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“ मेरे शर्गिर्द ! मेरे साथ रहोगे तो सब राजनीति सीख जाओगे. ……वाह!!!! आज के राजनीति परिवेश पर ये करारा तमाचा हुआ आपके इस सशक्त लघुकथा के माध्यम से । ढेरों बधाई स्वीकार करें आदरणीय ओमप्रकाश जी ।
बढ़िया लघुकथा हुई है आ० ओमप्रकाश क्षत्रिय जी, हार्दिक बधाई स्वीकारें I
आदरणीय ओमप्रकाश क्षत्रिय जी, यह लघुकथा तो बिल्कुल भी नहीं है किसी आपसी मुलाकात के इंटरव्यू का हिस्सा नजर आ रहा है। हाँ अगर थोड़ी मेहनत की जाए तो इसमें जितनी भी परिभाषाएँ गिनाई गई हैं उन पर अलग-अलग कई लघुकथाएं जरूर तैयार की जा सकती हैं।
आ विनोद कुमार जी आप की बात सही है कि हरेक पर अलग-अलग लघुकथाएं लिखी जा सकती है. इस सुझाव और अपनी प्रतिक्रिया के लिए आप का तहेदिल से शुक्रिया.
आदरणीय विनोद कुमार जी आप की टिपण्णी बहुत कुछ सोचने को विवश करती है. आप का नजरिया बड़ा व्यापक है. एक लघुकथा में कई लघुकथा देख लेते है. शायद यही आप की विशेषज्ञता का प्रमाण है. इस नजरिये से मुझे अवगत कराने के लिए आप का कोटि-कोटि धन्यवाद. ऐसी ही बेबाक टिपण्णीयां देते रहे. हमारा हौसला बुलंद होगा. गलतियाँ निकलेगी. पुनह शुक्रिया आप का .
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