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बहुत बढ़िया बात कही आदरणीय मिथिलेश भाई जी, स्वार्थ में व्यक्ति वास्तव में "गधे को भी बाप" बनाने से गुरेज नहीं करता | इस रचना के सृजन हेतु हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
जातिवाद व सामान्य जाति के दर्द को कुशलता से उभारती सुन्दर कथा, बधाई आ. मिथिलेश जी
व्यवसाय--
" इतना ज्यादा टर्नओवर है लेकिन मुनाफा तो बिलकुल भी नहीं होता आपको , कैसे चलाते हैं ये व्यवसाय आप "| कुटिल मुस्कराहट चेहरे पर बिखेरते हुए टैक्स इंस्पेक्टर ने कहा |
" आपको तो पता ही है कितना मुश्किल हो गया है व्यवसाय करना | लेबर , ट्रांसपोर्ट , बिजली , वेतन इत्यादि के बाद बचता ही कितना है , फिर ऊपर से टैक्स की दर भी कितना ज्यादा है ", जवाबी मुस्कराहट देते हुए उसने कहा |
" ठीक है , फिर अपने रजिस्टर इत्यादि दिखा दीजिये हमें "|
" पिछले साहब ने इतने लिए थे ", एक चिट पर कुछ लिख कर दिखाते हुए उसने कहा |
" आप को पता है न कि हम आपको रिश्वत देने के जुर्म में गिरफ्तार करवा सकते हैं | रजिस्टर मंगवाईए अपने ", इंस्पेक्टर की आवाज़ थोड़ी कड़क हो गयी |
" ठीक है , इस बार बढ़ा कर इतना कर देते हैं | चलिए थोड़ा नाश्ता हो जाए ", कनपटी पर चू आये पसीने को पोंछते हुए उन्होंने कहा |
" हम लोग भी समझते हैं , कितना मुश्किल है ईमानदारी से व्यवसाय करना | लेकिन अपने पेपर्स ठीक रखा कीजिये ", इंस्पेक्टर ने प्रत्युत्तर में उनको समझाया और लिफ़ाफ़ा जेब में रख कर निकल गया |
मौलिक एवम अप्रकाशित
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