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वर्ण व्यवस्था पर करारा प्रहार करती बहुत ही अच्छी लघुकथा आकार ले सकी है, बहुत बहुत बधाई आदरणीय गुरुदेव योगराज जी.
दिल से शुक्रिया भाई गणेश बागी जी
हार्दिक आभार आ० जानकी वाही जी I
अन्नपूर्णा
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सुबह से ही घर के नौकरों को निर्देश दे दे कर सब कुछ व्यवस्थित करने में जुटी थी मिसेज़ रॉय। एकलौती बेटी को लड़के वाले देखने आ रहे थे। पूरी तरह संतुष्ट होने के बाद रसोईघर की ओर बढ़ गईं, यही वह स्थान था जो श्रीमती रॉय को कतई पसंद न था, परन्तु आज अति विशिष्ठ अतिथि आ रहे थे तो सारी व्यवस्थाएं चाक-चौबंद कर देना चाहती थी I उनकी बेटी सुन्दर तो थी, इसी साल कंप्यूटर इन्जीनियर भी बन गई थी I तभी तो इतने बड़े घर से रिश्ता आ रहा था । तभी मेहमानों के आने की आहट हुई, लड़के के साथ उसके माता-पिता, चाचा-चाची, बहन-बहनोई और इन सबके अलावा दादी जो अपने पोते की भावी वधु देखने विशेष तौर पर आईं थी।
हलके फ़िरोजी रंग की शिफॉन की साड़ी में लिपटी लड़की ने कक्ष में प्रवेश किया I सबकी नज़रें उस पर ही केन्द्रित हो गई थीं। जिसे देखकर श्रीमती रॉय के चेहरे पर एक विजयी मुस्कान उभर आई। बेटी को सबसे मिलवाया, और उसके एक एक गुण की विवेचना करनें लग गईं I
“मेरी अन्नू कम्पूटर इंजीनियर है, वो भी गोल्ड मैडलिस्ट I” श्रीमती रॉय ने गर्व से बताया I
"ये जो आप पेंटिंग्स देख रहीं हैं न? मेरी अन्नू ने दसवीं कक्षा से ही बनानी शुरू कर दी थीं।” लड़के की माँ का ध्यान पेंटिंग्स पर देख श्रीमती रॉय ने कहा. “दो बार प्रदर्शनी भी लग चुकी है अन्नू की I”
“अरे ये अन्नू क्या नाम हुआ?” दादी ने पूछ ही लिया.
“माफ कीजियेगा, नाम तो अन्नपूर्णा है इसका बस प्यार से अन्नू बुलाती हूँ मैं I” सकपकाते हुए श्रीमती रॉय ने कहा।
“अन्नपूर्णा ?? बहुत ही सुन्दर नाम है I अच्छा ये तो बताओ बेटी, खाने में क्या पसंद है ?”
“सब कुछ खाती है मेरी बेटी I" उत्तर श्रीमती रॉय ने दिया
जवाब सुनकर दादी हँस पड़ी,
“मैं खाने की नहीं, पकाने के बारे में पूछ रहीं हूँ I खाना तो बनाना आता हैं न ? देखो हमारे मुन्ना को घर के खाने का बहुत शौक़ है.”
“दादी माँ! खाना बनाना तो नहीं सिखाया मैंने.” श्रीमती रॉय का चेहरा पीला पड़ गया था,
“अरे खाना बनाना नहीं सिखाया? मगर क्यों?" दादी के स्वर में आश्चर्य था I
"नहीं I क्योंकि इतना पढ़ लिखकर भी ..............?"
बात को बीच में ही काटकर दादी माँ ने मिसेज़ रॉय के कंधे पर हाथ रखते हुए कहा: "वो सब ठीक है, लेकिन अन्नपूर्णा की परिभाषा तो मत बदलो बेटी।”
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मौलिक एवं अप्रकाशित
आदरणीया सीमा जी प्रदत्त विषय को सार्थक करती बहुत बढ़िया लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई. रचना पर पुनः उपस्थित होता हूँ. सादर
धन्यवाद आ० मिथिलेश जी कथा ने आपका ध्यान खींचा..ये आप में सफलता हो गई..
आदरणीय सीमा सिंह जी, आपने बहुत ही शानदार लघुकथा कही है. नाम अन्नपूर्णा और काम? आपने बहुत ही सार्थक विषय पर कथानक उठाया है और तथाकथित 'मॉडर्न' खयालात पर तीखा प्रहार हुआ है. इस विषय को लघुकथा में आपने जिस सधे ढंग से शाब्दिक किया है वह चकित करता है. आपको इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई.
यह इस आयोजन की बेहतरीन रचनायों में से एक होगी, मुझे विश्वास है I रचना पर दोबारा आऊँगा कल I
आभार सर..आपकी भविष्यवाणी ने मुझे और मेरी कथा दोनों को धन्य कर दिया..आपकी विस्तृत टिप्पणी की प्रतीक्षा है.
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