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आदरणीय राजेश कुमारी जी हमेशा की तरह इस उत्कृष्ट लघुकथा के लिए अनेको बधाइयाँ आपको
आदरणीया राजेश कुमारीजी, यह प्रस्तुति अपने प्रतीकों के कारण अभिनव बन पड़ी है. इस हेतु दिल की गहराइयों से बधाइयाँ ! किन्तु इसका विन्यास तनिक और संयमित होता. दूसरे यह लघुकथा के बहुत निकट अवश्य है किन्तु पूरी तरह लघुकथा के दायरे में नहीं है. ऐसा मैं इसकी कथ्यात्मक लम्बाई के कारण नहीं कह रहा यह आप भी समझ रही होंगीं.
बहरहाल आपकी कोशिशों केलिए सादर धन्यवाद
आदरणीय सुनील जी प्रदत्त विषय अनुरूप इस प्रस्तुति पर बहुत बहुत बधाई. लघुकथा पर पुनः आता हूँ. सादर
आदरणीय सुनील जी प्रदत्त विषय शतरंज की काली और सफ़ेद मुहरों को प्रतीक बनाकर आपने बहुत बढ़िया कथानक बुना है और उसे उतने ही सधे ढंग से शाब्दिक भी कर दिया. सन्देश देती इस बेहतरीन लघुकथा हेतु बहुत बहुत बधाई
आदरणीय सुनील जी, मेरे कहे को मान देने के लिए हार्दिक आभार आपका
आपकी प्रस्तुति की यही विशेषता है कि पाठक उसकी अपने अनुसार व्याख्या हेतु स्वतंत्र है. ये एक उत्कृष्ट रचना की विशेषता होती है सादर
वाह ! अति-आत्मविश्वास व्यक्ति को यूं ही ले डूबता है .मोहरों को प्रतीक बना सुंदर रचना .
कथानक बहुत चुस्त - दुरुस्त है आदरणीय सुनील वर्मा जी, साथ ही प्रतीकों के माध्यम से जो सन्देश आप देना चाह रहे हैं वो भी स्पष्ट है| हार्दिक बधाई स्वीकार करें|
आदरणीय सुनील वर्मा जी शतरंज के माध्यम से आप ने बहुत ही सुंदर बात रखी है. बधाई आप को
खुशफ़हमी वाक़ई कहीं का नहीं छोड़ा करती, यही सन्देश आपकी इस लघुकथा से उभर कर आ रहा है. बहुत खूब भाई सुनील वर्मा जी, हार्दिक बधाई स्वीकार करें.
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