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प्रदत्त विषय को सार्थक करती अन्नपूर्णा नाम को परिभाषित करती सुन्दर सशक्त लघु कथा हेतु दिल से बधाई सीमा जी |
आदरणीया सीमा जी, लघुकतः के रूप में अच्छी प्रस्तुति हुई है पर एक बात गले से नहीं उतर रही कि आधुनिक और पढी लिखी सुशिक्षित बहू दादी की आकांक्षा पर भी पूर्ण रूपेण सही उतरे. इसका मतलब यह हुआ कि महिलाओं में सभी गुण के अलावा खाना पकाने का गुण भी होना ही चाहिए ...
आप सब की प्रतिक्रिया से एक बात स्पष्ट हो ही गई है ... कुछ भी कहे ये मुद्दा है तो सम्वेदनशील ... एक कथाकार के रूप में मैंने अपना कर्तव्य पूरा किया कर दिया.. साहित्यकार का फ़र्ज़ है कि वो समाज की उन विसंगतियों और मुद्दों की ओर ध्यान आकर्षित करें जिन पर लोग का ध्यान आसानी से नही पहुँच पा रहा ...
कथा पर आने का धन्यवाद .. नेहा ..ये गहन विषय है हम फिर कभी बैठ कर चर्चा करेंगे इस पर... और रही बात कथा में अपमान की ... तो पुनः पढ़ो आप कथा को ... दादी ने नाम को सार्थक करने का माँ को कहा ना कि लड़की का अपमान किया है.. हाँ आपके इस विचार से मैं भी सहमत हूँ कि काम दोनों को ही आना चाहिए...
आभार आ० वीर मेहता जी ...
सुंदर कहानी ... अन्नपूर्णा भले देश की प्रधानमंत्री बन जाये उसे अपना कर्तव्य तो निभाना आना ही चाहिए .... वैसे स्त्री विमर्श वाले यहाँ सवाल खड़ी कर सकते है कि क्या दादी के पोते को खाना बनाना आता है .... क्या खाना बनाना सिर्फ लड़कियों के ही हिस्से की जिम्मेवारी है ? ऐसा मैं नहीं पूछ रहा हूँ ... क्योंकि सैद्धांतिक रूप से मेरी कथ्य से पूर्ण सहमति है ....
आदरणीय विजय शंकरजी, आपका इस लघुकथा के सापेक्ष अपनी बातें विन्दुवत कहना रोचक लगा.
मैं आपके विन्दुओं में कई ऐसे पहलू देख रहा हूँ जो यह साबित कर रहा है मानों आप भारतीय परिवेश की सच्चाई से तनिक अलग हो गये हैं. मैं आपके उन्हीं विन्दुओं के सापेक्ष अपनी बातें करूँगा --
2. मैंने ऐसा कहीं नहीं देखा कि खाना बनाने को दोयम दर्जे का काम माना जाता हो या कोई स्त्री यह विचार प्रकट करे कि मैंने इतना पढ़ लिया तो अब मैं खाना क्यों और कैसे बनाऊं।
यही तो प्रश्न है आदरणीय. इसका अर्थ है कि आपने पाठकों की टिप्पणियों पर कायदे से ध्यान नहीं दिया है. सारा बवाल इसी बात को लेकर मचा है कि ’पढ़ी-लिखी’ लड़की खाना क्यों बनाये ?
3 . क्या हमने भारत या कहीं भी पुरुषों को यह कहते देखा / सुना है कि अब हम इतना पढ़ गए हैं तो अमुक काम कैसे करें, यह तो हमारी पढ़ाई का अपमान होगा।
अवश्य कहते हैं आदरणीय. भारत के ग्रामीण क्षेत्र में बेरोज़ग़ारी के इतने ऊँचे प्रतिशत का मुख्य कारण यही या ऐसी ही सोच है, कि इतना पढ़-लिख कर मैं अमुक काम कैसे कर सकता हूँ ! यहाँ कई क्षेत्रों में काम छोड़िये कृषि तक जातियों और प्राप्त शिक्षा पर निर्भर करती है. सवर्णों का एक बड़ा कृषक वर्ग सब्जियाँ नहीं उगाता. ऐसा करना उसकी जातिगत हेठी हुआ करती है.
4 . घर के कामों के लिए डोमेस्टिक हेल्प सब जगह , यू एस , कोस्टा रीका में , मिल जाती है , सभी लोग आवश्यकता / सुविधा अनुसार इंगेज भी करते हैं पर शत - प्रतिशत उन पर आश्रित कोई नहीं होता है , अत : घर के सारे काम , खाना बनाना हर घर में होता है , खुशी खुशी होता है , सब लोग मिल कर करते हैं , माहिलाएं भी।
भारत के मध्यमवर्गीय परिवारों का रोना ही यही है कि स्त्रियाँ घरेलू या गृहस्थी के कार्यों के नाम पर मरती-खपते हुई जीती हैं. इसी कारण तो यह मुद्दा आयोजन में इतना संवेदनशील बन कर उभरा है !
5 . स्त्री प्रगति में यह पक्ष / रूप कहीं दिखाई नहीं पड़ता कि चूँकि उसने इतना पढ़ लिया तो अब खाना बनाना उसके स्तर से नीचे की बात है या जो स्त्रियां खाना बनाना जानती हैं / बनाती हैं उनका स्तर अपेक्षाकृत निम्न हैं।
यह प्रश्न संख्या दो ही नये कलेवर में फिर से सामने आया है.
सादर
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