For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

हो शुरू जंगे- मुस्तहब कोई- शिज्जु शकूर

2122 1212 112/22
हो शुरू जंगे-मुस्तहब कोई
लाये इक इन्किलाब अब कोई

यूँ अदब के बदल गये मा’ने
होता है रोज़ बे-अदब कोई

आज ग़ारतगरों के कहने पर
शह्र फूँके है बे-सबब कोई

लफ़्ज़ तेरे, तेरा तवाफ़ करें
सीख-ले बोलने का ढब कोई

आग फिरका-परस्ती की ऐ दोस्त
और भड़के बुझाये जब कोई

जब उलझ जाये बात बातों में
इक सिरा ढूँढ लेना तब कोई

सूरते-हाल पूछिये न ‘शकूर’
रोज़ नाज़िल हो इक ग़ज़ब कोई

-मौलिक व अप्रकाशित

Views: 684

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2015 at 8:26pm
आदरणीय सौरभ सर आपकी उपस्थिति हमेशा उत्साह वर्धक होती है, रचना को मान देने के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2015 at 8:25pm
बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय गुमनाम जी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2015 at 8:24pm
आदरणीय रवि शुक्लाजी आपका तहेदिल से शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2015 at 8:24pm
रचना की सराहना के लिये आपका तहेदिल से शुक्रिया नादिर भाई

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2015 at 8:23pm
बहुत बहुत शुक्रिया जान गोरखपुरीजी

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2015 at 8:22pm
आदरणीय मिथिलेशजी आपका तहेदिल से शुक्रिया

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on December 12, 2015 at 8:22pm
सर्वप्रथम विलम्ब के लिये मुआफ़ी चाहूँगा

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on November 26, 2015 at 11:33pm

इस बढिया ग़ज़ल के लिए दिल से दाद कह रहा हूँ, शिज्जू भाई. दिल खुश कर दिया आपने !

इन अश’आर पर बार-बार बधाइयाँ लीजिये - 

यूँ अदब के बदल गये मा’ने
होता है रोज़ बे-अदब कोई

आज ग़ारतगरों के कहने पर
शह्र फूँके है बे-सबब कोई

लफ़्ज़ तेरे, तेरा तवाफ़ करें
सीख-ले बोलने का ढब कोई

वाह वाह वाह !!

Comment by gumnaam pithoragarhi on November 26, 2015 at 8:43pm

लफ़्ज़ तेरे, तेरा तवाफ़ करें
सीख-ले बोलने का ढब कोई

वाह खूब .............. बधाई ................

Comment by Ravi Shukla on November 26, 2015 at 1:47pm

आदरणीय शिज्जू  जी कई दिनाे के बाद आज आपकी एक शानदार ग़ज़ल देखने को मिली है . अशआर एक से बढ़कर एक है. शेर दर शेर दाद  कुबूल फरमाएं.

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity


सदस्य टीम प्रबंधन
Dr.Prachi Singh commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बहुत सुंदर अभिव्यक्ति हुई है आ. मिथिलेश भाई जी कल्पनाओं की तसल्लियों को नकारते हुए यथार्थ को…"
Friday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय मिथिलेश भाई, निवेदन का प्रस्तुत स्वर यथार्थ की चौखट पर नत है। परन्तु, अपनी अस्मिता को नकारता…"
Thursday
Sushil Sarna posted blog posts
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार ।विलम्ब के लिए क्षमा सर ।"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया .... गौरैया
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी । सहमत एवं संशोधित ।…"
Wednesday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .प्रेम
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभार आदरणीय"
Jun 3
Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .मजदूर

दोहा पंचक. . . . मजदूरवक्त  बिता कर देखिए, मजदूरों के साथ । गीला रहता स्वेद से , हरदम उनका माथ…See More
Jun 3

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"आदरणीय सुशील सरना जी मेरे प्रयास के अनुमोदन हेतु हार्दिक धन्यवाद आपका। सादर।"
Jun 3
Sushil Sarna commented on मिथिलेश वामनकर's blog post कहूं तो केवल कहूं मैं इतना: मिथिलेश वामनकर
"बेहतरीन 👌 प्रस्तुति सर हार्दिक बधाई "
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन पर आपकी समीक्षात्मक मधुर प्रतिक्रिया का दिल से आभार । सहमत एवं…"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . .मजदूर
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . .
"आदरणीय मिथिलेश वामनकर जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर"
Jun 2

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service