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मर्द होने का मानक ! न जाने क्या क्या तय किये जाते रहे हैं, एक मानक नायिका ने भी निर्धारित कर दी. अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीय जितेन्द्र जी, बधाई स्वीकार करें.
आदरणीय बागी जी. आप जैसे वरिष्ठ लघुकथाकार से संतोषजनक प्रतिक्रिया पाना बहुत ख़ुशी व् मनोबल देता है, आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर!
सुंदर कथा चित्रण आ. जितेंद्र जी
आपका हार्दिक आभार, आदरणीय पंकज जी
सादर!
भाई जितेन्द्रजी, आपने लघुकथा के माध्यम से आजके जिस सवाल को उठाया है, वह अत्यंत प्रासंगिक है.
विवाहित औरतें औरत होने का लाभ लेकर ससुरालवालों की जैसी फ़जीहत कर डालती हैं, या एक उत्तरदायी पति पर एकल परिवार हेतु जिस तरह से दवाब बनाती हैं, वह मात्र एक भुक्तभोगी ही समझ सकता है. दुखद है कि स्वच्छंद विचरने के लिए हर कुछ दाँव पर लगाने वाली ऐसी औरतें समाज के एक वर्ग को प्रभावित भी कर पाती हैं.
आपकी इस सफल लघुकथा के लिए हृदय से शुभकामनाएँ.
आपकी विस्तृत सकारात्मक प्रतिक्रिया लघुकथा को सार्थकता प्रदान कर रही है आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय सौरभ जी
सादर!
आपकी उपस्थिति व् सराहना हेतु आपका हार्दिक आभर,आदरणीया माला जी
सादर!
“ मैं बहुत अच्छे से समझ गई हूँ. मैं तो औरत हूँ, किन्तु तुम मर्द तो नहीं हो...” मर्दानगी का अजीब पैमाना . बधाई जितेन्द्र पस्टारिया जी
प्रोत्साहन हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीय ओमप्रकाश जी
सादर!
आदरणीय जितेन्द्र जी,
मा जिसे ममतामयी कहा जाता है उसी ने अब एक अलग रुप अख्तियार कर लिया है. सुन्दर कथा.
सादर.
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आदरणीय योगराज जी. सादर नमन. मुझसे शब्द -संयोजन में भारी चूक हुई है क्षमाप्रार्थी हूँ. आपका सुझाव सच में लघुकथा को सजीव बना रहा है. आपके मार्गदर्शन का ह्रदय से आभारी हूँ
सादर!