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शहरों में तो यह बात कहने की नौबत नहीं आती, लेकिन आज भी भारत के गाँवों में आवश्यकता है| कई सारे चल रहे सरकारी-गैर सरकारी जागरूकता कार्यक्रमों के कारण अब गाँवों की महिलायें भी अवेयर होकर अपने स्वास्थ्य और अन्य जीवनोपयोगी साधनों की उपयोगिता समझ कर उनकी मांग कर रही हैं और पुरुषों ने भी साथ देना शुरू कर दिया है| इसी सन्देश को दर्शाती इस सुंदर रचना हेतु बधाई स्वीकार करें आदरणीय कांता जी|
वाह्ह्ह वाह्ह मजा आ गया लघु कथा पढ़कर आ० कांता जी अपना सन्देश और प्रभाव छोड़ने में सफल इस प्रस्तुति के लिए दिल से बधाई लीजिये |आज ऐसे बदलाव की इतनी जागरूकता की आवश्यकता है | भावनाओं में बहकर या झूठ पर कोई बुनियाद मजबूत नहीं बनती पहले दो टूक साफ़ बात बस ..
अच्छी लघुकथा है आ० कांता रॉय जी, बधाई स्वीकारें। कथानक एकदम लीक से हटकर है, नारी का यह आत्मविश्वासपूर्ण रूप बहुत अच्छा सन्देश दे गया गया, जिस हेतु एक्स्ट्रा वाह वाह। कुछ बातों पर आपका ध्यान चाहूँगा :
१. //उसे यकीन ही नहीं हो रहा था कि निरमलिया सच में मान जायेगी ।// निरमलिया अभी तक मानी कहाँ है?
२. गर्भनिरोधक की जगह, क्या केवल एक बच्चा पैदा करने का वादा लेना, और वह भी शादी के तीन साल बाद कैसा रहता?
३. आपकी रचना में ५ जगह अनावश्यक डॉट्स हैं, दो-तीन जगह बर्तनी की त्रुटियाँ भी हैं, तो आपके कितने अंक काटे जाएँ ?
आदरणीय कांता जी, बहुत सुंदर लघुकथा,हार्दिक बधाई!आपने परिवार में व्याप्त कई समस्याओं का समाधान कर दिया अपनी कथा के माध्यम से ! पुनः बधाई!
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