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हा हा हा
// "ओह्ह , तो वो शतरंज की एक और चाल चल चुके है । उन्होंने मुझे चैलेंज किया था कि या तो उनकी बात मान जाऊं वर्ना वो मेरी शादी अपने लँगड़े साले से करवा देगें सिर्फ नाम के लिए , काम वो अपना सिद्ध करेगे ।"
"यकीन नही कर पा रही हूँ दीदी करण जी इतना नीचे गिर सकते है । "// --- लघुकथा तो बस इतनी ही पंक्ति में अपना पूरा सार समेटे हुए है।
" कामान्ध इंसान " के गिरने का कोई स्तर नहीं होता है।
स्त्री -जीवन और उसके आस-पास ऐसे चेहरे , डरना नहीं लड़ना जरूरी है।
सार्थक सन्देश देती हुई एक समर्थ लघुकथा। बधाई स्वीकार करें आदरणीया सीमा जी।
इस सार्थक प्रयास के लिए बहुत बधाई आदरणीय नीता जी
आदरणीया नीताजी, संवाद शैली में प्रस्तुत हुई यह लघुकथा अत्यंत सहज ढंग से आगे बढ़ती है. सहज प्रवहमान इस प्रस्तुति केलिए हार्दिक बधाई, आदरणीया. यह अवश्य है कि संवाद शैली के कारण इसका प्रस्तुतीकरण बड़ा दिख रहा है. अतः, कथ्य को थोड़ा और कसा हुआ होना था.
सादर
आदरणीया रश्मि जी विषय अनुरूप बढ़िया लघुकथा हुई है. इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. लघुकथा पर पुनः आता हूँ. सादर
आदरणीय रश्मि जी, आपने प्रदत्त विषय के अनुरूप बहुत बढ़िया कथानक बुना है और बहुत ही सधे ढंग से उसे शाब्दिक किया है. कथ्य का मर्म अभिव्यक्त करने में लघुकथा सफल है. वाकई बिसात बिछाने से पहले अपनी स्थिति भी देख लेनी चाहिए नहीं तो ऐसे ही मात खानी पढ़ती है. इस सशक्त प्रस्तुति पर आपको बहुत बहुत बधाई
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