सुधिजनो !
दिनांक 18 मई 2014 को सम्पन्न हुए "ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव" अंक - 37 की समस्त प्रविष्टियाँ संकलित कर ली गयी है.
हालाँकि इसी दौरान मैं ओबीओ के लखनऊ चैप्टर के एक वर्ष की अवधि पूर्ण कर लेने के उपलक्ष्य में आयोजित काव्य-समारोह में भाग लेने के सिलसिले में एक दिवसीय प्रवास हेतु लखनऊ भी गया था. इस अवसर पर लखनऊ --और कानपुर भी-- के सदस्यों को पुनः हार्दिक बधाई और शुभकामनाएँ कह रहा हूँ.
परन्तु, मैं यह भी अवश्य कहूँगा कि समाप्त हुए छन्दोत्सव में प्रबन्धन और विशेष रूप से कार्यकारिणी के कई सदस्यों की अपेक्षित उपस्थिति कतिपय कारणों से नहीं बन सकी अथवा बाधित रही. कारण कई हैं. होंगे भी. समवेत प्रयासों के अपने तकाज़े होते ही हैं. लेकिन मंच के आयोजनों के प्रति बन रहे अन्यमनस्कता के भाव व्यक्तिवाची सोच के भी परिचायक हैं, जिसके विरुद्ध इस मंच के प्रणेता-प्रबन्धनगण, विशेष रूप से प्रधान सम्पादक आदरणीय योगराजभाईजी, सदा से मुखर रहे हैं.
सामान्य सदस्य भी, जो ओबीओ के पटल पर अपनी विभिन्न छन्द रचनाएँ प्रस्तुत करते हैं, प्रदत्त चित्र और प्रदत्त छन्दों पर अपनी रचनाएँ नहीं भेज पाते. रचनाकर्म के क्रम में उनकी व्यक्तिगत सीमाओं के कारण ऐसा हो सकता है. इसे मैं छन्दोत्सव के प्रति उनके उत्साह में कमी नहीं मानता. मान भी नहीं सकता. परन्तु, आयोजन में पाठक की हैसियत से भी भाग न लेना कई निर्णयों के प्रति आग्रही कर रहा है.
पुनः कहूँ तो कारण कई हैं या होंगे जो कि इस रिपोर्ट की सीमा में नहीं आते.
मैं फिर से कहना अपना धर्म समझता हूँ, कि इस मंच की अवधारणा वस्तुतः बूँद-बूँद सहयोग के दर्शन पर आधारित है. यहाँ सतत सीखना और सीखी हुई बातों को परस्पर साझा करना, अर्थात, सिखाना, मूल व्यवहार है. आगे, सदस्यगण सोचें तथा सूचित करें कि समीचीन क्या है.
इस बार के आयोजन के लिए चौपई तथा कामरूप छन्दों को लिया गया था.
छंद के विधानों के लिखे होने के कारण स्वयं की परीक्षा करना सहज और सरल हो जाता है. इसी कारण, पिछली बार की तरह आयोजन में सम्मिलित हुई रचनाओं के पदों को अशुद्धियों के मद्देनज़र लाल रंग में करने की योजना अमल में नहीं लायी जा रही है. आयोजन के क्रम में भी कई रचनाओं में अपेक्षित सुधार हो जाने के कारण ऐसा करना उचित प्रतीत नहीं हो रहा है.
आगे, यथासम्भव ध्यान रखा गया है कि इस आयोजन के सभी प्रतिभागियों की समस्त रचनाएँ प्रस्तुत हो सकें. फिर भी भूलवश किन्हीं प्रतिभागी की कोई रचना संकलित होने से रह गयी हो, वह अवश्य सूचित करे.
