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कलयुग में ह्रदय में असली रंग नहीं बनावटी रंग से ही रंगने का काम करने का प्रयास करते है | आँखों में नीले लैंस लगाकर ही अपने रंग में रंग ने का प्रयास करते है | वाग वाग ! समर कबीर साहब
क्या क्लिष्ट रंग है, आदरणीया कान्ताजी !
राजनीतिबाजों की घिनही मानसिकता समाज की ऐसी-तैसी करने में क्या कुछ नहीं कर रही ! आपकी रचना प्रक्रिया अनवरत चलती रहे. शुभेच्छाएँ !
एक बात :
//आपके इस तटस्थता से, क्या उन पर असर नहीं पडेगा ? //
तटस्थता स्त्रीलिंग शब्द होने से सही वाक्य होगा - आपकी इस तटस्थता से, क्या उन पर असर नहीं पडेगा ?
शुभ-शुभ
पात्र श्वेता का ’वाव’ मेरे भी मुँह से बेसाख़्ता निकल गया, आदरणीय समर साहब ! क्या ही लाज़वाब वैचारिक विन्यास हुआ है ! बधाई बधाई बधाई !
आपकी रचनाधर्मिता न केवल मुग्धकारी है बल्कि आश्वस्त भी करती है कि मंच का आसन्न समय और समृद्ध होने वाला है.
हार्दिक शुभकामनाएँ और बधाइयाँ
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