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शिक्षा व्यवस्था और बेरोजगारी पर ढ़ोल पिटती एक अच्छी लघुकथा प्रस्तुत हुई है, बहुत बहुत बधाई आदरणीया जानकी जी.
बहुत बढ़िया और चुटीली रचना विषय पर , बहुत बहुत बधाई
आदरणीया जानकी जी, शिक्षा व्यवस्था और बेरोजगारी दो ऐसे मसले है जिन पर कथा एवं लघुकथा में हमेशा से लिखा जाता रहा है. आपने कथ्य को बिलकुल अंदाज़ में प्रस्तुत कर एक बहुत ही प्रभावोत्पादक लघुकथा लिखी है. इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई स्वीकारें. सादर
आदरणीया जानकी जी, आपका अनुमोदन मेरे लिए आश्वस्तकारी है. आपका हार्दिक आभार.
हार्दिक बधाई आदरणीय जानकी जी!बेहद सुन्दर और मार्मिक प्रस्तुति!बेरोजगारी के रंग पर ज़बरदस्त कटाक्ष किया है!लाज़वाब प्रस्तुति!
बहुत सुंदर आदरणीय जानकी जी सुगमता से मारक प्रहार ,बधाई आदरणीय।
"रंग विषय के अन्तर्गत"
रंग.....
"बुआ , तुम कितनी सुन्दर लग रही हो , इस लाल साड़ी मैं ! " - रितु का पुराना एलबम देखते हुए पूजा चहक कर बोली ,
"बुआ ऐसी ही साड़ी पहना करों न, क्यों हमेशा ये सफेद साड़ी पहने रहती हो,आपका मन नहीं होता रंगीन कपड़े पहनने का? "
"अब तो आदत - सी हो गई रे !, छह माह ही तो पहने रंगीन कपड़े ,तब से यही पहन रही | "
"फिर भी बुआ कभी तो मन होता होगा रंगीन साड़ी पहनने का| "
"नहीं "
वह अपने कमरे में चली गई| अलमारी से अपनी लाल -पीली साड़ियों में मुँह छिपाए रोए जा रही थी और सारे रंग उन आँसुओं में धुलकर धवल हो रहे थे|
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