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बहुत ही सुन्दर ///" आकांक्षाओं के पंखों की कोई सीमा नहीं होती।उनको पाने की चाह में तुम कटी पतंग की तरह कही की नहीं रहोगी।/// इस एक पंक्ति ने लघुकथा का सार कह दिया. बधाई आदरणीय अर्चना जी .
सत्यम शिवम सुंदरम , अर्चना जी। यही अंत होना था महत्वाकांक्षा का जो आपने किया। कटी पतंग यूँ ही लुटा करती हैं। बधाई अर्चना जी
कोहरे की बुनियाद पर बने झूठी आकांक्षा की हवेली किस तरह ढह जाती है, उसी को बयान करती है आपकी यह लघुकथा I रचना बढ़िया एवं संदेशपरक भी हुई है जिस हेतु मेरी हार्दिक बधाई प्रेषित है I
निम्नलिखित पंक्तियाँ अनावश्यक विस्तार की वजह से बोझिल हो गई हैं I इन्हें ज़रा कांट-छांट करके चुस्त बनायें I
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//रजनीश को दुत्कार निम्मी गहरे अवसाद में घिरती अतीत की गलियों में विचरण करने लगी ।चमक-दमक से भरा जीवन जीने की आकांक्षा की ओर बढ़ते कदमों ने उसे आज वाकई में कहीं का नहीं छोड़ा था पूर्व पति निलय के कहे शब्द उसके दिलोदिमाग पर हथोड़े सा वार कर रहे थे-
"आकांक्षाओं के पंखों की कोई सीमा नहीं होती।उनको पाने की चाह में तुम कटी पतंग की तरह कही की नहीं रहोगी।"//
महत्वाकाँक्षी तक तो ठीक है किन्तु अति महत्वाकाँक्षी होना पतन का कारण बनता है लघु कथा में अच्छा सन्देश निहित है अर्चना जी बहुत बढ़िया ...हार्दिक बधाई आपको
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