For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

कागज़ का गाँव ( लघुकथा )

 जीप में बैठते ही मन प्रसन्नता से भर रहा था। देश में वर्षों बाद वापसी , बार -बार हाथों में पकडे पेपर को पढ़ रही थी , पढ़ क्या रही थी , बार -बार निहार रही थी। सरकार ने पिछले दस साल से इस प्रोजेक्ट पर काम करके रामपुरा जैसी बंज़र भूमि को हरा -भरा बना दिया है।गाँव की फोटो कितनी सुन्दर है , मन आल्हादित हो रहा था। उसका गाँव मॉडल गाँव के तौर पर विदेशों में कौतुहल का विषय जो है ! बस अब कुछ देर में गाँव पहुँचने ही वाली थी। दशकों पहले सुखा और अकाल ने उसके पिता समेत गाँव वालो को विवश कर दिया था गावं छोड़ने के लिए।

"अरे , ये कहाँ , चक्कर पर चक्कर लगा रहे है आप ,गाँव की तरफ गाडी घुमाइए। " -- मीलों निकल आने के बाद भी दूर -दूर तक सुखा , ह्रदय बैठा जा रहा था।

" मैडम आप के बताये रास्ते से ही जा रहे है , मुझे तो यहां आस -पास बस्ती दिखाई ही नहीं दे रही । सन्नाटा ही सन्नाटा है , इंसानो की तो क्या , लगता है कि चील -कौए की भी यहां बस्ती नहीं है। "

" क्या ! सामने जरा और आगे चलो , पेपर में तो बहुत तरक्की बताई है गाँव की , इसलिए तो हम गावं में बसने की चाहत लिए विदेश में सब कुछ बेच आये है ! "

"और कितना आगे लेकर जाएँगी , गाड़ी में पेट्रोल भी सीमित है "

" रुको गूगल सर्च करती हूँ " - कहते हुए लैपटॉप निकाली , ओह ! नेटवर्क ही नहीं ......... , बेचैन होकर फिर से गाँव को पेपर में तलाशने लगी।

" मैडम , कागज़ का गाँव था लगता है उड़ गया "

मौलिक और अप्रकाशित

Views: 655

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by meena pandey on December 7, 2015 at 1:27am

बहुत ही खूबसूरत भावों को समेटे कथा हार्दिक बधाई आदरणीय Kanta Roy  जी 

Comment by Shubhranshu Pandey on December 6, 2015 at 11:31pm

आदरणिया कान्ता जी, 

सरकारी काम के स्याह चेहरे को आपने दिखाया है जो कुछ साल पहले तक अमुमन हर जगह दिखा करता था. आज जब सोशल मीडीया इतना तेज हो गया है तब इस तरह की बात कम हो सकती है. 

सुन्दर भाव के साथ सफ़ल कथा. 

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on December 5, 2015 at 8:31pm

आदरणीया कांता जी , आज की कागज़ी उन्नति पर बेहतरीन कटाक्ष करती आपकी कथा के लिये हार्दिक बधाई ।

Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on December 5, 2015 at 11:25am

सरकारी और मीडियाई पाखंडो का पर्दाफास करती इस लहुकथा के लिए हार्दिक बधाई ..आ० कान्ता बहन .इस तरह की त्रासदी मेरा सुदूरवर्ती गाव भी भोग चूका है .जहाँ सरकारी कागजों में १९७२ में ही विद्युतीकरण हो गया था लेकिन वास्तव में बिजली पहुंची २००५ में .अन्य सुविधाएँ तो आब भी गायब हैं l


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on December 5, 2015 at 10:02am

आज की प्रशासन व्यवस्था उनकी  नकली कलई खोलने वाली शानदार कटाक्ष करती हुई लघु कथा बहुत बढ़िया आ० कांता जी हार्दिक बधाई आपको  

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:02pm

कथा पर सार्थक  भावाव्यक्ति  के लिए आभार आदरणीय मोहन जी। 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 11:00pm

उत्साह वर्धन के लिए तहेदिल शुक्रिया आदरणीय दिग्विजय जी। 

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 10:59pm

कथा पसंदगी के लिए आभार आदरणीया ज्योत्सना  जी।  

Comment by kanta roy on December 4, 2015 at 10:59pm

कथा पसंदगी के लिए आभार आदरणीया राहिला जी।  

Comment by मोहन बेगोवाल on December 4, 2015 at 10:48pm

 दूर दराज के नहीं शहर के साथ लगते गाँव भी कागज़ पे छपे गाँव है, असलियत मैं इन गांवों की हालत दयनीय है , आदरनीया कांता जी इस लघुकथा ने इस विषय को खूब अच्छी तरह निभाया है -बधाई हो 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"सहर्ष सदर अभिवादन "
1 hour ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, पर्यावरण विषय पर सुंदर सारगर्भित ग़ज़ल के लिए बधाई।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय सुरेश कुमार जी, प्रदत्त विषय पर सुंदर सारगर्भित कुण्डलिया छंद के लिए बहुत बहुत बधाई।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय मिथलेश जी, सुंदर सारगर्भित रचना के लिए बहुत बहुत बधाई।"
4 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी, प्रोत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
4 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई दयाराम जी, सादर अभिवादन। अच्छी रचना हुई है। हार्दिक बधाई।"
7 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई सुरेश जी, अभिवादन। प्रदत्त विषय पर सुंदर कुंडली छंद हुए हैं हार्दिक बधाई।"
9 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
" "पर्यावरण" (दोहा सप्तक) ऐसे नर हैं मूढ़ जो, रहे पेड़ को काट। प्राण वायु अनमोल है,…"
11 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आ. भाई मिथिलेश जी, सादर अभिवादन। पर्यावरण पर मानव अत्याचारों को उकेरती बेहतरीन रचना हुई है। हार्दिक…"
11 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"पर्यावरण पर छंद मुक्त रचना। पेड़ काट करकंकरीट के गगनचुंबीमहल बना करपर्यावरण हमने ही बिगाड़ा हैदोष…"
12 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"तंज यूं आपने धूप पर कस दिए ये धधकती हवा के नए काफिए  ये कभी पुरसुकूं बैठकर सोचिए क्या किया इस…"
15 hours ago
सुरेश कुमार 'कल्याण' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-163
"आग लगी आकाश में,  उबल रहा संसार। त्राहि-त्राहि चहुँ ओर है, बरस रहे अंगार।। बरस रहे अंगार, धरा…"
15 hours ago

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service