सादर
सौरभ पाण्डेय
संचालक - ओबीओ चित्र से काव्य तक छंदोत्सव
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श्री अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव
कामरूप छंद
(1)
झाड़ू साइकिल, फूल पंजा, घड़ी तीर कमान।
हाथी हथौड़ा, देख सूरज, खिला कमल निशान॥
अभिनेता खड़े, नेता खड़े, खड़े नर कुछ नार।
यदि वोट माँगें, नोट देकर, दीजिए दुत्कार॥
(2)
चोला शराफत, का पहन कुछ, आ गये गद्दार।
सपने दिखायें, झूठ बोलें, कलियुगी अवतार॥
जनता दिखा दो, जोश अपना, हम नहीं लाचार।
अब बदल डालो, भ्रष्ट शासन, भूलो न इस बार॥
(3)
दंगल चुनावी, ईश दे दो, जीत का वरदान।
मंत्री बनूँ फिर, देश लूटूँ , करूँ मैं कल्याण॥
तुम पर चढ़ाऊँ, मैं कमाऊँ, धन हजारों लाख।
तुम भी रहो खुश, और बढ़ती, जाय मेरी साख॥
दूसरी प्रस्तुति
कामरूप छंद
(1)
वे दिन चुनावी, थे मज़े के, अब नहीं वो बात।
देंगे किसे अब, गालियों की, विषभरी सौगात॥
चारों दिशायें, शांत है अब, न कोई आवाज़।
हारे खिलाड़ी, रो रहे सब, छोड़ सारे काज॥
(2)
बातें पुरानी, भूल नेता, जब मिलायें हाथ।
पार्टी बड़ी कुछ,, और छोटी, हो गये सब साथ॥
क्या गिरगिटों सा, रंग बदले, मतलबी सब यार।
सत्ता मिली तो, ये स्वयं का, करें बेड़ापार॥
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सौरभ पाण्डेय
चौपई छंद
जन चुन ले तो शासक जान .. भारत में है यही विधान ..
सफल व्यवस्था का यह मंत्र .. जनता का हो शासन-तंत्र ..
लेकिन होता खेल कमाल .. शातिर नेता और बवाल ..
जभी हुआ है आम चुनाव .. चर्चा में बस जोड़-घटाव ..
कतरब्यौंत की गजब मिसाल .. नेता चलें सियासी चाल ..
धर्म-पंथ में बँटते लोग .. जाति-गोत्र का न्यौता-भोग ..
पाँच वर्ष का शासन काल .. दलगत शतरंजी हर चाल ..
षड्यंत्री है पासा-खेल .. चिह्न मगर सारे बेमेल ..
मिला विपद से कभी न त्राण .. किसिम-किसिम के चिह्न प्रमाण ..
चुनाव खत्म तो आह-वाह .. देखो किसकी कैसी राह .. .
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श्री लक्ष्मण प्रसाद लड़ीवाला
चौपई छंद
समझौते का हो आधार, तभी चले साझा सरकार
इक दूजे पर करे न वार, बने आत्म बल ही आधार |
नेता से जनता की आस, भ्रष्टाचारी का हो नास
रोटी कपड़ा और मकान, इस पर दो नेताजी ध्यान |
जनता का पाने विश्वास, सब दल करते रहे प्रयास
जनता के हो सारे काम, यही मांग जनता की आम |
वंशवाद की छोड़े तान, लोक तंत्र की रखना आन ।
माँ वसुधा पर जो कुर्बान, उस नेता की हो पहचान |
जनशक्ति है प्रबल आधार, उसके बिना न बेड़ा पार
जनहित का जो रखता ध्यान, उस नेता के हाथ कमान |
दूसरी प्रस्तुति
चौपई छंद
गाँठ लगाकर लेते जोड़, पर आपस में करते होड़
अन्दर खाने देते चोट, इक दूजे का तोड़े वोट |
सबका जब मिलता है साथ, तभी सुगम होता है पाथ
जनता का जीते विश्वास, उस नेता से करते आस |
हाथ ने किया नहीं कमाल, हाथी हाल हुआ बेहाल
बदले नेताजी ने भेष, झाड़ू अभी लगानी शेष |
साइकिल पर अब हो न दौड़, व्यस्त हुई अब सारी रोड
बिजली होगी अब हर गाँव, अँधियारे में खिले न दाँव|
इक जुट जनता देती साथ, दिखा दिया जनता ने पाथ,
जनता में दिखता उत्साह, नेताजी को मिलती राह |
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श्री अशोक कुमार रक्ताले
कामरूप छंद.
