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हर एक आबाद घर मे एक वीराना भी होता था.
 वादा करना ही नही पड़ता निभाना भी होता था.
वाह तपन भाई वाह...क्या लिखा है आपने....गजब का कमाल दिखाया है आपने अपनी कलम से...शुभकामनायें...
पिलाता रहता था आँखों में आँखें डालकर साकी 
 मेरे दिलवर की राहों में ही मैखाना भी  होता था
बहुत ही बढ़िया योगेन्द्र साहब...भले ही आप मित्रो की आँखों से देखते हैं लेकिन दिल की जो आँखें हैं आपकी उसका कोई मुकाबला नहीं है...बहुत कमाल का लिखते हैं आप....
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