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// कहते हुए उसने झंडे को लपेटा और अपनी कमीज़ के अंदर छिपा दिया|// रचना क्या लिखी , अपना कलेजा ही निकाल कर रख दिया चंद्रेश जी आपने। ऐसी अत्युत्तम रचना की तारीफ में जितने भी शब्द प्रयोग किए जाएं , आखिर तो कम ही पड़ेंगे। फिलहाल इस एक वाक्य से काम चला लें आप।
आदरणीय प्रदीप नील जी सर, लघुकथा का यह प्रयास आपको ठीक लगा और इतने सुंदर शब्दों से आपने अनुमोदन किया, मैं आपका हृदय से आभारी हूँ|
आदरणीय चंद्रेश जी, रंगों को प्रतीक बनाकर जिस सहजता से आपने कथ्य को साझा किया है, वह देखकर मुग्ध हूँ. लघुकथा के प्रतीक इतने स्पष्ट और तीव्र भाव सम्प्रेषण करते है कि बस पाठक कथा के प्रवाह में बहता जाता है. इस शानदार प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई. सादर
हार्दिक आभार आदरणीय मिथिलेश जी, रचना पर समय देकर आपकी अमूल्य टिप्पणी द्वारा आपने मेरा मनोबल उच्च किया है| कृपया ऐसे ही स्नेह बनाये रखें|
आदरणीय चंद्रेश जी, मेरे कहे के अनुमोदन हेतु हार्दिक आभार.
बहुत-बहुत आभार आदरणीया रश्मि जी, आपको लघुकथा का यह प्रयास ठीक लगा और आपने अपनी टिप्पणी द्वारा मेरा उत्साहवर्धन किया|
वाह, बेहद भावपूर्ण और शशक्त रचना विषय पर, दंगे की चपेट में आये किसी व्यक्ति की मनोदशा को बेहतरीन ढंग से दर्शाया है आपने| बहुत बहुत बधाई आपको
लघुकथा के हर प्रयास पर आपकी उपस्थिति सदैव ही या तो सकारात्मक दिशा में होती है या फिर वो दिशा दिखा देती है जिससे सकारात्मक सृजन हो| आपकी टिप्पणी हेतु बहुत-बहुत आभार आदरणीय विनय कुमार जी सर|
बहुत-बहुत आभार आदरणीय राजेन्द्र कुमार गौड भाई जी, आपको लघुकथा का यह प्रयास ठीक लगा और आपने अपनी टिप्पणी द्वारा मेरा उत्साहवर्धन किया|
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