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आप जैसे लघुकथा मर्मग्य की सराहना बेहद मुग्धकारी है डॉ रवि प्रभाकर जी, रचना को समय और मान देने हेतु हार्दिक आभार .
आदरणीय रवि जी, आपकी समीक्षा कई बार पढ़ चुका हूँ मुग्ध हूँ इस एक उत्कृष्ट रचना पर शानदार समीक्षा पढ़कर. आभार आपका
हार्दिक आभार आ० नीता कसार जी .
एक और अध्याय ..सीखने के लिए ..अति उत्तम ! नमन सर जी
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, लगता है लघुकथा में वर्ण व्यवस्था को लेकर व्यथित मन की भावनाएँ चित्रित करने की कोशिश की गई है। यह जमीनी हकीकत से कोसों दूर और काल्पनिक ज्यादा प्रतीत हो रही है हकीकत में कहीं ऐसा कुछ बदलाव नहीं है जिससे वर्ण व्यवस्था की धज्जियाँ उड़ती नजर आ सके।
आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी। कृपया अपना आशय स्पष्ट करेंगी। आप कहना क्या चाहती हैं इस टिप्पणी के माध्यम से?
आदरणीया अर्चना त्रिपाठी जी, आप लघुकथा के हटकर टिप्पणी कर रही हैं जिनका ना तो लघुकथा से कोई लेना देना है और ना ही ऐसी कोई चर्चा हो रही है। यह आपकी सोच ठीक नहीं है कृपया अपने आपको चैक करें।
मैंने वर्ण व्यवस्था की धज्जियाँ कहाँ उडाई हैं ? लघुकथा एक बार फिर से ध्यानपूर्वक पढ़ें है विनोद खनगवाल जी,
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी, हा हा हा!!! वर्ण व्यवस्था की धज्जियाँ आपने नहीं उड़ाई हैं। वो यह तो कथा के पंडित जी कह रहे थे।
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