देख चित्र नया, ध्यान आया, यही अब की बार,
भगवान दें अब, ज्ञान जन को, बदल दें सरकार,
कर ही दिया तब, हाँ बदल सब, भ्रष्ट को दे हार,
लाये चुनी नव, एक उत्तम, देश में सरकार ||
हैं दस तरह के, चित्र में ये, भिन्न सभी निशान,
नौ की पराजय, एक पा जय, दे रहा पहचान,
सेवक बनूंगा, साथ दूंगा, दूंगा बस विकास,
हाँ धैर्य रखना, ना बहकना, पूर्ण होगी आस ||
दूसरी प्रस्तुति
चौपई छंद
घोषित जब से हुए चुनाव | आलू प्याज बिके बे भाव ||
मुफ्त मिली पर दारू हाय | मिले मुफ्त तो कौन कमाय ||
चौसर पर के कई निशान | घडी पत्तियाँ तीर कमान ||
हाथी का जब थामा हाथ | सारे डूबे मिलकर साथ ||
हुआ बनारस में हुडदंग | देख अचंभित थी माँ गंग ||
पांसे ने दिखलाया रंग | देख हुए सब नेता दंग ||
नहीं चली नोटों की धाक | हुए करोंड़ों जलकर ख़ाक ||
नोटा ने भी मानी हार | बिना घिसे है बोठी धार ||
दिया फूल को सबने प्यार | किया विराजित अबकी बार ||
फूल कमल ने पहना ताज | सबको जैसे मिला सुराज ||
बोठी = बोथरी.
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डॉ. प्राची सिंह
काम-रूप छंद
सब कर्मरत दल, कर्म करते, जीत हो या हार
चौसर चुनावी, फूँक पासा, फेंकते हर बार
जनतंत्र में जब, जन सजग हो, बाँचते व्यवहार
मतदान बल से, काल गढ़ते, चयन कर सरकार
अनगिन गुटों में, दृष्ट तल पर, हैं विभाजित राज्य
हो भिन्नता पर, जन मनस की, चाहना अविभाज्य
मक्कार शासक, प्रगति नाशक, सर्वथा ही त्याज्य
जिन पर भरोसा, सर्वजन का, वो फलें साम्राज्य
पहले कहा था, लम्पटों को, ना करेंगे माफ़
जनतंत्र नें निज, वोट बल से, कर दिया इन्साफ
अच्छे दिनों के, स्वप्न दल का, उच्चतम है ग्राफ
दुःशासकों का, नाशकों का, सूपड़ा ही साफ़
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श्री गिरिराज भंडारी
काम रूप छंद
बाजी चुनावी , है बिछी अब , देखिये चहुँ ओर
तारीकियों में , हैं दिखाते , ख़्वाब की वो भोर
दावों सजी हैं , मण्डियाँ ये , खूब होता शोर
थोड़ा सँभलना , फिर न आये , देश का अब चोर
वो बस सुना के , बोल मीठे , मांगते हैं वोट
लेकिन छिपाये , घूमते हैं , हर तरह के खोट
वो हाथ जोड़ें, पैर पकड़ें , बाँट भी दें नोट
नेता अगर वो , जीत जायें , लूट लें लंगोट
वो मजहबों की , आड़ लेके , बाटते हैं देश
वो नफरतों के , बीज बोने , बाँटते संदेश
काश जनता भी , अब समझ ले, तो बचे अब देश
वरना हमेशा , हम मरेंगे , वो करेंगे ऐश
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श्री सचिन देव
चौपई छंद
नेताओं की फितरत देख । मन के काले बातें नेक ॥
राजनीति के लाभ अनेक । राज करें अंगूठा टेक ॥
मरयादा की लांघी रेख । होली खेलें कीचड फेंक ॥
चिंगारी भडकाकर एक । लेते अपनी रोटी सेंक ॥
मजहब की खीचें दीवार । उस पर खड़ी करें सरकार
जन करती इनका सतकार । ये करते जन का व्यापार ॥
