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बहुत बहुत शुक्रिया आ अर्चना त्रिपाठी जी
बहुत बहुत शुक्रिया आ मदनलाल श्रीमाली जी
हम्म !!! लिफ़ाफ़े का वजन बढाने के लिए थोडा कड़ा तो होना ही था इंस्पेक्टर साहिब को | बारगेनिंग तो उनके व्यवसाय में भी होती होगी |बेहतरीन कटाक्ष से सजी एक सुंदर रचना के लिए बधाई प्रेषित कर रहा हूँ आदरणीय विनय जी | सादर
बहुत बहुत शुक्रिया आ सुधीर द्विवेदी जी | व्यवसाय तो दोनों का ही है , येन केन प्रकारेण धन कमाना |
वाह वाह, बहुत सुन्दर लघुकथा हुई है भाई विनय कुमार सिंह जी I आज कल बिलकुल ऐसे ही होता है, हकीकत के आस पास विचरण करती इस लघुकथा हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें !
हार्दिक बधाई आदरणीय विनय कुमार जी!जिस दिन कागज ठीक रखेंगे तो फ़िर तुम्हें कौन पूछेगा, इंस्पैक्टर साहब!नसीहत तो सब देते हैं मगर पहल कोई नहीं करता!आज की सरकारी मशीनरी की लूट खसोट को उजागर करती बढिया लघुकथा!
बहुत बहुत शुक्रिया आ तेज वीर सिंह जी , न वो सुधरेंगे न ये
बहुत बहुत शुक्रिया आ योगराज प्रभाकर सर , बिलकुल जमीनी हक़ीक़त है ये.
हम लोगों की इस बीमारी का डंका तो विदेशों में भी बज रहा है जोर शोर से ,इस बीमारी का इलाज भी हमें हीढूँढना है ,प्रदत्त विषय को सार्थक करती रचना के लिए हार्दिक बधाई स्वीकारें आदरणीय विनय कुमार जी
बहुत बहुत शुक्रिया आ प्रतिभा पाण्डेय जी
ऐसे कितने ही लिफाफे जेब में पड़े पड़े ज़ुबानों को ताले लगा देते हैं, रिश्वत के व्यवसाय को परिभाषित करती इस सधी हुई रचना हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें आदरणीय विनय कुमार सिंह जी सर|
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