सहयोग, सान्निध्य और सलाह से हम जैसे नव रचनाकार प्रोत्साहित होते रहते हैं. कथा के भाव और कथानक पर अपने विचार देने के लिये आभार.
सादर.
बहुत बढ़िया . कम शब्दों में दमदार बात .पर केवल बात कुछ और प्रयास अपेक्षित था . सादर .
आदरणीय गोपाल नारायण जी,
कथा पर अपने विचार देने के लिये आभार,
सादर.
आदरणीय Shubhranshu Pandey जी महत्वाकांक्षाओं के पीछे भागते भागते कितनी दूर निकल जाते है, ये तब समझ आता है जब काफ़ी विलम्ब हो चुका होता है. बस थोड़ा कथानक का विस्तार होता तो लघुकथा कमाल की बन जाती. आपको हार्दिक बधाई इस प्रस्तुति पर.
आदरणीय मिथिलेश जी,
कथा के मर्म को समझने और उस पर अपने विचार देने के लिये आभार. कथा के शिल्प को बिम्बों में प्रस्तुत किया है. शिल्पगत दृष्टि से कथा को एक अलग रुप से प्रस्तुत किया है. ओबीओ के मंच पर इस तरह के आयोजन एक वर्कशाप की तरह है जहां रचनाकर के रचना की समालोचना हो जाती है. आपके प्रोत्साहन और सलाह के लिये आभार.
सादर.
कभी कभी अपनी पहचान बनाना ,इस तरह का पतन भी कर देता है. बहुत ही सुंदर लघुकथा प्रस्तुति आदरणीय शुभ्रांशु जी, आपको हार्दिक बधाई
आदरणीय जितेन्द्र जी,
कथा पर अपने विचार देने के लिये आभार.
सादर.
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