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बेटे की अच्छी परवरिश के लिए हर साधन जुटाने के बाद जब सफलता मिलती है, तो उसका आनंद कुछ और ही होता है। सुन्दर कथा आ. नीता कसार जी।
अपनी महनत के पसीने से सींचे हुए पौधों को पनपते हुए देख इंसान को सबसे बड़ी सुखानुभूति होती है ! आदरणीय नीता कसार जी आपकी इस लघु कथा पर हार्दिक बधाई आपको !
आदरणीया नीता कसार जी इस सकारात्मक और प्रेरक लघुकथा की प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई.
जो पंक्ति मुझे सबसे ज्यादा भा गई वो है ' अरमानों की गहरी खुदाई ' बच्चों को पाल पोस कर बडा करने में माता पिता अरमान शब्द का 'अ ' भी भूल जाते हैं सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई नीता कसार जी
बहुत अच्छी लघुकथा हुई है आदरणीया नीता जी, और लघुकथा की ये पंक्ति "उन्होंने बड़ी प्रतिबद्धता के साथ बेटे के व अपने अरमानों की गहरी खुदाई कर, सुसंस्कारों का लोहे का ढाँचा बनाया, एकाग्रता का पानी, सांम्जस्य की ईंटें, तल्लीनता की सीमेंट, पर्याप्त सुविधाओं की रेत , उस पर मोहन की मेहनत की गिट्टी का परिणाम आज सबके सामने था ।" विशेष प्रभाव छोड़ती है। दिली दाद कुबूल कीजिए।
बढ़िया रचना प्रदत्त विषय पर आदरणीया नीता कसार जी , अगर बुनियाद मज़बूत डाली जाये तो ईमारत तो भव्य बनेगी ही | बहुत बहुत बधाई.
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