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धन्यवाद आ० ओमप्रकाश जी
बहुत ही बढ़िया लघुकथा कही है आदरणीय प्रतिभा जी, "जिसके चरित्र की नींव में ईमानदारी और सच्चाई की पुख्ता ईंटें लगी होती हैं वो निर्भय होता है" और "इसकी परवरिश में कहाँ कमी रह गई" दोनों पंक्तियाँ झकझोर देती हैं| बधाई आपको इस जबरदस्त रचना के लिये|
कथा पे सार्थक टिपण्णी के लिए आपका आभार आ० चंद्रेश जी
आ० नीता जी , उत्साह वर्धन के लिए आपका आभार
वाह्ह बहुत ही सुन्दर सार्थक सन्देश देने में कामयाब लघु कथा है दिल से बधाई प्रतिभा जी
आ० राजेश कुमारी जी , आपका हार्दिक आभार कथा की सराहना के लिए
बहुत ही सुन्दर भाव लिए आप की कथा आ प्रतिभा जी ।
आदरणीय प्रतिभा जी, हार्दिक बधाई!अति उत्तम लघुकथा हेतु!
कथा की सराहना के लिए आपका ह्रदय से आभार आ० तेजवीर सिंह जी
आपको कथा पसंद आयी, आपका तहे दिल से आभार आ०ओमप्रकाश जी
बहुत बढ़िया लघुकथा कही है प्रतिभा पाण्डेय जी। रचना में निहित सन्देश भी मन को छूने वाला हुआ है, बधाई स्वीकारें। पिता जी की आँखों का इस रचना में दो बार ज़िक्र आया है, पहली बार बेटे को आगे बढ़ने की सीख देते हुए और दूसरी बार बेटे की हिम्मत देख कर आश्वस्त होते हुए। तो क्यों न लघुकथा की अंतिम पंक्ति में पिता की आँखें ही पूछें कि नायक ने अपने बेटे की परवरिश सही ढंग से क्यों नहीं की ?
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