हाथ लगे पतझड हर बार । शायद फूल खिलें इस बार ॥
छले गये हम बारमबार । मगर आस है अबकी बार ॥
ऐसी बहे विकासी धार । जन जन का होवे उदधार ॥
माने जो सारा संसार । होय देश की जय जयकार ॥
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श्रीमती सरिता भाटिया
चौपई छंद
लोकतंत्र का आया पर्व | करते सारे इस पर गर्व ||
आये नेता वादों साथ | छोड़ेंगे ना अब ये हाथ ||
राजनीति का चौसर खेल | सब फेंके पासा बेमेल ||
नेता सारे बोलें झूठ | पाँच बरस तक जायें रूठ ||
फूल पत्र हुए बेजान | संग दराती तीर कमान ||
उस नेता को सौंप कमान | रखता जो जनता का ध्यान ||
उगता सूर्य हुआ है अस्त | हाथी घड़ी साइकल पस्त ||
छूटे पीछे चारों हस्त | कमल खिले हैं छः छः मस्त ||
भारत माँ का एक नरेन्द्र | राजनीति का बना नगेन्द्र ||
मिला राजपद ज्यों हो इंद्र | चमका बन पूनम का चंद्र ||
दूसरी प्रस्तुति
कामरूप छंद
आहत हुआ ज्यों , देश अपने , का है स्वाभिमान
टूटे हैं ख़्वाब , संग आँसूं , बह गए अरमान
भ्रष्टतंत्र अगर, जो ख़त्म हो , देश का हो मान
अब है कामना , देश अपना ,विश्व की हो शान
लोकतंत्र पर्व ,आज जनता ,की बना आवाज
वोटर बनो तुम ,आज सशक्त, करो शुभ आगाज
नेता जो भ्रष्ट ,आज खोलो ,उन सभी के राज
चैन अमन ख़ुशी , देश में हो ,तभी मिले सुराज
दुष्ट भ्रष्ट सभी ,जेल भेजो ,बाँटते जो नोट
एक विकास के, नाम से जब, आज माँगा वोट
पूर्ण विकास कर ,ला सुशासन ,देना इक सौगात
कमल नया खिला ,ही रहे अब ,करना नेक बात
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श्री सत्यनारायण सिंह
छंद 'कामरूप'
शठ खेल चौसर गाँठ अवसर, चले नेता दाँव।
यदि जीत जायें गुल खिलायें, दिखें फिर ना गाँव।।
रवि चन्द्र तारे साक्ष सारे, सुरा सत्ता रंज।
है छल कपट की कार्यशाला, खेल सुन शतरंज।१।
साइकिल हाँथी हाँथ साथी, कहीं झाड़ू गान।
पत्ते रिझाते फूल भाते घडी रक्खे भान।।
मन कंज भाता सूर्य उगता, चढा तीर कमान।
हर चिन्ह दलके भिन्न झलके, किन्तु चाल समान।२।
देश खातिर सुख चैन अपना, जो करे बलिदान।
कुछ झांक उनमें आंक मनमें, फिर करें मतदान।।
मतदान करना फर्ज अपना, सबल हो सरकार।
जन मन निखारें बन हजारे, रोध हो दमदार।३।
दूसरी प्रस्तुति
चौपई छंद
छोड़े जनता का जो हाथ, उसका जनता छोड़े साथ।
भ्रष्ट प्रशासन हुआ अनाथ, लोकतंत्र फिर हुआ सनाथ।१।
पहले हाँथी था मद मस्त, लेकिन आज दिखे है पस्त।
सैकिल पंचर राहें ध्वस्त, मंसूबों का सूरज अस्त।२।
होते चाल घडी की मंद, लोगों ने ना किया पसंद।
सही सोच औ सही पसंद, लोकतंत्र को करें बुलंद।३।
जन मानस की यही पुकार, परिवर्तन की बहे बयार।
सबसे बस इतनी दरकार, सुथरी छबि की हो सरकार।४।
यह जनता ने दी सौगात, इतनी तुम भूलो ना बात।
अच्छे दिन की यह शुरुवात, खिले कमल दल बीती रात।५।
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श्री अरुण कुमार निगम
चौपई छन्द....
हम केवल शतरंजी गोट | वे खेलें हम खायें चोट ||
हमको कीचड़ उनको फूल | उनको चन्दन हमें बबूल ||
वे हाथी-से चलते मस्त | हम फसलों-से होते ध्वस्त ||
वे दिखलाते हमें निशान | बनें निशाना हम नादान ||
गले उन्हीं के पड़ते हार | ताली अपनी है हर बार ||
हमको सिर्फ समझते भीड़ | ना दाना ना हमको नीड़ ||
शीश महल में रहते साथ | सत्ता हरदम रखते हाथ ||
फेंक फाँसते हैं भ्रम-जाल | समझ नहीं पाते हम चाल ||
उनके मनमें विष का वास | हम करते केवल विश्वास ||
कब होगा सबके सिर ताज | कब आयेगा सुखद सुराज ||
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श्री नीरज कुमार नीर
चौपई छंद :
समाप्त हुआ चुनावी शोर, जागी जनता आई भोर.
देखो आया नया विहान, भाग्य बदलने का अभियान.
हाथ, हाथी, साइकिल, तीर, माथा पकड़ बहावै नीर.
सब जन का अब हो सम्मान, हिन्दू मुस्लिम एक समान.
बहू बेटी की बचे लाज, बने सुरक्षित सरस समाज.
एक धरा एक आसमान, तिलक टोपी का एक मान.
सच जीता असत्य की हार, लो आई अच्छी सरकार.
तुष्टिकरण रहे नहीं शेष, सब सम कोई नहीं विशेष.
नव नायक का शीर्ष उत्थान, शक्ति की ओर नव प्रयाण.
स्वधर्म स्वदेश का अभिमान, माँ भारती तुम्हें प्रणाम.
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श्रीमती कल्पना रामानी
चौपई छंद
नेता, कर कुछ सोच विचार, क्योंकर मिली करारी हार।
वरे अनगिने चिह्न चुनाव, फिर भी मिला न कोई भाव।
दल बदले हर दिन हर शाम, मगर न कुर्सी मिली इनाम।
बाँटे तो बहुतेरे नोट, लेकिन पाए कमतर वोट।
जन को करता रहा हलाल, जनता जागी हुआ कमाल।
जिन कर्मों से लिखी किताब, पूछेंगे अब वही हिसाब।
सींचा था धोखे का पेड़, डाल-डाल ने दिया खदेड़।
मात मिली है तुझको खूब, चुल्लू भर जल लेकर डूब।
सच्चाई ने पहना ताज, खत्म हो चुका रावण राज।
विजित हुआ है ऐसा लाल, दमक रहा भारत का भाल।
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समस्त रचनाओं का संकलन की महत्ता मेरे लिये और अधिक रहा, जब मैं अपने निजि कारण से इस आयोजन का हिस्सा न हो सका किन्तु सभी रचनाओं को आज एक साथ पढ़कर मुझे इस आयोजन से अपनापन महसूस हुआ सभी रचनाकार साथियों को उनके उत्तम रचना के लिये तथा आदरणीय मंच संचालक को इस संकलन के लिये कोटिश बधाई ।
यह अवश्य है कि आपकी प्रतीक्षा थी, आदरणीय रमेश भाईजी.
सादर
छन्दोत्सव अंक-३७ के माध्यम से मुझ जैसी बहुत से सदस्यों को नए छंद सीखने के अवसर प्राप्त हुआ | इस द्रष्टि से इस महोत्सव
का बहुत महत्त्व समझ में आ रहा है | नए छंद के नियम की जानकारी कराने के बाद भी सहभागिता में कमी आज नहीं तो कल दूर
हो जायेगी, पर सीखने सिखाने के महत्व को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता | रचनाको के सकंलन के श्रम साध्य कार्य द्वारा सभी
सदस्यों को लाभान्वित करने के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय सौरभ भाई जी
अपने मेरे कहे के मर्म को समझा, आदरणीय लक्ष्मण प्रसादजी, कहना सार्थक हुआ.
सादर
कामरूप छंद और चौपई छंद में बढ़िया रचनाएँ
आवश्यक सूचना:-
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